चर्चा: मास्टर & मार्गारीटा 25

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अध्याय – 25


न्यायाधीश ने किरियाफ के जूडा की रक्षा की कैसी कोशिश की




कृपया इस अध्याय के शीर्षक पर ध्यान दें; हम 26वें अध्याय में इस पर चर्चा करेंगे.

इस बात को मानना पड़ेगा कि इन दो अध्यायों में बुल्गाकोव सर्वोत्कृष्ट हैं. वे खुल कर कोई बात नहीं कहते; बस किन्हीं बातों की ओर इशारा कर देते हैं – पात्रों के हाव-भाव से, उनकी भाव-भंगिमा से – और अपने पाठकों पर उनकी वास्तविक मन्शा समझने की ज़िम्मेदारी छोड़ देते हैं. यदि पाठक सावधानी से पढ़ रहा है तो वह तह तक पहुँच जाएगा; वर्ना तो यह एक दूसरी ही सतह पर चलने वाला कथानक होकर रह जाएगा. यह बात न केवल इन दो अध्यायों पर, अपितु पूरे उपन्यास लागू होती है.


तो, हम धीरे-धीरे, सावधानी से आगे बढेंगे.


प्रस्तुत अध्याय पोंती पिलात –येशुआ हा नोस्त्री के कथानक को आगे बढ़ाता है. जैसा कि मैं पहले बता चुकी हूँ पोंती पिलात-येशुआ का प्रसंग उपन्यास के चार अध्यायों – 2,16,25 और 26 में बिखरा हुआ है. अध्याय 2 में येशुआ तथा दो डाकुओं दिसमास और गेस्तास को मृत्युदण्ड की घोषणा की जाती है; अध्याय 16 में मृत्युदण्ड सम्पन्न किया जाता है. उन्हें सूली पर चढ़ाने के बाद एक भीषण तूफ़ान आता है और सूली पर लटकते कैदियों को वहीं छोड़कर सब भाग जाते हैं. धुँआधार बारिश ने निचले शहर को जलमग्न कर दिया.

इन चारों अध्यायों का कथानक एक ही दिन में घटित होता है. सुबह येशुआ हा नोस्त्री को मृत्युदण्ड सुनाया जाता है; दोपहर में उसे सूली पर चढ़ा दिया जाता है, और अब, शाम को हम पोंती पिलात को अपने महल की बालकनी में देखते हैं. वह किसी का इंतज़ार कर रहा है; वह बहुत बेचैन है; अनिद्रा के कारण उसकी आँखें और चेहरा सूजे हुए हैं.अंत में प्रतीक्षित मेहमान आ ही जाता है – यह अफ्रानी है, गुप्तचर सेवाओं का प्रमुख. येशुआ को मृत्युदण्ड सुनाने से पहले पोंती पिलात ने इसीसे अंधेरे कमरे में बात की थी.

अफ्रानी की ओर ध्यानपूर्वक देखिए:


पिलात के सामने उपस्थित व्यक्ति अधेड़ उम्र का था, प्यारा-सा गोल चेहरा, खूबसूरत नाक-नक्श, और मोटी फूली नाक वाला. बालों का रंग कुछ अजीब-सा था. अब सूखते हुए वे भूरे मालूम पड़ रहे थे. आगंतुक की नागरिकता के बारे में बताना भी कठिन था. उसके चेहरे की विशेष बात थी उस पर मौजूद सहृदयता की झलक, जिसे मिटाए जा रही थीं आँखें, या यूँ कहिए कि उससे वार्तालाप कर रहे व्यक्ति की ओर देखने का तरीका. अपनी छोटी-छोटी आँख़ों को वह अक्सर विचित्र, अधखुली, फूली-फूली पलकों के नीचे छिपाए रखता था. तब इन आँखों में निष्पाप चालाकी तैर जाती थी. शायद पिलात का अतिथि मज़ाकपसन्द था. मगर कभी-कभी वह इस हँसी की चमकती लकीर को बाहर खदेड़ देता और अपनी पलकें पूरी खोलकर अपने साथी पर अचानक उलाहना भरी दृष्टि डालता, मानो उसकी नाक पर उपस्थित कोई छिपा हुआ धब्बा ढूँढ़ रहा हो. यह सिर्फ एक ही क्षण चलता. दूसरे ही क्षण पलकें फिर झुक जातीं आधी मुँद जातीं और उनमें फिर तरने लगती सहृदयता और चालाक बुद्धिमत्ता.


अफ्रानी जब छत पर आया तो पूरी तरह भीग चुका था. उसे सीखे वस्त्र दिए गए और खाना-पीना ख़त्म होने के बाद पिलात ने उससे मृत्युदण्ड के बारे में और येरूशलम की परिस्थिति के बारे में पूछना प्रारंभ किया:


“और अब, कृपया मुझे मृत्युदण्ड के बारे में बताइए,” न्यायाधीश ने कहा.   

 “आप कोई खास बात जानना चाहते हैं?”

 “कहीं भीड़ द्वारा अप्रसन्नता, गुस्सा प्रदर्शित करने के कोई लक्षण तो नज़र नहीं आए? खास बात यही है. “ज़रा भी नहीं,” मेहमान ने उत्तर दिया. “बहुत अच्छा. आपने स्वयँ यकीन कर लिया था कि मृत्यु हो चुकी है?”

 “न्यायाधीश इस बारे में निश्चिंत रहें.”

 “और बताइए...सूली पर चढ़ाए जाने से पहले उन्हें पानी पिलाया गया था?”मेहमान ने आँखें बन्द करते हुए कहा, “हाँ, मगर उसने पीने से इनकार कर दिया.”

 “किसने?”

पिलात ने पूछा.

 “क्षमा कीजिए, महाबली!” मेहमान चहका, “क्या मैंने उसका नाम नहीं लिया? हा-नोस्त्री!”


 [यह अध्याय 16 के वर्णन के बिल्कुल विपरीत है, जहाँ बताया गया था कि हा-नोस्त्री ने उसके पास भाले की नोक पर सवार पानी में डूबे स्पंज को चूसा था. पवित्र बाइबल में भी वर्णन है कि हा-नोस्त्री ने पानी पीने से इनकार कर दिया था. इस तरह बुल्गाकोव शायद यह बताना चाहते हैं कि यह पवित्र बाइबल वाला कथानक नहीं है, बल्कि कुछ और ही है.]

 “बेवकूफ!” पिलात ने न जाने क्यों मुँह बनाते हुए कहा. उसकी दाहिनी आँख फड़कने लगी, “सूरज की आग में झुलस कर मरना! जो कानूनन तुम्हें दिया जाता है, उससे इनकार क्यों? उसने कैसे इनकार किया?”


 “उसने कहा,” मेहमान ने फिर आँखें बन्द करते हुए कहा, “कि वह धन्यवाद देता है और इस बात के लिए दोष नहीं देता कि उसका जीवन छीन लिया जा रहा है.”


[अध्याय 16 में बताया गया है कि येशुआ मृत्युदण्ड के पहले ही घंटे में होश खो बैठा था और वह पूरे समय ख़ामोश ही रहा.] 

“किसे?” पिलात ने खोखले स्वर में पूछा.

 “महाबली, यह उसने नहीं बताया.”

 “क्या उसने सैनिकों की उपस्थिति में कुछ सीख देने की कोशिश की?”

 “नहीं, महाबली, इस बार वह बात नहीं कर रहा था. सिर्फ एक बात जो उसने कही, वह यह कि इन्सान के पापों में से सबसे भयानक पाप वह भीरुता को समझता है.”


[पवित्र बाइबल में इस ‘भीरुता’ के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है. यह बुल्गाकोव का अपना मत था जिस पर उन्हें दृढ़ विश्वास था. हम देखेंगे कि एक अन्य अध्याय में पिलात फिर इसी शब्द पर लौटता है और यह सिद्ध करने की कोशिश करता है कि वह कायर नहीं था...मगर वास्तव में तो वह कायर ही था, क्योंकि अपनी जान के डर से ही उसने येशुआ को मौत की सज़ा सुनाई थी.] 

“यह क्योंकर कहा?” मेहमान ने अचानक फटी-फटी आवाज़ सुनी.

 “यह समझना मुश्किल था. वैसे भी, हमेशा की तरह, वह बड़ा विचित्र व्यवहार कर रहा था.” 

“विचित्र क्यों?”

 “वह पूरे समय किसी न किसी की आँखों में देखते हुए मुस्कुरा रहा था, अनमनी मुस्कुराहट...”

 “और कुछ नहीं?” भर्राई आवाज़ ने पूछा. “और कुछ नहीं.”


[यहाँ भी अध्याय 16 से विरोधाभास प्रतीत होता है.]

अब पोंती पिलात जूडा के बारे में पूछता है. ग़ौर से देखिए:  “मैं खुश हुआ, तो, अब, दूसरा सवाल. इसका सम्बन्ध उससे है, क्या नाम...हाँ, किरियाफ के जूडा से.”

अब मेहमान ने अपने विशिष्ट अन्दाज़ में न्यायाधीश की ओर देखा और, जैसा कि स्वाभाविक था, फौरन नज़र झुका ली[मेहमान का यह अन्दाज़ हमें पिलात के इरादों को समझने में सहायक होगा.]

 “कहते हैं कि,” आवाज़ नीची करते हुए न्यायाधीश ने कहा, “उसने इस सिरफिरे दार्शनिक को अपने यहाँ रखने के लिए पैसे लिए थे?” 

“पैसे मिलेंगे,” गुप्तचर सेवा के प्रमुख ने धीमे स्वर में जवाब दिया.

 “क्या बहुत बड़ी रकम है?” “यह किसी को पता नहीं, महाबली.”

 “आपको भी नहीं?” महाबली ने आश्चर्य से पूछा.

 “हाँ, मुझे भी नहीं,” मेहमान ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया, “मगर मुझे इतना मालूम है कि उसे ये पैसे आज मिलने वाले हैं. उसे आज कैफ के महल में बुलाया जाने वाला है.”

 “ओह, किरियाफ का लालची बूढ़ा,” मुस्कुराते हुए महाबली ने फब्ती कसी, “वह बूढ़ा है न? “

"न्यायाधीश कभी गलती नहीं करते, मगर इस बार आपका अनुमान सही नहीं है,” मेहमान ने प्यार से जवाब दिया, “किरियाफ का वह आदमी नौजवान है.”

 “ऐसा न कहिए! आप उसका विवरण मुझे दे सकते हैं? वह सिरफिरा है?”

 “ओफ, नहीं, न्यायाधीश!”

 “अच्छा. और कुछ?”

 “बहुत खूबसूरत है.”

 “और? शायद कोई शौक रखता है? कोई कमज़ोरी?” “इतने बड़े शहर में सबको अच्छी तरह जानना बहुत मुश्किल है, न्यायाधीश...”

 “ओह नहीं, नहीं, अफ्रानी! अपनी योग्यता को इतना कम मत आँको!”

 “उसकी एक कमज़ोरी है, न्यायाधीश,” मेहमान ने कुछ देर रुककर कहा, “पैसों का लोभ.” “और वह करता क्या है?”

अफ्रानी ने आँखें ऊपर उठाईं, कुछ देर सोचकर बोला, “वह अपने एक रिश्तेदार की दुकान पर काम करता है, जहाँ सूद पर पैसे दिए जाते हैं.”

 “ओह, अच्छा, अच्छा, अच्छा, अच्छा!” अब न्यायाधीश चुप हो गया, उसने नज़रें घुमाकर देखा कि बाल्कनी में कोई है तो नहीं, तत्पश्चात् हौले से बोला, “अब सुनिए खास बात...मुझे आज खबर मिली है कि उसे आज रात को मार डाला जाएगा.”


अब मेहमान ने न केवल अपनी खास नज़र न्यायाधीश पर डाली, बल्कि कुछ देर तक उसे वैसे ही देखता रहा और फिर बोला, “आपने न्यायाधीश, दिल खोलकर मेरी तारीफ कर दी. मेरे ख़याल से मैं उसके योग्य नहीं हूँ, मेरे पास ऐसी कोई खबर नहीं है.”


 “आपको तो सर्वोच्च पुरस्कार मिलना चाहिए,” न्यायाधीश ने जवाब दिया, “मगर ऐसी सूचना अवश्य मिली है.”

 “क्या मैं पूछने का साहस कर सकता हूँ कि यह खबर आपको किससे मिली?”

 “अभी आज यह बताने के लिए मुझे मजबूर न कीजिए, खास तौर से तब, जब वह अकस्मात् मिली है और उसकी अभी पुष्टि नहीं हुई है. मगर मुझे सभी सम्भावनाओं पर नज़र रखनी है. यही मेरा कर्त्तव्य है और मैं भविष्य में घटने वाली घटनाओं के पूर्वाभास को अनदेखा नहीं कर सकता, क्योंकि उसने आज तक मुझे कभी धोखा नहीं दिया है. सूचना यह मिली है, कि हा-नोस्त्री के गुप्त मित्रों में से एक, इस सूदखोर की कृतघ्नता से क्रोधित होकर, उसे आज रात को ख़त्म कर देने के बारे में अपने साथियों के साथ योजना बना रहा है, और वह इस बेईमानी के पुरस्कार स्वरूप मिली धनराशि को धर्मगुरू के सामने इस मज़मून के साथ फेंकने वाला है: ‘पाप के पैसे वापस लौटा रहा हूँ’इसके बाद गुप्तचर सेवाओं के प्रमुख ने महाबली पर एक भी बार अपनी विशेष नज़र नहीं डाली और आँखें सिकोड़े उसकी बात सुनता रहा. पिलात कहता रहा, “सोचिए, क्या धर्मगुरू को उत्सव की रात में ऐसी भेंट पाकर प्रसन्नता होगी?”


[अफ्रानी ने टक लगाकर पिलात की ओर देखा और वह समझ गया कि यह पूर्वाभास नहीं बल्कि जूडा को मार डालने का आदेश है. वह पिलात ही के शब्दों को फिर से दुहरा कर इसकी पुष्टि कर लेना चाहता है, जैसा कि हम आगे देखेंगे.]

मुस्कुराते हुए मेहमान ने जवाब दिया, “न केवल अप्रसन्नता होगी, बल्कि मेरे ख़याल में तो इसके फलस्वरूप एक बड़ा विवाद उठ खड़ा होगा ."

“मैं खुद भी ऐसा ही सोचता हूँ. इसीलिए मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि इस ओर ध्यान दीजिए, मतलब किरियाफ के जूडा की सुरक्षा का प्रबन्ध कीजिए.”

 “महाबली की आज्ञा का पालन होगा,” अफ्रानी ने कहा, “मगर मैं महाबली को सांत्वना देना चाहूँगा: इन दुष्टों का षड्यंत्र सफल होना मुश्किल है!” कहते-कहते मेहमान पीछे मुड़ गया और बोलता रहा, “सिर्फ सोचिए, एक आदमी का पीछा करना, उसे मार डालना, यह मालूम करना कि उसे कितना धन मिला है, यह धन कैफ को वापस भेजने का दुःसाहस करना, और यह सब एक रात में? आज?” 

“हाँ, खास बात यही है कि वह आज ही मार डाला जाएगा,” ज़िद्दीपन से पिलात ने दुहराया, “मुझे पूर्वाभास हुआ है, मैं आपसे कह रहा हूँ! कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि उसने मुझे धोखा दिया हो,” अब न्यायाधीश के चेहरे पर सिहरन दौड़ गई, और उसने फौरन अपने हाथ मले.


[पिलात ने जल्दी जल्दी अपने हाथ मले; ऐसा ही उसने येशुआ को मौत की सज़ा सुनाने के बाद भी किया था. यहाँ भी उसने जूडा को मौत की ही सज़ा सुनाई है.]


“सुन रहा हूँ,” मेहमान ने नम्रता से कहा, वह उठकर सीधी खड़ा हो गया और अचानक गम्भीरता से पूछने लगा, “तो मार डालेंगे, महाबली?”

 “हाँ,” पिलात ने जवाब दिया और मुझे केवल आपकी आश्चर्यजनक कार्यदक्षता पर भरोसा है.”


[तात्पर्य यह हुआ कि जूडा को मारने का काम अफ्रानी को सौंपा गया है.]


 “ओह, हाँ,” पिलात धीरे से चहका, “मैं तो बिल्कुल भूल ही गया! मुझे आपको कुछ लौटाना है!...”

मेहमान परेशान हो गया.

 “नहीं, न्यायाधीश आपको मुझे कुछ नहीं देना है.”

 “ऐसे कैसे नहीं देना है! जब मैं येरूशलम में आया, याद कीजिए, भिखारियों की भीड़...मैं उन्हें पैसे देना चाहता था, मगर मेरे पास नहीं थे, तब मैंने आपसे लिए थे.” “ओह, न्यायाधीश, आप कहाँ की फालतू बात ले बैठे!”

 “फालतू बातों को भी याद रखना ही पड़ता है.”पिलात मुड़ा, उसने अपने पीछे की कुर्सी पर पड़ा अपना कोट उठाया, उसमें से चमड़े का बैग निकाला और उसे मेहमान की ओर बढ़ा दिया. वह झुका, और उसे लेकर अपने कोट के अन्दर छिपा लिया.

 “मुझे दफनाने के विवरण का इंतज़ार रहेगा, साथ ही किरियाफ के जूडा के मामले के बारे में भी मुझे आज ही रात को बताओ. सुन रहे हो, अफ्रानी, आज ही. पहरेदार को मुझे जगाने की आज्ञा दे दी जाएगी...जैसे ही आप आएँगे. मुझे आपका इंतज़ार रहेगा.


तो, हाँलाकि इस अध्याय का शीर्षक कहता है कि न्यायाधीश ने जूडा को बचाने की कोशिश की, मगर वास्तव में उसकी हत्या की ही योजना बनाई है.



चलिए, देखें कि यह कैसे किया जाता है...
































 




 



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