चित्रकारी प्रतियोगिता

चित्रकारी प्रतियोगिता

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ये उस वक़्त की बात है जब मैं सातवीं में पढ़ता था और गलत सलत अंग्रेजी में कविताएं लिख ही लेता था पर इतनी भी अच्छी नहीं। उस समय तक आते आते मैंने चित्रकारी छोड़ दी थी क्योंकि मुझे उन चीज़ो में अब मन नहीं लगता था और मैंने कविताएं लिखना शुरू कर दिया था जो मेरे लिए एक बहुत ही अच्छी चीज साबित हुई। पर ये बात सिर्फ मुझे और मेरे प्रियमित्र अच्युत को पता थी। मेरे दोस्त ही नहीं बल्कि मेरे माता-पिता भी इस बात से अपरिचित थे। अच्युत ने मेरी बहुत सहायता की और मुझे मेरे लक्ष्य की राह दिखाई। वह एक संस्कारी और समझदार लड़का था। पढ़ाई और चित्रकारी में उसका कोई भी मुकाबला नहीं कर सकता था। उसके बदौलत ही आज में इतने बड़े मुकाम पर पहुंचा हूँ कि यह कहानी लिख पाया हूँ। उससे पहले तो मैं एक सीधा साधा भोला भाला डरपोक सा एक मामूली बच्चा था। पंद्रह अगस्त का दिन था। मारी कॉलोनी में हर साल इस दिन एक प्रतियोगिता आयोजित की जाती थी। मुझे खेल कूद में इतनी रुचि नहीं थी लेकिन यहाँ एक चित्रकला प्रतियोगिता भी रखी जाती थी और शायद आज के दिन भी यह प्रतियोगिता होगी बस यही सोचकर ही तो मैं आज यहाँ आया था।

 हमेशा की तरह आज भी हमारे कॉलोनी के बड़े से मैदान में यह प्रतियोगिता रखी गई। पूरे मैदान में बच्चे ही बच्चे थे क्योंकि यह प्रतियोगिता ख़ास बच्चों के लिए आयोजित की जाती थी। आज के दिन, कॉलोनी मे रहने वाले मेरे जितने भी दोस्त यार थे सब एक जगह इकट्ठा हुए थे, एक बड़े से मैदान में। सब के चेहरे पर उत्सुकता छाई हुई थी लेकिन मेरा मन इस बात को लेकर विचलित था कि क्या आज यहाँ चित्रकला प्रतियोगिता होगी और क्या मुझे उसमें भाग लेना चाहिए। अगर मेरा मज़ाक बन गया तो क्या होगा। लेकिन दो साल पहले मैं इसी प्रतियोगिता में प्रथम आया था बस इसी बात ने मेरा हौसला बढ़ाया और और मैंने उस प्रतियोगिता में भाग लेने कि ठान ली।  


मेरे दोस्त यार और मेरा छोटा भाई लक्ष्य भी मुझसे बार बार कहता रहा कि अगर मैंने हिस्सा लिया तो मैं ज़रूर जीत जाऊँगा पर मेरा मन नहीं मान रहा था। प्रतियोगिता शुरू हुई लेकिन पहले बच्चों की दौड़ होनी थी। मेरा भाई लक्ष्य ने अपने दोस्त चंदू के साथ तीन टंगड़ी वाले दौड़ में दौड़ने का फैसला किया लेकिन वे प्रथम तो नहीं आये पर उन्हें मज़ा बहुत आया होगा। मेरे दोस्त आशु ने मेरे समक्ष यह प्रस्ताव रखा कि मैं भी उसके साथ तीन टंगड़ी वाली दौड़ में दौड़ू लेकिन मैंने उसे मना कर दिया क्योंकि मुझे खेल कूद इतना पसंद नहीं था और आशु किसी और के साथ दौड़ा। पर मेरा मन तो बस इस बात कर लगा हुआ था कि वो चित्रकला वाली प्रतियोगिता होगी या नहीं। वैसे बच्चों कि दौड़ देखकर मज़ा आ रहा था। तीन टंगड़ी वाली दौड़ में अगर कुछ बच्चे वहीं गिर जाये तो देखने वालो का अच्छा खासा मुफ्त में मनोरंजन हो जाता था। और उसके बाद हुई जलेबी दौड़। कुछ लोग तो इसमें जीतने के लिए नहीं, बल्कि जलेबी खाने के लिए भाग लेते थे। हँसते हँसते पता ही नहीं चला कब बच्चों कि दौड़ खत्म हो गई। आखिर फिर वो घड़ी आ गई जिसका मुझे वर्षो से इंतज़ार था। चित्रकारी प्रतियोगिता शुरू होने को थी।  


मैंने देखा कि वहां कुछ बड़े लोग थे जो उन बच्चों को एक कतार में खड़ा कर रहे थे जो चित्रकारी प्रतियोगिता में भाग लेना चाह रहे थे। मेरा मन तो बिलकुल नहीं था लेकिन मेरा भाई और मेरे दोस्त मुझे ज़बरदस्ती मुझसे कह रहे थे कि मैं जाऊँ और उसमें हिस्सा लूँ क्योंकि उन्हें मुझपर भरोसा था। मैं ज़रूर जीतूँगा ऐसा उनका कहना था पर मैं चित्रकारी पहले ही छोड़ चुका था।  


फिर भी अपने दोस्तों के दबाव में आकर मैं आगे बड़ा और जाके उस लाइन में खड़ा हो गया। वहां सिर्फ मैं था और मेरे सामने चार बच्चे और थे जो उस प्रतियोगिता में हिस्सा लेना चाह रहे थे। मेरा एक दोस्त था सत्यम। वह उन चार बच्चों में से एक था। प्रतियोगिता शुरू होने ही वाली थी लेकिन मैं हमेशा कि तरह आज भी घर से पेंसिल और रंग लाना भूल गया था। तभी सत्यम ने मुझे बताया कि वह भी पेंसिल और रंग अपने घर पर भूल गया है। वह अपने घर जा रहा था तो उसने मुझे भी अपने साथ आने को कहा और वह मुझे अपने साथ अपनी साइकिल पे बैठाकर ले गया। मेरा घर तीसरी मंज़िल पर था। सीढ़ियों से ऊपर चढ़ के जाना फिर नीचे आना मेरे लिए बहुत संघर्ष वाला काम था। लौटते वक़्त मुझे वहां तक दौड़कर जाना पड़ा। हाँफते हुआ थका हारा मैं वहां पहुंचा तो देखा कि सत्यम और उन बच्चों ने चित्र बनाना शुरू भी कर दिया है। मैं दौड़कर उनके पास गया और उनके साथ बैठकर मैं भी शुरू हो गया। एक तो मैं पहले से इतना थक गया था ऊपर से अब उस सफ़ेद से पन्ने पर मैं क्या बनाऊ मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। तभी एक आदमी से मैंने पूछा "अंकल, हमें बनाना क्या है। "उन्होंने कहा कि हमें स्वतंत्रता दिवस से समबन्धित कुछ बनाना है। "

  

 मुझे ऐसा लग रहा थी कि वह सफ़ेद पन्ना जिसपर मुझे चित्र बनाना था, वह मुझे घूर रहा हो और मन ही मन मुझे चुनौती दे रहा हो कि मैं उसके ऊपर कुछ बनाकर दिखाऊ। थोड़ी देर तक सोच विचार करने के बाद मुझे एक उपाय आया। मैंने मन ही मन सोचा कि क्यों ना मैं वह चीज बनाऊ जो मैंने पिछली बार इस प्रतियोगिता में, इसी जगह बैठकर बनाई थी और मैं प्रथम आया था। फिर मानो मुझ में जोश आ गया हो, मैंने अपनी पेंसिल उठाई और लगा बनाने एक मोर। मोर का चित्र बनाते वक़्त मेरा ध्यान सिर्फ उस पन्ने पर था। मेरे दोस्त यार और बाकी बच्चे बार बार आकर हमें देख रहे थे। मुझे देख कर मेरे दोस्त यार कह रहे थे कि ' यह मैं क्या बना रहा हूँ,' इससे तो मैं पक्का हार जाऊँगा। मैंने उनकी बातों पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया। एक नीला प्यारा सा मोर बनाया जो अपने पर फैलाये हुआ था और वही खाली जगह पर सुन्दर शब्दों में लिख दिया ' नीलकंठ '। कैसे भी करके आखिर मैंने अपना चित्र खत्म किया। एक अंकल आये और एक तरफ से सबका पन्ना जमा किया। फिर मैं अपने दोस्त यार के बीच में गया। वे सब खड़े होकर हसीं मज़ाक करने मे व्यस्त थे। फिर मुझे देखके वे मुझसे कह रहे थे कि 'मैं ज़रूर जीतूंगा।'


कुछ तो कई बार मेरे पास आकर मुझसे कह रहे थे कि वे देखकर आए है कि मेरी चित्रकारी के लिए मुझे प्रथम घोषित कर दिया गया है लेकिन मुझे उनकी बातों पर बिलकुल यकीन नहीं हो रहा था। इस बात को लेकर मैं बिलकुल बैचैन था। देखते ही देखते वो घड़ी आ गई जब इस प्रतियोगिता का परिणाम घोषित किया जा रहा था। सारे बच्चे बिलकुल उत्सुक थे। पहले, दौड़ में जीतने वाले बच्चों के नाम लिए गए। जिस बच्चे का भी नाम लिया जाता, वह आगे जाता और अपना इनाम लेकर वापस अपने स्थान पर आ जाता। फिर बारी आई चित्रकारी प्रतियोगिता में भाग लेने वाले बच्चों का नाम बोले जाने की। उस प्रतियोगिता में सत्यम प्रथम आया। मुझे इस बात से दुख नहीं हुआ। फिर उसके बाद किसी और बच्चे का नाम लिया गया। मुझे इस बात का भी दुख नहीं था कि मैं दूसरे स्थान पर भी नहीं आया लेकिन उसके बाद मेरा नाम बोला गया। मैं तो हैरान था कि मैं तीसरा आया हूँ। लेकिन यह मेरी ग़लतफहमी थी। मैं आगे बढ़कर अपना इनाम लेने गया तो उन्होंने मेरे हाथ में एक नटराज की पेंसिल और एक तीन रूपए वाला रबड़ पकड़ा दिया।

  

ऐसा ही उन्होंने बाकी उन बच्चों के साथ किया जो इस प्रतियोगिता जीते नहीं, पर हिस्सा लिए। मैं शर्म से लाल लाल हो गया। मैं यह सब देख कर बिलकुल दंग रह गया। फिर मैं वापस लौटा जहाँ मेरे दोस्त यार खड़े थे। मेरे हाथ में पेंसिल रबड़ देखकर मेरे दोस्त मुझपर बहुत हँसे और वे सब ऐसा महसूस कर रहे थे कि मेरी वजह से उन सब की बहुत ज्यादा ही बेज़्ज़ती हो गई हो। उस वक़्त उनके मुँह से कुछ ऐसे शब्द निकले " क्या यश ! हमने तुम पर इतना भरोसा किया, तुमने ने तो हमारी इज़्ज़त मिट्टी में मिला दी। मैंने कहा था ना तुमसे, वह मोर बना देने से तुम नहीं जीत पाओगे। "उनके मुख से कड़वे शब्दों का निकलना तब बंद हुआ जब हर साल की तरह कुछ अंकल हाथ में टॉफियों की थैली लिए बच्चों की ओर आये और उन्हें टॉफिया बाँटने लगे। सारे बच्चे उनकी ओर झपट पड़े सिर्फ एक टॉफी पाने के लिए।

 

अपने दिल के दर्द को छुपाने के लिए मैंने भी ऐसा दिखाया कि मुझे उस छोटी सी प्रतियोगिता में हारने से कोई फर्क नहीं पड़ता और मैं भी फिर से अपने दोस्तों के साथ शामिल हो गया। घर लौटते वक़्त भी वे ताने दे रहे थे लेकिन मैंने अपने आप को सँभालते हुए उनके तानो के विष के प्याले को हँसते हुए पी लिया। लेकिन आज भी मुझे जब वह बात याद आती है तो मैं अपने आप को बहुत शर्मिंदा महसूस करता हूँ। मैं भले ही वहां हार गया था लेकिन मेरे प्रियमित्र अच्युत ने कहा था मुझसे कि"मैं जिस चीज के लिए बना हूँ मुझे उस चीज पर ही पर ध्यान देना चाहिए। लोग तो कहेंगे ही क्योंकि लोगो का तो काम है कहना। " मैं उड़ते हुए एक ही बार गिरा हूँ क्योंकि मैं गलत दिशा में उड़ रहा था इसका मतलब यह तो नहीं होगा कि मैं उड़ना छोड़ दूँ।  



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