बहूजी
बहूजी
अक्सर सच और छद्म के बीच ही पनपता हैं असल जीवन। कई बार किरदारों का जीवन बेहद सच और कहीं सच से ज़्यादा कड़वा हो सकता है, कुछ ऐसा जीवन जीकर आज वो इस दुनिया से चली गई, अपनी भाभी के घर पर पिछले तीन महीनों से रह रही थी वो बूढ़ी विधवा औरत जो अभी थोड़ी देर पहले अपने बिस्तर पर बैठकर भाई और भाभी को बेटी की शादी का किस्सा सुना रही थी। हालांकि ये पहली बार नहीं जब वो ये किस्सा सुना रही थी पहले भी कई बार या यूं कहें कि करीब हर रोज वो ये दास्तां दोहराती, इसलिए कोई ध्यान भी नहीं दे रहा था, सभी अपने काम में लगे हुए थे लेकिन और वो छत की ओर निहारती हुई कहती जा रही थी कि बहू जी ना होतीं तो मोनी की शादी नहीं हो पाती, ये कहकर वो बहूजी को हजारों दुआएं देती और कहती मेरे पास उन्हें देने के लिए इससे ज्यादा क्या है सच था उसके पास दुआओं के अलावा कुछ था भी नहीं देने को बहू जी उसकी कहानी की अहम किरदार थीं जिनके घर वो काम करती थी सुबह दस बजे वो काम के लिए बहूजी के घर आती झाडू पोछा करती वहीं नाश्ता करती, देर तक बातें करती और घर चली जाती फिर दोपहर का खाना खाने भी बहूजी के घर ही आती अक्सर शााम का खाना वो अपने घर ही खाती पर जब उसे अपने घर में खाना नहीं मिलता तो आती थी और खाना खाने के बाद घंटों और कभी कभी आधी रात तक बैठी बाते करती रहती थी कहती बहूजी आप मेरी माँ जैसी ही लगती हैं उसकी बात सुनकर 'हट' कहकर बहूजी मुस्करा देतीं फिर वो सफाई देती हुई कहती हाँ सच में मुझे देखकर अंदाजा मत लगाइए वो तो बहुत सुन्दर थीं आपकी ही जैसी ये सुनकर बहूजी जोर से हंस देतीं ।
उसकी एक बेटी थी मोनी जो घर के काम करती थी और दो बेटे थे जो छोटा मोटा काम करते थे। उसकी बहन जो उसकी देवरानी भी थी और वो उसी के साथ रहती थी पति तो जवानी में ही स्वर्ग सिधार गया था लेकिन उसकी यादें आज भी उसके जहन में जिंदा थी और कई बार अपने पति को याद करते हुए वो गाना भी गुनगुना उठती
मोहे भूल गए सांवरिया,
आस लगाके ओ बेदर्दी लीन ना मोरी खबरिया
मोहे भूल गए सांवरिया
आज वो जब काम करने आई तो बड़ी खुश थी, सारा काम जल्दी जल्दी निपटा कर घर जाने की तेजी दिखाई तो बहूजी पूछ बैठीं
अरे आज बड़ी जल्दी में हो, लो नाश्ता कर लो।
वो मुस्कराते हुए बोली नहीं बहूजी आज मेरे घर में बहुत खाना बना हैं।
अच्छा बहूजी मुस्कराईं और चिंता जताते हुए कहा-- तुम्हारी बहन तुम्हे खाना देगी ?
इस पर वो तपाक से बोली आज तो देगी ही मुझे ना देगी तो बेटी को तो देगी ही, उसी ने खाना बनाया है दोनों का उसी में हो जाएगा।
बहूजी ने हैरान होते हुए कहा आज ऐसा क्या है ?
इस सवाल से उसकी आँखों में खुशी चमक उठी बोली - आज मेरी बेटी को लड़के वाले देखने आने वाले हैं।
अरे ये तो बड़ी खुशी की बात है तुमने पहले कुछ बताया ही नहीं चलो अच्छा है, मैं ना कहती थी ये सब एक संजोग है जब वक्त आएगा सब हो जाएगा
हाँ बहू जी सब आपका आशीर्वाद है ये कह कर वो जाने लगी जब दरवाजे पर गई बहूजी ने पीछे से आवाज लगाई सुनो वो पीछे मुड़ी तो बहूजी ने कहा- सब हो जाए तो मुझे बताना और खाना ना मिले तो बेहिचक आ जाना ।
ये सुनकर उसकी आँखे भर गईं उसने आकर बहूजी के पैर छू लिए बोली--- इसलिए कहती हूँ आप मेरी माँ जैसी हैं वो आज होतीं तो यही कहतीं और वो चली गई
दूसरे दिन आई तो लगभग खुशी से झूमते हुए बोली- बात तय हो गई बहूजी 6 महीने बाद शादी की तारीख है मैं क्या बताऊं बेटी को ऐसा लड़का मिलेगा मैंने सोचा भी नहीं था, बहन ने जब शादी की बात शुरू की थी वो कुछ नहीं करता था, लेकिन अब पता चला उसकी लॉन्ड्री खुल गई है, मोनी बड़ी किस्मत वाली है पता है बहूजी अंगूठी भी उसने अपने कमाई से पहनाई है मोनी को
बहूजी ने खुशी जताते हुए कहा – अच्छा ये तो बड़ी खुशी की बात है लो प्रसाद खाओ।
इसके बाद हफ़्तों वो अपनी बेटी की शादी की तैयारियों के बारे में बताती रहती और बहूजी उसे कई सामान याद दिलाती और जुटाने की नसीहत देती रहतीं।
बहूजी ने भी उसकी बेटी को देने के लिए सामान जुटाना शुरू कर दिया।
फिर एक दिन जब वो आई तो बड़ी दुखी थी बहूजी के पूछने पर बताया मेरी बहन और देवर सामान अच्छा नहीं खरीद रहे हमें बोझ समझते हैंमुझे और मेरे बच्चों को ताना अलग देते हैं ये कहकर उसकी आंखें डबडबा गईं फिर थोड़ी ही देर में आंखों में अंगारे भरकर वो बोली- मेरा पति धोखेबाज़ था बहूजी अगर वो आज होता तो मेरी हालत क्या ऐसी होती? इतना कहकर वो फूट फूटकर रोने लगी।
उसको इसतरह टूटते देखकर बहूजी ने समझाया- परेशान मत हो किसी के देने से नहीं होता तुम्हारी बेटी किस्मत में होगा तो उसे जरूर मिल जाएगा सांत्वना देकर बहूजी ने उसे घर भेज दिया।
उसी रात तीन बजे किसी ने बहूजी के घर का दरवाजा खटखटाया तो घर के लोग घबरा गए,,, अंदर से उनके बेटे ने पूछा-- कौन है बाहर।
तो वो बोली- बेटा हम हैं जल्दी दरवाजा खोलिए बहूजी हैं क्या ?
बहूजी ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला तो वो घबराई हुई खड़ी थी तेजी से बोली बहूजी मेरी बेटी को मेरी बहन मारना चाहती है उसके ऊपर मिट्टी का तेल डाल दिया है जल्दी चलिए बहूजी थोड़ी देर के लिए विचलित हो गईं लेकिन फिर संयमित होते हुए कहा देखो घबराओ मत सब ठीक हो जाएगा।
फिर उन्होंने अपने पति की ओर देखा।
उसने दोनों की ओर देखते हुए कहा- बहूजी इतनी रात को मैं उसे लेकर कहां जाऊंगी।
खुद को मजबूत करती हुई बहूजी बोलीं जाओ उसे ले यहां ले आओ।
इतना सुनते ही जैसे डूबते को तिनके का सहारा मिल गया वो बेटी को लेने तेजी से बाहर निकल गई।
उसके जाते ही बहूजी पर सवालों के बौछार होने लगे पति ने कहा अरे सावित्री ये क्या किया तुमने कहां रहेगी उसकी बेटी बेटा भी त्योरियां चढ़ाता हुआ बोला मां तुम भी अजीब काम करती रहती हो मगर बहूजी ने हर सवाल का एक जबाब देते हुए कहा किसी को कोई परेशानी नहीं होगी सब मेरी जिम्मेदारी है जिसके बाद सब नाराज होकर अपने अपने कमरों में चले गए और बहूजी यानी कि सावित्री बैठकर इंतजार करने लगी।
थोड़ी देर में वो अपनी सहमी हुई बेटी को लेकर आई सावित्री ने उसे खाना खिलाया और अपनी बेटी के कमरे में जगह दी।
दूसरे दिन वो सात बजे ही आ गई आज सुबह सबसे बड़ा सवाल उसकी बेटी की शादी थी बहूजी ने उससे लड़के वालों को बुलाने के लिए कहा उसने फ़ोन किया तो दोपहर तक वो सब आ गए सब एक साथ बैठे तो बहूजी ने लड़के वालों को पूरी बात बताई और फिर लड़के से मुखातिब होकर बोली क्या तुम बिना दहेज के शादी करोगे थोड़ी देर के लिए पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया लेकिन लड़के जब हां कहा तो सब खुश हो गए तय हुआ कि शादी 15 दिन बाद मंदिर में होगी
शादी की तैयारी शुरू हुई तो वो एक दिन धीरे से बहूजी से बोली---मेरा सपना था कि बेटी की बारात आए फिर चुप हो गई
अचानक चुप्पी तोड़ते हुए बहूजी ने कहा लड़के वालों को फोन कर दो कि बारात लाने की तैयारी करें वो अचकचा गई बोली नहीं नहीं बहूजी कैसे होगी तैयारी आप वैसे भी बहुत कुछ कर रही हैं।
बहूजी ने फिर सरलता से कहा तुम फोन कर दो उन्हें उसके बाद वो कुछ नहीं बोली और फोन करके लड़के वालों को सूचना दे दी।
आज सुबह से सावित्री थोड़ी गुमसुम बैठी थीं पति ने देखा तो पूछ बैठे क्या हुआ परेशान लग रही हो।
तो जवाब दिया-- कि बारात बुलाने की बात हुई है और तैयारी के लिए पैसे नहीं है पति पहले तो थोड़ा गुस्सा हुए लेकिन फिर बोले चिंता मत करो मै कुछ करता हूं उन्होंने कुछ समाजसेवकों को फ़ोन कर सारी बात बताई तो मदद की उम्मीद जगी शादी दो दिन बाद ही थी और अभी भी इतने पैसे नहीं थे की दुल्हन का सामान आ सके
सवित्री ने अपनी बेटी से कहा- सुनो अगर मैं ये अंगूठी बेच दू तो क्या इतने पैसे आ जाएंगे कि उसका ज़रूरी सामान आ जाए।
बेटी ने मां को परेशान देखा तो बोली अंगूठी बेचने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी मां, लाओ वो पैसे दिखाओ जो उसने जुटाए हैं।
कुछ आठ हज़ार हैं सावित्री ने कहा।
बेटी बोली चलो बाजार चलते हैं पहले उसके लिए कपड़े और ज़रूरी सामान ले आते हैं और दोनों बजार के लिए निकल पड़ी।
शाम को लौटी ते कुछ संस्थाओं के लोग घर में बैठे हुए थे जिसे देखकर सावित्री की खुशी की सीमा ना रही आँखों ही आँखों में उसने अपने पति का धन्यवाद किया।
अब तो शादी की तैयारियां जोर शोर से शुरू हो गई किसी के पास सांस लेने की फुर्सत नहीं थी।
और आखिरकार शादी का दिन आ गया शामियाना था, खाना बन रहा था, गाना भी बज रहा था दुल्हन तैयार हो रही थी सबकुछ संतोषजनक था
और फिर शाम को गाजे बाजे के साथ बारात आई उसके मुहल्ले के करीब सभी लोग शामिल हुए रस्में शुरू हुई लेकिन उसके मायके और ससुराल के लोग शामिल नहीं हुए अचानक जब बहूजी भी नहीं दिखी तो वो उन्हें बुलाने पहुंची।
देखा कि वो मोनी की विदाई की तैयारी कर रहीं थीं वो बोली आप चलेंगी नहीं तो सावित्री ने कहा अरे ये सब कौन करेगा तुम जाओ तुम्हारी वहां ज़रूरत है वो हुकुम का पालन करने के अंदाज में चली गई।
शादी के बाद बहूजी ने सुबह अपने घर भीगी आँखों से मोनी की विदाई की मोनी के जाने के बाद बहूजी के ही घर वो सो गई जब जगी तो उन्हें भर भर कर दुआएं देकर रोने लगी बहूजी की आँखे भी भर आईं।
और उस दिन से ये दास्तां उसके जीवन का हिस्सा हो गया वो सबको सुनातीजो आज भी वो दोहरा रही थी तभी पीछे से उसकी भाभी की आवाज आई दीदी खाना खा लो, तीन महीने से बीमार हो कोई देखने तक नहीं आया तुम्हें, जवाब में वो बोली--- अब कौन देखेगा बहूजी तो पता नहीं किस शहर चली गईं वो होतीं तो मुझे यहां बीमारी की हालत में यहां नहीं आने देतीं।
उसकी भाभी गुस्से से बोली— हां हां ठीक है हम तो कुछ नहीं हैखाना खा लो।
वो खाना खाने बैठी तो उसकी भाभी ने उसके सामने थाली पटक दी।
उसने थाली से रोटी का एक निवाला तोड़ते हुए प्यार से फिर अपनी भाभी से कहा- भाभी अगर तुम्हें कभी वो मिल जाएं तो उनसे कहना मैं उन्हें बहुत याद करती हूं बहूजी का बहुत एहसान है मुझ पर और ये कहते हुए उसके प्राण निकल गए।
