एक औरत
एक औरत
ये कहानी है एक औरत की, एक माँ की। शराबी और लड़ाई कर तंग करने वाला पति, तो खुद की मेहनत से घर संभालती।
दो लड़कों को जन्म देने के बाद गरीबी से लड़ते हुए दोनों लड़कों को पाला। कुछ पैसे जोड़ कर पढ़ाया। जो भी घर में बनता सबको मिल बांट कर खाने को कहती। लड़के बड़े हुए, काम करने लगे, शादी हुई। कुछ समय बाद वही हुआ जो अक्सर होता आया है पैसे और काम को लेकर विवाद। बड़ा लड़का कमाई में हल्का और छोटा लड़का मजबूत। बड़े लड़के की पत्नी के साथ उस औरत के अच्छे संबध नहीं बन पाए तो बंटवारे के बाद वो औरत छोटे लड़के के साथ रहने का निर्णय करती है। बंटवारे में घर की सम्पति, सामान और जमीन के तीन हिस्से किए गए। एक हिस्सा बड़े लड़के के पास, (उसमें भी कम पाकर ही बड़े लड़के को संतुष्टि करनी पड़ी, क्यूकि भारतीय सभ्यता में हमेशा बड़ा ही कम से काम चलाता आया है छोटे की भलाई के लिए, फिर चाहे छोटे की पढ़ाई के लिए स्वयं की पढ़ाई त्यागनी हो या छोटे की शादी की जिम्मेदारी, अक्सर बड़ा ही निभाता है, बहरहाल) एक हिस्सा छोटे लड़के के पास और एक हिस्सा औरत अपने और अपने पति के नाम का भी छोटे लड़के को देती है। (बंटवारा यूं तो केवल जमीन का होना ही आम माना जाता है मगर यहां नकदी, बर्तन, बिस्तर व अन्य घरेलू सामान के भी तीन हिस्से हुए और ये बंटवारा लड़कों के मनों को भी बांट गया।)
यहां औरत बराबरी का बंटवारा ना करके छोटे लड़के के प्रति अपनी वफादारी दिखाती है।
दोनों लड़के अपना काम अकेले संभालना शुरू करते हैं।
बड़ा लड़का खूब मेहनत से काम करता है, देर रात तक घर में अपनी पत्नी को बच्चों के साथ अकेला छोड़ कर दूर शहर तक सफ़र करता है। सालों की मेहनत से कुछ पूंजी जमा करता है। दूसरी ओर छोटा लड़का भी नौकरी में तरक्की हासिल करता है साथ ही उसके घर भी दो बच्चे पैदा होते हैं। इसी बीच दोनों घरों में नए बच्चों के जन्म की वजह से फ़िर संबध सुधरते हैं।
लंबे समय तक मनमुटाव के साथ रहने के बाद धीरे-धीरे दोनों लड़के साथ मिलकर नई जमीन खरीदते हैं और इक्कठा काम करना फिर शुरू करते हैं।
कुछ समय बाद लड़कों के पिता यानी उस औरत के पति का निधन हो जाता है। इसके बाद भी थोड़े दिनों तक खुशी - खुशी समय बीता। फिर किस्मत ने ऐसा मोड़ लिया कि व्यापार में नुकसान हुआ और खेती में नुकसान हुआ जिसकी वजह से कर्ज हुआ और वो कर्ज चुकाने के लिए दोनों लड़कों ने हिसाब किया मगर दोनों ही हिसाब से असंतुष्ट। कुछ रिश्तेदार इक्कठे हुए पंचायत के तौर पर उनकी समस्या हल करने के लिए।
सभी रिश्तेदारों के सामने, अपने परिवार के भाईओं के सामने जिस छोटे लड़के की तरफ़दारी कर उस औरत ने बड़े लड़के के हक़ में खिलवाड़ किया, उसी छोटे लड़के ने इस सबका कारण अपनी माँ को बताते हुए उन अपशब्दों का इस्तेमाल किया जिनका आमतौर पर समाज में जाहिल लोग किसी ग़ैर के साथ हुई लड़ाई में भी नहीं करते और यहां भी न रुक कर उस छोटे लड़के ने अपने स्वर्गीय पिता को भी भांति - भांति के अप्शबद प्रस्तुत किए। वहीं बैठे दोनों लड़कों के बच्चे भी सब सुन रहे थे।
बड़ा लड़का माँ से आग्रह करता है कि माँ मेरे साथ चल रहने को मेरे घर, बूढ़ी औरत अपनी दुर्गति को अपने कर्मों का प्रायश्चित समझ हठ में ये प्रस्ताव ठुकरा देती है और बैठी हुई अपनी आंख से सिरकता आँसू रिश्तेदारों से छुपाते हुए, एनक के नीचे से पोंछती है और दीवार के शून्य में घूरती हुई गरीबी के वो खुशी में मिलकर जिए दिन याद करती है।
