बुरा ना मानो होली है

बुरा ना मानो होली है

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मेरी दीदी के विवाह को अभी 2 महीने ही हुए थे कि होली का त्यौहार आ गया और उनके सब ससुराल के रिवाजों के अनुसार पहली होली अपने मायके में ही बितानी थी दीदी का मन तो जीजा जी के साथ ही होली मनाने का था आने के बाद हमने भी सोचा कि क्या किया जाए तो उनकी सास को फोन पर कहा कि हमारे यहां भी रिवाज है की पहली होली में दामाद जी घर आए और उनको आंगन में बैठाकर तिलक लगाकर ने दस्तूर किया जाता है तो उन्होंने भी हमारी बातों का मान रख कर हामी भर दी।

होली के 1 दिन पहले जीजा जी आ गए हमने उनको एहसास भी नहीं होने दिया जीजा जी थोड़े कड़क स्वभाव के थे। उन्होंने कहा कि देखिए आप सबको मैं बता देता हूं कि मुझे होली खेलना पसंद नहीं है क्योंकि आपके यहां रिवाज है।

इसलिए मैं आ गया सुबह होली के दिन हमने भी जीजा जी को चाय नाश्ता कराया फिर मैंने कहा कि मैं नहाने जा रही हूं।

आप सब अपने नहीं दस्तूर कर लीजिए और कलर की बाल्टी धीरे से लेकर छत पर चली गई मां ने उनको आंगन में बिठाया तिलक लगाया कपड़े श्रीफल देकर उनका मान किया। फिर दीदी से का तिलक बस लगवा लीजिए तो उन्होंने भी धीरे से कहा।

हां, दीदी जैसे ही उनके पास आई मैंने कलर से भरी बाल्टी दोनों के ऊपर डाल दी और जोर से बोली जीजा जी बुरा ना मानो होली है और दूसरा कोई नहीं आपकी साली है जैसे ही उन्हें उन्होंने मुझे ऊपर देखा और दीदी को हंसते देखा तो वह भी हंस पड़े और फिर तो पहली होली बहुत ही जमकर खेली गई।


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