चालाक लौंभा

चालाक लौंभा

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बहुत पुरानी बात है कि एक नदी का महामंत्री जंगल के राजा शेर ने एक गीदड़ को नियुक्त किया था । उसकी इजाजत के बिना वहां पर कोई परिन्दा भी पानी नही पी सकता था । यदि किसी पक्षी को पानी पिना होता तो उस गीदड़ से आज्ञा लेनी पड़ती थी ।

एक दिन एक लौंभा जो कि सावन में उस नदी पर पानी पीकर गई थी । वह सावन की हिली-हिली फिर जेठ में पानी पीने के लिए आई तो वह गीदड़ को देखकर उससे कहने लगी-ओ जेठ जी, ये आपके बच्चें हैं जो पानी पीना चाहते हैं । इन्हें बहुत प्यास लगी है । और इन्हें पानी पिला दो ।

गीदड़ यह सुनकर बोला - देख भौडि़या, तुम तो जानती ही हो कि मैं कुछ लिए बगैर यहां पानी नही पीने देता, मगर मैं तुम्हारे पास क्या लूं । तुम्हारा पति होता तो भी कुछ लेता । अब तुम अकेली यहां आई हो तो एक गीत ही सुना दो । एक गीत सुने बगैर तो मैं तुम्हें पानी नही पीने दूंगा ।

लौंभा बोली ये बात है तो तुम इतने हिचक क्यों रहे हो । स्पष्ट क्यों नही कहते कि गीत सुनना है । चलो मैं अभी आपको गीत सुनाती हूं । सूनो-

सोना की तेरी चौतरी

रूपा ढाली हो

कानां में दो गोखरू

जनूं राजा बैठा हो ।

गीदड़ अपनी बडाई सुनकर फूला नही समाया । गीदड़ बोला- वाह भौडि़या, वाह । नहाले, धौ ले । खुद भी पानी पी, अपने बच्चों को पिला । नहला ले ।

अब तो लौंभा की खुशी का ठिकाना ना था । उसने अपने बच्चें नहलाए, उन्हें पानी पिया और उनसे कहा-बच्चों अब तुम सारे घर जाओ, मैं इस गीदड़ को सबक सीखाकर आती हूं ।

वह लौंभा नदी के दूसरे छोर पर थी और गीदड़ दूसरे छोर पर । लौंभा बोली-

जेठ जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, जो हमें इतनी गर्मी में पानी पीने दिया । अब मैं घर जाती हूं ।

यह सुनकर वह गीदड़ फिर से लौंभा से कहने लगा -भौडि़या जाते-जाते एक गीत और सुनाती जा । तेरी आवाज बहुत प्यारी है । यह सुन लौंभा बोली -

ठीक है जेठजी । लो सुनो गीत-यह कहकर लौंभा गीत गाने लगी ।

माटी की तेरी चौतरी

गोबर ढाली हो

कानां में दो लीतरे

जनूं नीच बैठा हो ।

यह सुन कर तो उस गीदड़ का खून खौल उठा । और झट से वह नदी के पुल की तरफ दौड़ा । पुल से होता हुआ जब वह लौंभा के पास पहुंचा तो लौंभा वहां से भाग कर एक पेड़ पर चढ़ चुकी थी । मगर यहां पर उस गीदड़ की तौंद उसे धोखा दे गई । जो कि उसने आम जंगलवासियों का खून चूसकर बनाई थी । गुस्सा तो गीदड़ को बहुत आया अपनी तौंद पर मगर अब वह कर भी क्या सकता था बेचारा । वह बेचारा पेड़ के नीचे ही बैठ गया और लौंभा के उतरने का इंतजार करने लगा । वह लौंभा से कहने लगा-

या मारी आलती, और या मारी पालती,

मेंह बरसेगा तब यहां से मैं हालसी ।

अब लौंभा सोचने लगी कि मेंह अर्थात बारिश तो सावन के महीने में होती है और अभी तो जेठ का महीना ही चल रहा है सो सावन का महीना आने के तो काफी महीने हैं । जब तक यदि यह गीदड़ यहीं बैठा रहा तो बच्चे भूखे मर जायेंगे । अब तो इसे यहां से हटाने का कोई उपाय मैंने सोचना होगा ।

तभी उसके दिमाग में एक युक्ति आई । वह पेड़ से देख रही थी कि आप-पास के खेतों में जमींदारों ने सन बो रखा था । वह पेड़ पर बैठी-बैठी आवाज लगाने लगी-वो आई मेरे मामा की बारात । वो आई मेरे मामा की बारात । तभी हवा ने भी उसका साथ दिया और एक तेज हवा का झौंका आया जिससे सन के सूखे बीज आपस में टकराने से आवाज निकालने लगे । और वह सन बाजे की भांति बनजे लगा ।

गीदड़ ने सोचा कि सचमुच इसके मामा की बारात आ रही है । कही इसने मुझे फंसवा दिया तो मैं बेकार में ही मारा जाऊंगा । यह सोचकर वह सन के खेतों में से ही दौड़ने लगा । अब वह गीदड़ जितना भी सन में से दौड़ता उतनी ही तेज वह सन बजता । इस प्रकार से प्रकार से वह गीदड़ डरता हुआ दौड़ता ही रहा । जब सारे खेत खत्म हो गये और आवाज आनी बंद हो गई तो एक जगह पर वह रूका । और अपने शरीर की हालत देखी । उसके शरीर का बुरा हाल हो चुका था । सारे शरीर में कांटें लगे हुए थे । हर बाल उलझा हुआ था । उसने भगवान का शुक्रिया किया क्योंकि आज बड़ी मुश्किल से उसकी जान बची थी । उसके बाद उसने किसी जानवर को तंग नही किया । अब वह सादा जीवन जीने लगा था ।


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