दीए
दीए
आज उसकी आंखों में खुशियों के अनगिनत दिए जगमग आ रहे थे। सेठ राम प्रसाद यही तो नाम था उसका, मिठाई का डब्बा हाथ में लिए खुशी-खुशी लंबे-लंबे डग भरता हुआ सड़क पर चला जा रहा था।
आकांक्षा अपार्टमेंट, फ्लैट नंबर वन टू जीरो फोर ए विंग, यही तो पता बताया था ना ! सोचते हुए आगे बढ़ कर कब घर के दरवाजे तक पहुंच जाता है उसे ध्यान ही नहीं रहता।दरवाजे की घंटी बजाता है और मन ही मन कहता है -खोलो सेठ, दरवाजा खोलो! देखो तो सेठ कौन आया है ?अरे ! यह लोग इतनी देर क्यों लगा रहे हैं दरवाजा खोलने में।अचानक से दरवाजा खुलने के कारण उसके विचारों की श्रंखला टूट गई।
अंदर से एक बुजुर्ग ने झांकते हुए पूछा -आप कौन हैं और किस से मिलना चाहते हैं ?
अरे ! सेठ बस क्या, अब अंदर आने के लिए भी नहीं कहेंगे ?नहीं, नहीं! ऐसी बात नहीं है अंदर आ जाओ पर बुरा नहीं मानना बेटा, मैंने तुमको पहचाना नहीं।
कुछ सोचते हुए उन्होंने दरवाजा खोल कर उसको अंदर बुला लिया आओ। आओ बेटा आओ, बैठो।अब तो बता दो तुम कौन हो? सेठ अभी नहीं पहचाना ? तभी अंदर से आकर उनके बेटे ने उसको प्रणाम किया और अपने पापा से बोला- अरे! पापा आप इन्हें नहीं पहचानते ?यह हैं सेठ रामप्रसादजी! इनका ही तो कृष्णा स्वीट मार्ट है जिसकी पूरी इंडिया में शाखाएं हैं। एक दो बार काम के सिलसिले में मैं भी इन से मिला हूं।यह सुनते ही बृजमोहन जी खड़े हो गए और हाथ जोड़कर बोले -बहुत नाम सुना था आपका , मगर कभी देखा नहीं था इसलिए पहचान नहीं पाया। सर ! मेरी इस गुस्ताखी की सजा मेरे बेटे को मत दीजिए उसकी नौकरी मत......।
अरे! नहीं-नहीं ब्रजमोहन सेठजी मैं तो आपसे मिलने आया हूं।मुझे तो यह मालूम भी नहीं था कि यह आपका बेटा है।चलिए मैं बता देता हूं कि मैं हूं मैं 'राम' जो आपकी दुकान पर आज से 15 20 साल पहले काम करता था। आपको शायद याद नहीं होगी वह दिवाली की रात जब मैंने आपकी दुकान से चमचमाते हुए शोकेस से एक गुलाब जामुन उठाकर खा लिया था और बदले में आपने मुझे इतना मारा था कि मुझे दीवाली जैसे त्योहार से नफरत सी होने लगी थी। आपने तो धक्का मार कर मुझे दुकान से बाहर निकाल दिया था। अरे , बेटा मुझे शर्मिंदा मत करो, शायद उसी पाप की सजा भगवान ने मुझे मेरी दुकान जलाकर दे दी।तुम्हें शायद पता नहीं तुम्हारे जाने के बाद, मैंने दूसरा नौकर रख लिया था। सब कुछ अच्छे से चल रहा था कि एक दिन अचानक दुकान में आग लग गई और दुकान का बीमा ना होने के कारण मैं बर्बाद हो गया उसके बाद से तो दुकान की जैसे बरकत ही चली गई। दुकान फिर से जमा ली।पर धीरे धीरे वहां पर ग्राहक आने कम हो गए तो मैंने मिठाई की दुकान बंद करके किराने की दुकान होली खोल ली। वह भी नहीं चली शायद भगवान गिन गिन कर बदला ले रहा था और मैं अपने पैसे के मद में चूर कुछ समझ ही नहीं पा रहा था। किराने की दुकान मैं नौकर ने घपला किया और बहुत सारे पैसे लेकर भाग गया। मैंने दुकान बेचकर दूसरा धंधा करने की सोची।
कुछ लोगों ने सलाह दी कि पैसा शेयर बाजार में लगा दो उसमें बहुत जल्दी दुगना तिगुना मुनाफा मिलता है।मैंने उन लोगों की बात मान ली और दुकान से मिला पैसा उसमें लगा दिया परंतु नोटबंदी के कारण शेयर मार्केट में भी घाटा उठाना पड़ा।आज मेरे पास ना तो दुकान है ना ही पैसा बचा और ना ही इतना आत्मविश्वास रह गया कि मैं कोई भी काम ठीक से कर सकता। लोगों के ताने और तगादे से बचने के लिए दिन भर घर में बैठा रहता हूं जिसके कारण कई बीमारियों ने भी घेर लिया है।बृजमोहन जी इतना सब कुछ हो गया आपके साथ आपने कभी बताया नहीं।
क्या बताता एक तो मालूम नहीं था तुम कहां हो? दूसरे यदि तुम्हारे गांव में जाकर पूछता तो तुम्हारे मां बाप को क्या बताता कि तुम्हारा बेटा कहां है। इसलिए मैं हर महीने उनको तुम्हारे नाम से एक चिट्ठी और कुछ पैसे भेजता रहा जिससे वह यह समझे कि तुम मेरे यहां काम कर रहे हो।अरे! छोड़ो ये सब तुम अपनी सुनाओ बहुत बड़ा बिजनेस जमा लिया तुमने, लाखों का रोड़ा कमा लिए और बहुत नाम भी है यह सब इतने कम समय में कैसे कर लिया? सेट आपको याद होगा कि जिस दिन आपने मुझे मारकर अपनी दुकान से बाहर निकाल रहे थे तब वहां मिठाई खरीद रहे एक सज्जन ने मुझ पर तरस खाकर बाहर आकर मुझसे पूछा- बेटा अब तुम क्या करोगे? तुम्हारे घर वाले कहां है ?
मैंने रोते हुए उनको बताया - मेरे घरवाले गांव में रहते हैं। यह से सेठ काम कराने के लिए गांव से मुझे यहां लाया था और मेरे मम्मी पापा को विश्वास दिलाया था कि यहां पर काम के बदले यह मुझे रहने की जगह तथा खाने पीने को देगा और कुछ पैसे उनको भी महीने महीने भेजता रहेगा। अब क्या होगा ? मेरी भी माँ का इलाज कैसे होगा ?बापू की तो इतनी कमाई भी नहीं है जो मां का इलाज करा पाए। उनकी कमाई से तो घर का खर्च भी ठीक से नहीं चलता है। रोओ नहीं बेटा, भगवान जो करता है अच्छे के लिए ही करता है।
नहीं, भगवान अच्छा नहीं करता ,मेरी नौकरी छूट गई, मेरे रहने का ठिकाना नहीं रहा और आप कहते हो भगवान अच्छे के लिए करता है। नहीं भगवान सिर्फ दुखी करता है। नहीं ,नहीं, बेटा! ऐसा नहीं कहते। एक काम करो तुम मेरे साथ चलो और आज से तुम मेरी फैक्ट्री में काम करो।अगर तुम मन लगाकर काम करोगे और जो काम भी सिखाया जाये अच्छे से सीखोगे।तो सीखने के बाद तुमको परमानेंट कर दिया जाएगा और तनखा भी दी जाएगी तथा रहने के लिए घर भी मिलेगा जिसमें तुम अपने मां-बाप और भाई बहनों को रख सकते हो पर इस सब के लिए तुम्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।
हां ! मैं बहुत मेहनत करूंगा। कृपा करके मुझे अपने साथ ले चलो। ऐसा बोल कर मैं उनके साथ चला गया।
दो महीने की कड़ी मेहनत के बाद मैं वहां का सारा काम सीख गया था एक दिन मैनेजर ने आकर बोला -बड़े साहब तुम्हें बुला रहे हैं। तुमसे कोई जरूरी बात करनी है।यह सुनकर मैं तो घबरा ही गया। मुझे लगा कि नौकरी गई हाथ से। जल्दी-जल्दी उनके केबिन में पहुंचा तोे देखा - बड़े साहब गहरी चिंता में बैठे हुए हैं। मैंने कैबिन में पहुंचते ही उनके पैर पकड़ लिए और बोला - साहब अगर कोई गलती हो गई है तो मुझे सजा दे दो।मेरी तनख्वाह काट लो पर मेरी नौकरी नौकरी बरकरार रखना।वह मुझे उठाते हुए बोले नहीं-नहीं, उठो रामू ! मैंने तुम्हें यहां पर नौकरी से निकालने के लिए नहीं बल्कि तुम्हारा प्रोमोशन देने के लिए बुलाया है।अब तुम्हारी नौकरी पक्की हो गई है।अब तुम अपने मां-बाप को यहां पर बुला सकते हो।और हां सुनो।जो हमारे परमानेंट एंप्लॉयी हैं उनको हम मेडिक्लेम की सुविधा देते हैं, तुम यहां अपने मां-बाप का इलाज फ्री में करवा सकते हो। फ्री में वह कैसे? कोई मेरी मां का इलाज फ्री में कैसे करेगा? नहीं नहीं ! तुम समझे नहीं, फ्री में करने का मतलब जो भी खर्चा आएगा वह फैक्ट्री के अकाउंट से दिया जाएगा। तुमको 8 दिन की छुट्टी और आने जाने का किराया दिया जा रहा है जाओ और जाकर अपने मां-बाप को यहां ले आओ। और हां जाने से पहले फैक्ट्री के पीछे जो क्वार्टर्स बने हैं उनमें 203 नंबर का क्वार्टर देखते जाना यदि कुछ कमी होगी तो तुम्हारे आने तक मैं उसको ठीक करवा दूंगा।नहीं , साहब कमी क्या? जैसा भी होगा अच्छा ही होगा।
नहीं-नहीं रामू! फिर भी मेरे कहने से तुम एक बार उसे देख लो। मैंने वो क्वार्टर देखा और मन ही मन बहुत खुश हो रहा था। इतना बड़ा पक्का घर मां-बाप कितने खुश हो जाएंगे। मैं दूसरे ही दिन गांव के लिए रवाना हो गया और अपने मां-बाप तथा भाई बहनों को समझा-बुझाकर शहर ले आया।
धीरे धीरे तकदीर खाने जोर लगाया और लोगों के अच्छे दिन आने लगे। हम सभी भाई-बहन मिलकर फैक्ट्री में काम करते थे। एक दिन सेठ ने मुझको समझाया देखो -रामू तुम काम करते हो यहां पर अपने भाई बहनों को पढ़ाओ लिखाओ अगर यह पढ़ लिख जाएंगे तो अच्छी नौकरी पा जाएंगे और मेरी मानो तो तुम भी काम के साथ-साथ पढ़ाई फिर से करने लगो। मैंने बोला- साहब अब पढ़ाई करके क्या होगा? अपनी नौकरी से खुश हूँ।।हां!तुजानता हूं कि तुम्हारी ठीक हो गई है इसीलिए तो कह रहा हूं कि तुम अब पढ़ाई शुरू कर दो।फैक्ट्री में तुम्हारे लिए 8 घंटे की जगह 5 घंटे की नौकरी होगी। मैं तैयार हो गया काम के साथ-साथ पढ़ाई भी करता रहा।मेरी लगन और काबिलियत देखकर सेठ ने मेरा प्रमोशन कर दिया। मेरे भाई बहन अच्छे स्कूल में पढ़ने लगे और मैं पढ़ाई के साथ साथ फैक्ट्री में काम करता रहा और आज मैं आपके सामने बैठा हूं।मैं तो शुक्रगुजार हूं आपका जो उस दिन आपने मुझे अपनी दुकान से बाहर निकाल दिया था यदि ऐसा ना हुआ होता तो मैं आज भी कहीं किसी दुकान पर बर्तन साफ कर रहा होता।
बेटा! मुझे शर्मिंदा ना करो। नहीं, सेठ! मैं यह सब बातें करने नहीं आया था। मैं तो दिवाली की मिठाई देने आया था और यह शादी का कार्ड लाया था। अगले महीने मेरी सबसे छोटी बहन की शादी है। सोचा आपको बुला लूँ ,सब लोगों को भिजवा दिए गए।आपको कार्ड मैं खुद देना चाहता था इसलिए आपकी दुकान पर भी गया था परंतु वहां पर किसी और की दुकान थी। आस-पड़ोस में पूछने पर पता चला कि आपने अपनी दुकान बेच दी है।गांव से लाते वक्त आपने अपने घर का पता मुझे बताया था।उसी को याद करते-करते मैं यहां तक आ पहुंचा। पर मैं यह नहीं जानता था कि आपके साथ ऐसी दुर्घटना हुई है। मैं तो बस सिर्फ आपसे मिलने आया था।
कोई बात नहीं बेटा ,होता है भगवान के आगे किसका जोर चला है।जो मेरे नसीब में था मुझे मिला।
नहीं नहीं, सेठ ब्रजमोहन जी! काहे का सेठ? बृजमोहन बोलो मुझे।
नहीं सेठ जी! मेरे लिए तो आप आज भी वही सेठ है और हां एक बात और आज से आप अपने को ऐसे घर में कैद करके नहीं रह सकते। आपको कहीं ना कहीं नौकरी करनी ही चाहिए। अब इस उम्र में कहां नौकरी ढूंढने जाऊं ? और कौन देगा मुझे ?
सिर्फ एक बार हां तो बोल कर देखिए।देखें कैसे नौकरी नहीं मिलती? बेटा मैं तो तैयार हूं एक दो जगह गया भी था परंतु मेरे जैसे उम्रदराज लोगों को कोई काम देने को तैयार ही नहीं हुआ। अच्छा !
अगर कोई आपको काम दे तो आप करेंगे? क्यों नहीं ? जरुर करुंगा। तो सुनिए ! मेरे यहां की फैक्ट्री में अकाउंटेंट की जरूरत है और मैं जानता हूं कि अकाउंट के मामले में आपसे अच्छा और कोई हो ही नहीं सकता। एक एक पैसे का हिसाब कैसे रखा जाता है यह आपसे अच्छा और कोई नहीं कर सकता। ठीक है बेटा, अगले महीने की पहली तारीख से मैं आपकी फैक्ट्री में काम करने आ जाऊंगा। यह हुई ना बात। अब आप भी कामपे जाएंगे और बृजमोहन सेठ यह लीजिए ₹20000 पेशगी। यह इसलिए भी जरूरी है कहीं आप अपना इरादा ना बदल दें।
अच्छा अब मैं चलता हूं। पहली तारीख को फैक्ट्री में मैं आपका इंतजार करूंगा। कहकर रामू उर्फ रामप्रसाद सेठ उठकर वहां से चला जाता है। सेठ ब्रजमोहन कभी जाते हुए रामप्रसाद उर्फ रामू को देखते हैं तो कभी सामने टेबल पर रखे हुए रुपयों को देखते हैं। आज उनके भी मन में खुशियों के कई दीप जगमग आ रहे थे। इतने सालों में उन्हें पैसे और इंसान की अहमियत समझ में आ चुकी थी।