नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Children Drama

0.6  

नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Children Drama

चुहिया और चिड़िया

चुहिया और चिड़िया

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एक बार एक पेड़ पर एक चिडि़या रहती थी । उसके पास ही पेड़ की जड़ों में एक बिल था । उसमें एक चुहिया रहती थी । दोनों का घर पास-पास होने के कारण दोनों एक-दूसरे की पक्की सहेली थी ।

एक दिन चुहिया ने चिडि़या से कहा-क्यों री चिडि़या आज कितना सुहाना मौसम हैं । कहीं घुम कर आया जाए ? चिडि़या ने उसका सुझाव मान लिया और दोनों निकल पड़ी घुमने । चलते-चलते चुहिया, चिडि़या की तरफ ऊपर देखकर चल रही थी तो एक कुएं में जा गिरी ।

चिडि़या यह देखकर कुएं की मुंडेर पर बैठ गई । चुहिया ने कहा-

अबकी चुहिया ने कहा-अरी चिडि़या बहन अबकी बार और बचा लो, मेरे मामा जब आयेंगे तो खिल पतासे लायेगंे मैं तुझे भी दूंगी । मुझे बाहर निकालो, मैं डुबकर मर जाऊंगी । चिडि़या ने कुएं के पास पड़ी रस्सी को कुएं में डाल दिया । जिस पर चढ़कर चुहिया बाहर आ गई । चुहिया, चिडि़या के गले मिली और धन्यवाद देते हुए आगे चल पड़ी ।

रास्ते में फिर चुहिया एक ट्रक के नीचे आ गई । चिडि़या उसे ना बचाती तो उसका कचूमर ही निकल जाता । अब की बार भी चुहिया तो बचा लिया । कुछ देर बाद चुहिया एक खेत में लगी बाड़ में घुस गई । वहां उलझ गई । अबकी चुहिया ने कहा-अरी चिडि़या बहन अबकी बार और बचा लो, मेरे मामा जब आयेंगे तो खिल पतासे लायेगंे मैं तुझे भी दूंगी । बेचारी चिडि़या ने उसे वहां से भी बचा लिया ।

आगे चलने पर चुहिया रास्तें में एक जगह लगी आग में घुस गई । यदि चिडि़या ऐन मौके पर ना बचाती तो आज उसका भुर्ता बन गया होता । चुहिया कहने लगी-यदि आज आप मेरी जान ना बचाती तो बहन मैं तो मर ही जाती । अब तो मेरे मामा जब भी आयेंगे मैं तुम्हें अवश्य ही खिल-पतासे खिलाऊंगी । दोनों बाहर घुमें, खूब मौज-मस्ती की । खूब मौसम का लुत्फ उठाया । काफी घुमें । खेतों की हरियाली को खूब आंखों में उतारा । शाम होने पर घर आई ।

घर आने पर चिडि़या ने देखा कि चुहिया का मामा आया हुआ था और खूब सारे खिल-पतासे भी लाया था । चुहिया बार-बार बिल से बाहर लाकर खिल पतासे खा रही थी । चिडि़या उसके पास जाकर बोली - चुहिया बहन अब मुझे भी खिल-पतासे दो । तुमने कहा था कि मैं खिल-पतासे खिलाऊंगी ।

चुहिया बोली-क्यों दूं, मैं तुम्हें खिल-पतासे ? तुमने मेरा किया ही क्या है ?

चिडि़या ने कहा- देखों बहन मैंने तुमको कुएं से निकाला था , और तुम्हें डुबने से बचाया था ।

चुहिया बोली -क्यों बचाया था, मैं तो वहां पर नहाने के लिए घुसी थी, बहुत दिन हो गये थे कुएं में नहाये हुए ।

चिडि़या ने फिर कहा-देखों बहन मैंने तुझे ट्रक के नीचे से बचाया था ?

चुहिया ने कहा - वहां से भी क्यों मुझे बचाया था । मैं कड़ दबवाने के लिए उसके नीचे घुसी थी । बहुत दिनों से सोच रही थी कि कड़ दबवाऊं मगर मुझे ऐसी कोई चीज ही नही मिली थी जिससे मेरी कमर का दर्द ठीक हो सके । मेरे दुखते हुए शरीर को थोड़ा आराम मिलता मगर तुमने वो भी नही होने दिया ।

चिडि़या ने कहा - चलो छोड़ो वो बातें पर तुम्हें बाड़ से मैंने ही बचाया था ।

चुहिया ने फिर कहा-अरी चिडि़या तुमने वहां से भी मुझे गलत बचाया, क्योंकि वहां पर मैं अपने कान में छेद करने के लिए घुसी थी क्योंकि मुझे कानों में झुमके जो पहनने हैं ।

चिडि़या ने कहा- आग में जलने से तो बचाया ही था ? जिसमें मेरे पर भी जल गये । चाहो तो तुम भी देख ही सकती हो ।

चुहिया फिर खिल-पतासे खाती और मटकाती हुई कहने लगी-आज थोड़ी ठंड ज्यादा थी सो मैं वहां पर अपने आपकी सिकाई करने के लिए घुसी थी । हाथ सेंक लेती मगर तुमने वहां से भी मुझे निकाल लिया । कैसी सहेली हो तुम । जो अपनी सहेली का इतना भी ख्याल नही रखती । मैं तुम्हें नही दूंगी खिल-पतासे । तुम अभी की अभी यहां से चली जाओ ।

चिडि़या कुछ ना बोली और चुपचाप अपने घर अपने घौसलें में चली गई । कुछ दिन बाद ही चिडि़या का मामा आया और बहुत सारे खिल-पतासे और बहुत सी खाने चीजें लेकर आया । चिडि़या को बहुत खुशी हुई । तब तक चुहिया के खिल-पतासे भी खत्म हो चुके थे । चिडि़या भी खिल-पतासे लेकर अपने घौसले से बाहर आकर एक टहनी पर बैठकर खाने लगी और लगी इतराने । खाते-खाते उनका कुछ भाग निचे गिर गया तो चुहिया को पता चला कि आज उसका मामा आया हुआ है । चुहिया दौड़ी-दौड़ी चिडि़या के पास गई और कहने लगी-

चिडि़या बहन, सूना है आज तेरे मामा आये थे । क्या मुझे खिल-पतासे नही खिलाओगी ?

चिडि़या यह सुनकर बोली-क्यों री चुहिया, जब तुम्हारे मामा आये थे तो क्या तुमने मुझे खिलाये थे जो आज मैं तुझे खिलाऊं ।

बेचारी चुहिया कुछ ना बोल सकी । वह निरूत्तर हो गई । और पश्चाताप करने लगी । उसकी आंखों से अश्रुधार फुट पड़ी । बाद में वह बार-बार चिडि़या से क्षमा याचना करने लगी । चिडि़या बेचारी साफ हृदय की थी । उसने चुहिया को माफ कर दिया । और बहुत सारे खिल-पतासे दे दिए । दोनों फिर से सहेली बन गई और खुशी-खुशी, खिल-पतासे खाने लगी ।


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