STORYMIRROR

डाॅ. बिपिन पाण्डेय

Drama

1  

डाॅ. बिपिन पाण्डेय

Drama

छुट्टी

छुट्टी

2 mins
194


रविवार को जब सुबह के 9 बज गए तो सुधा ने अपने पति राकेश को जगाते हुए कहा, अजी उठो भी अब, कब तक सोते रहोगे?

राकेश ने बच्चों की तरह मनुहार करते हुए कहा-प्लीज सुधा, थोड़ी देर रुको,अभी उठता हूँ । वैसे भी, आज तो छुट्टी है।आज तो मन भर सो लेने दो। रोज़ाना तो उठ ही जाता हूँ जल्दी।

सुधा बोली,पर मेरी तो छुट्टी नहीं है। मेरी तो छुट्टी कभी नहीं होती।न सेकंड सैटरडे, न संडे।न होली पर और न दीवाली पर।न पंद्रह अगस्त, न छब्बीस जनवरी को।

राकेश ने कहा- अरे ये क्या कह रही हो! तुम कौन-से ऑफिस जाती हो ? छुट्टी तो नौकरी करने वालों की होती है!

सुधा ने समझाते हुए कहा, मैं पिछले सोलह साल से नौकरी कर रही हूँ।सोलह मार्च 2003 में मुझे अप्वाइंटमेंट मिला था।तब से अब तक कई बार प्रमोशन भी मिला।बेटी से पत्नी और बहू बनी, माँ बनी, मामी बनी,दादी और नानी भी बन गई।पर किसी की समझ में ये आया ही नहीं कि मुझे भी एक दिन की छुट्टी मिलनी चाहिए।

सुधा की बात सुनकर राकेश फौरन उठ बैठा।फटाफट नहा- धोकर तैयार हो गया और बोला, चलो, आज घूमने चलते हैं। नाश्ता और लंच बाहर ही करेंगे , शाम को डिनर करके वापस आएंगे।

सुधा ने समझाया,नहीं हम घूमने नहीं जा सकते।बच्चों के यूनिट टेस्ट चल रहे हैं। उनकी तैयारी भी तो करानी है।सुबह से शाम तक घूमते रहेंगे तो बच्चे कल टेस्ट कैसे देंगे।

सुधा की बात सुनकर राकेश उसकी तरफ बस देखता रह गया।उसके त्याग और समर्पण के समक्ष वह निरुत्तर था।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama