डर
डर
"क्या मैं अंदर आ सकती हूं?"
"जी बिल्कुल आइए आइए!!"
"मैं अपने बेटे रोचक को आपके पास संगीत की शिक्षा के लिए लाई हूं।"
नेहा ने कहा -"आप दाखिला करवा दीजिए।"
अगले दिन से रोचक संगीत की शिक्षा प्राप्त करने नेहा के पास आने लगा। रोचक को संगीत सिखाते समय नेहा ने एक बात पर गौर किया वह बात बात में सहम जाता था और जरा सा तेज बोलने डर जाता था। इस बात को देखकर नेहा ने रोचक से कहा कि "बेटा तुम एक डायरी बनाओ और जो तुम्हारे मन में आए वह तुम लिख कर मुझ को दिखाना।" रोचक ने अगले दिन से ही डायरी लिखना शुरू किया, जब नेहा ने रोचक की डायरी का अवलोकन किया तो पाया कि उसमें एक तो भूत का जिक्र बहुत है और दूसरा उसकी टूटी फूटी ड्राइंग से यह समझ में आ रहा था कि जैसे कोई बच्चे को पीट रहा हो।
अगले ही दिन नेहा ने रोचक की माँ को बुलवाया और उनसे कहा कि "आपका बेटा ज्यादा समय किसके पास व्यतीत करता है।"
रोचक की माँ बोली" मैं तो अपनी नौकरी पर निकल जाती हूं और ज्यादातर यह आया कि साथ में ही रहता है।" सारा माजरा समझते नेहा को देर न लगी।
उसने रोचक की माँ को समझाया "आप अपने बेटे पर ध्यान दीजिए अन्यथा इसका मानसिक विकास रुक जाएगा।" और नेहा ने विस्तार से रोचक की माँ को सारी बातें बताई। यह सब सुनकर तो रोचक की माँ के जैसे पैरों के तले से ज़मीन ही खिसक गई हो और वह कृतार्थ भाव से नेहा से बोली "आज आपने मेरे बेटे की जिंदगी की नई शुरुआत की है मैं आपका एहसान जीवन भर नहीं भूलूंगी।" और नेहा सोचने लगी की अगर उसने संगीत के साथ-साथ बाल मनोविज्ञान का अध्ययन ना किया होता तो शायद वह रोचक कि यह परेशानी कभी नहीं समझ पाती।
