बहु रानी
बहु रानी
फूलों से सजी कार दरवाज़े पर रुकी। माँजी ने बहू की आरती कर विधि विधान सेग्रह प्रवेश कराया। किरण इस स्वागत सत्कार से बेहद ख़ुश है। बहू रानी सम्बोधनउसे बहूत अच्छा लगा। किरण विकास की दुल्हिन बन घर के काम काज में रम गई। बचपन से सुना है, अपने घर जाना है ! आज, उसे अपना घर मिल गया।किरणपूरे मनोयोग से घर को प्रेम से सींचने में जुट गई। घर सम्भालने को कलम छोड़, कलछी सम्भाल ली, सखियों को भूल सम्बन्धों को जोड़े रखने थे सो अपनी इच्छाएँनिचोड़ अरगनी पर डाल दीं। अब सवालों की जगह घर की हर छोटी बड़ी चीज़ का हिसाब रखने लगी है वो।
सारी ज़िंदगी मिसेज़ विकास बनी फिरती रही, विकास ठहरे पुराने ख़यालात के सो उन्होंने तो कभी किरण को उसके नाम से भीनहीं पुकारा वो तो बस किसी अजनबी की तरह सुनो कह कर पुकारते रहे।
आज फ़ोन की घंटी बजी मेरी बचपन की सहेली फ़ोन किया था वो कुछ दिन पहले हीएक समारोह में मिली थी वहीं मेरा नम्बर लिया था उसने मेरा नाम लेकर पूछा मेरेपाँच वर्षीय पोते ने रांग नम्बर कह कर फ़ोन रख दिया हमने पूछा अरे बँटी कौन थाकिसको पूछ रहा था ?
दादी कोई रांग नम्बर था किसी किरण के लिए,फिर एकमिनट रुक कर बँटी ने पूछा दादी आप का क्या नाम है ? दादी को मानो किसी नेअंदर तक झकझोर दिया हो, किरण अपने आप से पूछ बैठी आख़िर कौन हूँ मैं ? फिर ख़ुद को सम्भाल कर दादी मुस्करा दी....कई नाम हैं हमारे, कौन सा बताऊँ ? बहू रानी,विकास की दुलहिन,मुकेश की माँ, दादी इतने सारे नाम ...
किरण तो बरसों पहले ही सब में समाहित हो गई थी, लेकिन आज मन के सोएपड़े, एक कोने से आवाज़ आइ, कहाँ खो गई किरण ?
किरण मन ही मन बुदबुदाई शायद ये रॉग नम्बर ही था।