STORYMIRROR

Poonam Atrey

Drama Tragedy

4  

Poonam Atrey

Drama Tragedy

बिगुल

बिगुल

7 mins
364

 ट्रिन.......ट्रिन.......अचानक फोन की घण्टी बजी ,अनुपमा आटे सने हाथों को धोकर जल्दी से बाहर आई।

किसी अननोन नम्बर को देख चौक गई फिर फ़ोन उठाकर बोली ,

हैलो.. कौन " उधर से आवाज़ आई ,क्या आप मानसी की मम्मी बोल रही हैं "।

जी हाँ "बोल रही हूँ आप कौन ??अनुपमा अनजाने भय से ग्रसित होकर बोली।

जी आंटी जी मैं रोशनी गर्ल्स हॉस्टल से उसकी रूममेट बोल रही हूं आप जितना जल्दी हो सके हॉस्टल में पहुंच जाइये।

क्या हुआ ""? लगभग रुआँसी होकर अनुपमा बोली।

 आप जल्दी पहुंचिए मैं फोन पर नही बता सकती।

मानसी अनुपमा की इकलौती बेटी थी जो दिल्ली हॉस्टल में रहकर mbbs की पढ़ाई कर रही थी। अनुपमा भी सिंगल मदर थी मेरठ में अपने पुस्तैनी मकान में रहती थी। और वहीं किसी कम्पनी में प्राइवेट जॉब करके अपनी बेटी को पढ़ा रही थी।

मानसी बचपन से ही पढ़ने में बहुत होशियार थी, डॉक्टर बनना उसका ख़्वाब था।

उसी ख़्वाब को पूरा करने के लिए वह दिल्ली में स्कॉलरशिप से पढ़ रही थी।

आज अचानक आये इस फोन कॉल ने अनुपमा को अंदर तक हिला दिया वह तुरंत कैब बुक करके दिल्ली के लिए निकल गई।

उसकी आँखों से अविरल आँसू बहे जा रहे थे।

किसी अनजानी आशंका से उसका मन बैठा जा रहा था।

इसी ऊहापोह में वह दिल्ली पहुंच गई मन बहुत जोरों से धड़क रहा था वह लगातार ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि सब कुछ ठीक हो और वह फोन कॉल झूठी हो या किसी ने मज़ाक किया हो।

सोचते सोचते ही वह कब हॉस्टल के गेट पर पहुँच गई उसे पता ही न चला।

 वहाँ एक अजीब तरह की शांति थी। वह जो जो आगे बढ़ रही थी उसकी धड़कने बढ़ती जा रही थी।

अचानक आगे लॉबी में कुछ हलचल दिखाई दी छात्राएं अलग अलग ग्रुप बनाकर फुसफुसा रही थी। कुछ तो हुआ है अनुपमा को लगा वो अभी गिर जाएगी पैर मानो जवाब देने लगे थे इसी ऊहापोह की स्थिति में वह मानसी के रूम तक पहुंच गई।

वहां पुलिस को देख अनुपमा और घबरा गई।

अंदर का दृश्य देख उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया।

मानसी की मृत देह उसकी आँखों के सामने थी। उसकी आवाज़ उसके गले में अटक कर रह गई।

उसे समझ नहीं आ रहा था कि नियति कैसा खेल खेल गई उसके साथ। रोते हुए वह वही जमीन पर बैठ गई।

मा......न.............सीsssssssssssssवह चीख उठी।

पल भर में ही उसका सब कुछ तबाह हो गया था।

रुँधे हुए गले से उसने वहां एक महिला पुलिस से पूछा " क्या हुआ मेरी बच्ची को ?

 मैडम हौसला रखिये होनी को कोई नहीं टाल सकता "! एक महिला 

कांस्टेबल बोली।

 "लेकिन आज सुबह ही तो मेरी बात हुई थी इससे ,अचानक क्या हुआ" अनुपमा ने रोते हुए पूछा।

आपकी बेटी ने सुसाइड किया है "पंखे से लटक कर उसने अपनी इहलीला समाप्त कर ली "।

  नहीईईईईईईई मेरी बच्ची सुसाइड नहीं कर सकती ,वो इतनी कमज़ोर नहीं थी कि मुश्किलों से भाग कर अपना जीवन समाप्त कर ले बहुत बहादुर थी मेरी बच्ची। मैं नहीं मान सकती ,जरूर उसके साथ कुछ और हुआ है ,वह बदहवास सी चिल्लाए जा रही थी।

 मैडम आप संभालिये अपने आप को , अभी पोस्टमार्टम में सब स्पष्ट हो जाएगा आप शांत रहिये प्लीज़ "। महिला कांस्टेबल उसे दिलासा देते हुए बोली।

एक ही झटके में अनुपमा का सब कुछ लुट गया था।

वह अपने ख़ाली आँचल को फैला कर बोली "मत् ले जाइए मेरी बच्ची को " लौटा दीजिए मेरी बच्ची मुझे मैं उसे कभी भी खुद से दूर नही करूँगी।

 एम्बुलेंस आ गई ,मानसी के मृत शरीर को स्ट्रेचर पर लेकर एम्बुलेंस में डाला गया। अनुपमा समझ नहीं पा रही थी कि क्या करें।

वह लगातार भगवान को कोस रही थी कि पूरी दुनिया में तुझे मुझ अभागन का घर ही मिला था लूटने के लिए। मेरी झोली में तो बस यही धन दौलत थी मेरी और तो कुछ नहीं था मेरे पास। तुझे उठाना था तो मुझे ही उठा लेता।

 पिछले कुछ दिनों से मानसी मानसिक तनाव में थी जिसे वह चाहकर भी किसी से साझा नही कर पा रही थी।

एक टॉपर स्टूडेंट अपने मस्तिष्क से लड़ रही थी। वह समझ नहीं पा रही थी कि क्यूँ दिन ब दिन उसका फोकस पढ़ाई से हटता जा रहा है।

 वह भीतर ही भीतर कमज़ोर पड़ने लगी थी।

हमेशा बुरे बुरे ख्याल उसके मन में आ रहे थे ,


एक परेशानी जिसे वह न खुद समझ पा रही थी न किसी से साझा कर पा रही थी ,और तो और वह अपनी माँ को भी इन सब परेशानियों से दूर रखे थी कि बेकार में माँ टेंशन लेगी।

सिजोफ्रेनिया जी हाँ एक ऐसा मेंटल डिसऑर्डर जिसमे इंसान को खुद पता नहीं चल पाता कि उसे हुआ क्या है। भय और झिझक के मारे वह किसी से अपनी परेशानी शेयर भी नहीं कर पाता।

पिछले महीने जब वह घर होकर आई तो अनुपमा ने उसके व्यवहार में परिवर्तन महसूस किया लेकिन यह सोचकर चुप हो गई कि शायद पढ़ाई का बोझ है इसीलिए ऐसा लग रहा है। वह पूरा एक हफ्ता वहां बिता कर आई लेकिन अपनी परेशानी न वह खुद समझ पाई और न उसकी माँ।


शाम तक पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आ गई और उसमें वही आया जिसे मानसी झेल रही थी और जब ज़्यादा कमजोर पड़ी तो उसकी देह ने उसका साथ देने से इनकार कर दिया और वह चुपचाप पंखे से झूल गई और इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गई।

 जब पोस्टमार्टम की रिपोर्ट अनुपमा के हाथ में आई तो वह खुद को संभाल नही पाई और अचेत होकर वहीं गिर गई। तब तक उसके अन्य परिवार जन भी पहुँच गए थे उन्होंने किसी तरह अनुपमा को सँभाला ,और मानसी की मृत देह लेकर मेरठ के लिए रवाना हो गए।

 अनुपमा को एक ही बात खाये जा रही थी कि मेरी बच्ची इतनी बड़ी परेशानी से जूझ रही थी और मैं माँ होकर भी अपनी बच्ची के लिए कुछ नहीं कर सकी।

मेरठ पहुंच कर ग़मगीन माहौल में मानसी का अंतिम संस्कार किया गया।

उसके बाक़ी संस्कार भी जल्द ही निपटा कर परिवारजन धीरे धीरे विदा होने लगे। अब अनुपमा को बाक़ी जीवन अकेले ही काटना था। जो बहुत मुश्किल था। जैसे तैसे हफ्ता महीना बीता ,लेकिन अनुपमा को एक एक दिन बहुत भारी दिखाई दे रहा था।

मानसी के पापा के गुज़र जाने के बाद मानसी ही तो आखिरी सहारा थी अनुपमा का, भगवान ने वह सहारा भी अनुपमा से छीन लिया था।

एक रात लेटे लेटे अनुपमा मानसी के साथ बिताए उन लम्हों को याद कर रही थी जो बहुत खुशनुमा गुज़रे थे।

फिर अचानक उसके मन में विचार आया कि न जाने कितने ही बच्चे बच्चियां इसी तरह मानसिक तनाव से दम तोड़ देते होंगे।

अगर ऐसी एक मुहिम चलाई जाए जिसमें स्कूल कॉलिज के सभी बच्चों को समय समय पर काउंसलिंग दी जाए तो काफी हद तक इस समस्या से निजात पाई जा सकती है और अगर एक बच्चे को भी बचाने में हम कामयाब हो जाये तो ये मुहिम। आगे बढ़ाई जा सकती है।

अगली सुबह अनुपमा के जीवन मे एक बदलाव लेकर आई और उसने अपनी बाक़ी ज़िन्दगी उन अंजान बच्चों के नाम कर दी जो मानसिक तनाव के चलते आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं वह अपने काम से निवृत्त होकर, स्कूल कॉलेजो में जाने लगी वहां के प्रिंसिपल से बात करती अध्यापकों से बात करती कि अगर किसी भी बच्चे के व्हवहार में परिवर्तन दिखाई दे तो तुरन्त उनके अभिभावकों को सूचित करें और एक अच्छे काउन्सलर से उसकी काउंसलिंग कराई जाए उसका जो भी खर्च होगा मैं वहन करूँगी । और अनुपमा की यह मुहिम रँग लाई उसी के शहर के कई बच्चे इस विकार से पीड़ित निकले उनका अच्छे से इलाज कराया गया। अनुपमा की इस पहल से और भी कई संस्थाएँ आगे आई सभी स्कूल कोलिजो में सम्पर्क किया जाने लगा। जिस स्कूल या कॉलिज में काउन्सलर नही थे वहां उनकी व्यवस्था कराई गई।

एक नेक काम का बिगुल जो अनुपमा ने बजाया था उससे कितनी ही मानसी अकाल मृत्यु के मुंह में जाने से बच गई।

अनुपमा की वह मुहिम आज भी जारी है और वह पूर्ण मनोयोग से ऐसे बच्चों से स्वयं भी बात करती है उन्हें प्रोत्साहित करती है।

और जितना संभव हो सहयोग करती है अपना पूरा जीवन उसने इसी काम को समर्पित कर दिया। ।

 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama