Tarnija Mohan Rathore

Drama Classics

5.0  

Tarnija Mohan Rathore

Drama Classics

दिए का उजाला

दिए का उजाला

5 mins
369


"शांति, चाय देना साहब को," तनु बड़बड़ाती हुई बोले जा रही थी, "इतने काम पड़े हैं दीवाली के और फुर्सत एक पल की भी नहीं है।बाजार से मिठाई लानी है, बच्चों के पटाखे लाने हैं। घर में लगाने के लिए रंग बिरंगी लाइट्स की झड़ियाँ लानी हैं।”


नजर अख़बार में पर साथ ही चाय की चुस्की लेते हुए दीप ने कहा, "क्यों झल्लाए जा रही हो? अभी तो वक्त है, सब काम हो जायेगा। सुनो! आज पड़ोस के शर्मा जी के घर जाना है न?"


तनु ने दिमाग पर जोर डालते हुए सोचा फिर तपाक से बोली, "अरे हाँ! आज तो उनके नए घर का मुहर्त है न?"


दीप ने चश्मे से आंखें नीची करके कहा, "क्यों तुम भूल गई थी?"

तनु ने साड़ी का पल्लू कमर में लगाते हुए मुस्कुरा कर कहा, "हाँ तो जब तक हमारा घर का गृह प्रवेश नहीं होगा, मुझे कहाँ कुछ और याद रहेगा!"


शब्दों के बाण चलाकर तनु अपने काम में लग गई, पर दीप के मस्तिष्क में यादों के तार झनझना उठे!


उसे अपना, तनु को पिछली दीवाली दिया हुआ वादा याद आया। दीप ने तनु से वादा किया था कि अगली दीवाली वो अपने घर में मनाएंगे, मकान मालिक की चिकचिक से दूर!


दीप अपने विचारों के जाल और लेन देन हिसाब-किताब में खोया हुआ था कि उसका 5 साल का बेटा उसे झकझोर कर कुछ कह रहा था, "डैडा मुझे दस रूपए चाहिए!"


दीप : (प्यार से हाथ फेरते हुए) क्यों बेटा?


बेटा : डैडा मुझे दिये लेने हैं मिट्टी के!


दीप (आश्चर्य जनक) : क्यों! मम्मा गई है न लेने के लिए रंगबिरंगी लाइट्स!


बेटा : ओफ्फो डैडा, क्या लाइट्स से दिये वाले अंकल के घर पर मिठाई आ जाएगी?


अपने बेटे के मासूम से सवाल ने दीप को अंदर तक हिला दिया... सच ही तो है, आजकल सब दिखावे के चक्कर में पड़े हैं, हर एक को किसी न किसी से बेहतर दिखने की कोशिश तो कहीं किसी और के लाइफस्टाइल से प्रभावित होकर अपने सुकून से भरे जीवन में हलचल मचा देना!


बेटा : डैडा बोलो ना, उन दिये वाले अंकल ने कहा है कि अगर मैं उनसे दस रूपए के दिये खरीद लूंगा तो उनके बेटे को दीवाली की मिठाई खिला पाउँगा!


दीप : अच्छा बेटा, चलो मुझे लेके चलो उनके पास!


बेटा उछलता हुआ ख़ुशी से भागता हुआ गेट की तरफ दौड़ गया...


दीप ने देखा कि एक बूढ़ा सा आदमी गेट पर खड़ा है, अपनी झुकी हुई कमर पर एक दिये की टोकरी लिए और आंखों में दीयों के बिक जाने की एक आस लिए टकटकी लगाकर देख रहा है। उसके माथे पर आती-जाती चिंता की लकीरें साफ़ दिखाई दे रही थीं कि शाम तक कितने दिये बिक जायेंगे उसके!


दीप को आते देखकर उस बूढ़े आदमी ने गमछे से पसीना पोछते हुए कौतुहल से कहा, "साहब, दिये लेंगे? देखिये बहुत सुन्दर सुन्दर लाया हूँ। कारीगरी भी की है साहब (हाथ जोड़कर विनती करते हुए) साहब ले लीजिये ना, आप जितना बोलेंगे दाम लगा दूंगा!"


दीप का बेटा दियों को ख़ुशी से उलट-पुलट कर देख रहा था। अपने बेटे की उत्सुकता को देखकर दीप ने कहा, "बाबा, आजकल दिये कौन लेता है?"


दिये वाले की आंखें भर आईं, जैसे तैसे अपने शब्दों को संभालता हुआ, अपने गमछे से दियों को साफ़ करते हुए बोला, "साहब, जानता हूँ कि आज कल लोग घरों को लाइट्स से सजाते हैं। जब से ये लाइट्स आई हैं ना बाजार में, तबसे हमारे घरों में बिजली गुल हो गई है! हमारे घरों में तो दीवाली जब होती थी जब दिये बिकते थे, आजकल तो साहब बस वादा ही कर पाते हैं!”


दीप से उसकी आंखों के आंसू छुप नहीं रहे थे। दीप ने अपने बेटे से कहा, "बेटा जाओ अंकल के लिए मम्मा से पानी ले आओ।”


दीप ने उनकी टोकरी नीचे उतारी और पूछा, "क्या बात है बाबा? कुछ परेशान हो!"


दिये वाले ने एक नजर अपने दियों की ओर डाली और कहने लगा, "साहब, आज मैंने अपने बीवी-बच्चों से वादा किया है कि इस दीवाली उन्हें नए कपड़े और मिठाई, पटाखे दिलाऊंगा। पर किस्मत देखिए साहब, सुबह से एक दिया नहीं बिका। हमें महीनों लग जाते हैं दिये बनाने में और एक पल भी नहीं लगता लोगों को मुँह बिचकाने में (हताश होकर)। लगता है साहब, इस बार भी दीवाली का वादा पूरा नहीं कर पाउँगा। खैर, जाने दीजिये साहब!” (पानी पीकर टोकरी को उठाने की कोशिश करने लगा)


दीप ने यकायक कहा, "बाबा, ऐसा करिये ये सारे दिये यहाँ रख दीजिए और जितना पैसा लगे बता दीजिए।"


दिये वाले की जैसे बांछे खिल गई हों। बहुत ही ख़ुशी से उसने सारे दिये रखे और वाजिब दाम लेकर जाने ही वाला था कि पीछे से तनु की आवाज आई, "दीप, क्या सारे वादे आज आप ही पूरे कर देंगे?"


दीप ने पलटकर देखा तो उसके हाथों में मिठाई और कुछ गरम कपड़े थे। तनु मुस्कुराकर बाबा के पास आई और बोली, "लो बाबा, दीवाली की बहुत सी शुभकामनाएं!"


दिये वाले ने खूब आशीर्वाद दिया और ख़ुशी ख़ुशी अपने वादे को पूरा करने चल दिया अपनी राह पर।


दीप उसे जाते हुए देख रहा था और सोच रहा था, "क्यूँ सब लोग ऐसे बाबा की दीवाली नहीं बनाते? चकाचौंध की इस दुनिया में कहीं खो सा गया है वो दिये का उजाला।”


दीप तनु को दिया वादा तो पूरा नहीं कर पाया पर उसे ख़ुशी थी कि आज उसने किसी और का वादा टूटने से बचा लिया। दीप और तनु अपने बेटे के साथ दिये लगाने में लग गए। उस नए उजाले की ओर जो अब खुशियाँ बनकर उनके दिलों के दरवाजों पर दस्तक दे रही थी!


संदेश :- कृपया, मिट्टी के दिये जलाएं और अपने घरों के साथ साथ उन घरों को भी रौशन करें जिनके घरो में उजाला सिर्फ आपके दिये खरीदने से ही होगा, जिनकी ख्वाहिशों के पंख दीवाली से एक महीने पहले से लग जाते हैं कि इस बार दिये बिकेंगे तो उनके घर में भी दीवाली मनेगी!


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