भोला - 3 ( समापन किश्त )
भोला - 3 ( समापन किश्त )
पुलिस चौकी से नीकल कर भोला एक पार्क के सामने लगे बेंच पर सो गया।
सुबह देर से नींद खुली थी। उठकर अब उसे कुछ काम धाम करने की चिंता सताने लगी। वहीं बैठे हुए सोचने लगा ‘अब हम क्या करें ? ‘ , कुछ देर बाद उठा और सामने की इमारत के सामने जाकर खड़ा हो गया। वहां एक बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था ‘यहाँ मेहनती आदमियों की जरूरत है‘ रहना खाना फ्री। ‘
बस क्या था भोला ने सोच लिया कि बस उसे यहीं पूछना चाहिए। संयोग से उसे जहां पूछना था वह ऑफिस खुली थी। ऑफिस के सामने जाकर इधर उधर देखा और किसी को न पाकर सीधे ऑफिस में घुस गया। अचानक उसको सामने देखकर ऑफिस में बैठा शख्स कुछ नाराजगी भरे स्वर में बोला ”क्या तुम्हें इतना भी नहीं मालूम कि किसी भी ऑफिस में घुसने से पहले आने की इजाजत लेनी पड़ती है ? ”
छूटते ही भोला बोल पड़ा ”अरे तो मैं कहाँ ऑफिस में रहने आया हूँ ? यही पूछने तो आया हूँ कि आपकी इजाजत हो तो अन्दर आ जाऊं ?”
सामने बैठा शख्स अपना सीर धुन कर रह गया। बोला ”और अन्दर आने की जरूरत नहीं है। बोलो क्या काम है ? ”
” लो जी ! आप हमसे ही पूछ रहे हो क्या काम है ? अरे भाई ! काम मिलेगा का बोर्ड लगाये आप बैठे हो और हम बताएंगे क्या काम है ? हाँ ! आप बताओ क्या काम है ” भोला ने अपना दिमाग चलाया तो सामने वाले का दिमाग घूम कर रह गया।
” अच्छा ! तो तुम काम के चक्कर में आये हो। बताओ क्या काम कर सकते हो ?” उस आदमी ने पूछ लिया था।
” अरे क्या साहब हम आपको कहीं से भी बेकार नजर आ रहे हैं ? ये कहो कि हम क्या नहीं कर सकते ? ईश्वर की दया से हम बहुत कुछ कर सकते हैं। दिमाग तो हमारा बचपन से ही बहुत तेज है। ” भोला ने थोड़ा गर्व से गर्दन ऊँची करते हुए बताया।
” अच्छा ये बताओ ! तुम गाड़ी चला लेते हो ? ”
” अरे ! क्या साहब ! आप भी ऐसा मामूली सा काम पूछ रहे हैं। गाड़ी तो हम बचपन से ही चला रहे हैं न ! छोटे थे एक टायर लेकर उसी का गाड़ी बनाकर चलाते थे। कुछ बड़े हुए तो अपने पड़ोसी बालु काका का ठेला हम ही तो ठेल कर चौराहे तक ले जाते थे और फिर रात को ले आते थे। रामलाल काका को भी अपनी बैलगाड़ी लेकर कहीं जाना होता था तो मुझे ही बुलाते थे। कहते थे ‘ तू बहुत बढ़िया गाड़ी हांकता है ‘ ” भोला ने पूरी जानकारी उस आदमी के सामने खोलकर रख दी।
” अच्छा अच्छा ! ठीक है। हम समझ गए। बेगारी काम कर लोगे न ? ” उस आदमी ने फिर पूछा।
” क्यों नहीं साहब ! ठीक है। ” भोला ने सहमति व्यक्त की।
” तुम्हें एक दिन के 25 रुपये मिलेंगे। मंजूर है ? ” उस आदमी ने पूछा था।
” ठीक है ! ” भोला को तो काम ही चाहिए था सो वह तुरंत ही तैयार हो गया।
” ठीक है अब बाहर जाकर खड़े हो जाओ। हमारा आदमी आएगा। वो तुमको काम बता देगा। ” कहकर उस आदमी ने उसे बाहर जाने का इशारा किया।
” अरे काम तो आपने बता ही दिया है। अब वो आदमी क्या बताएगा ? ” भोला ने प्रतिप्रश्न किया था।
वह आदमी अब तक काफी परेशान हो चुका था। अचानक झल्ला उठा ,” साले ! एक बार कहा हुआ तुझे समझ में नहीं आता ? तुझे बाहर जाने को कहा न ! ”
” अरे ! साहब ! आप भी मुझे जानते हैं। पहले नहीं बताया। .. अच्छा ! …..इसीलिए जब मैं अन्दर घुस आया था आपने कुछ नहीं बोला था। कोई बात नहीं मैं बाहर खड़ा हूँ। ” कहकर भोला बाहर निकल आया।
कुछ देर बाद एक आदमी आया। भोला और उसके साथ खड़े कुछ लोगों को अपने साथ लेकर एक निर्माणाधीन इमारत के पास ले गया। वहाँ एक दूसरे आदमी से मिलाते हुए बोला ” ये तुम्हारे मालिक हैं। ये जो बोलेंगे तुम्हें करना है और शाम को यही तुम्हें पैसे भी देंगे। ” कह कर वह आदमी चला गया।
भोला सभी मजदूरों के साथ बालू ढोने का काम करने लगा।
कुछ दिन भोला ने काम किया। उस इमारत में छत ढालने का काम चल रहा था। एक और आदमी सिर पर बड़ी सी टोपी लगाये मजदूरों को निर्देश दे रहा था। भोला ने साथी मजदूरों से पुछा ” यह आदमी कौन है ? कुछ कर भी नहीं रहा है। ख़ाली बात ही कर रहा है। मालिक इसको पैसे क्यों देगा ? ”
” अरे ये इंजीनियर है। मालिक इसको हम लोग से सौ गुना ज्यादा पैसा देगा। ” उस मजदूर ने बताया था।
यह बात भोला को हजम नहीं हुयी। आखिर वह आदमी कुछ कर भी नहीं रहा है और पैसे भी हमसे ज्यादा लेगा। यह क्या बात हुयी ?
दोपहर में भोजन के अवकाश में वह सीधे उस आदमी के पास पहुंच गया। नमस्ते करके उससे पूछ ही लिया ”आप हमारे साथ कुछ करते भी नहीं फिर भी मेरा साथी बता रहा था की मालिक आपको बहुत पैसे देता है। क्यों ? ”
“क्योंकि मैं इंजीनियर हूँ। ” उस आदमी ने बताया।
” ये इंजीनियर क्या होता है ? ” भोला ने पूछ लिया ” और वह करता क्या है ? ”
इंजीनियर ने समझ लिया था कि यह मंद बुद्धि इनसान इतनी जल्दी पीछा नहीं छोड़ेगा। वहीं नजदीक ही इमारत के एक खम्भे पर अपनी हथेली रखकर भोला से बोला ” अब तू मेरी हथेली पर पूरी ताकत से घूंसा मार फिर मैं बताऊंगा कि इंजीनियर किसे कहते हैं। ”
” यह कौन सी बड़ी बात है ? लेकिन चोट आपको लगेगी तो मुझे नहीं बोलना। मेरा घूंसा बड़े जोर का लगता है। ठीक है ? ” कहकर भोला ने पूरी ताकत से घूंसा मारा। जैसे ही उसने घूंसा चलाया इंजीनियर ने अपना हाथ वहां से हटा लिया।
भोला चीखकर वहीं नीचे बैठ गया। उसकी मुट्ठी खम्भे से टकराकर जख्मी हो गयी थी। वह आदमी उसकी तरफ देखते हुए बोला ” अब समझा ! इसी को इंजीनियर कहते है। ”
इंजीनियर के जाने के बाद भोला उठा और सोचने लगा ‘ अरे! बात ही बात में उस इंजीनियर ने मुझे बता दिया कि इंजीनियर किसे कहते हैं। इसका मतलब अब मैं भी इंजीनियर बन गया। अब चलो गाँव चलते हैं। यहाँ रहकर क्या फायदा ? माँ ने कहा था नाम कमा के आना। अब इंजीनियर बन के जा रहा हूँ अब इससे बड़ा नाम क्या होगा ? लेकिन जाने से पहले एक बार पुलिसवाले से मिल लेता हूँ।’
बस इतना सोचना ही था कि अगले दिन सुबह सुबह वह काम पर न जाकर अपने सारे सामान के साथ पुलिस चौकी पहुँच गया।
उसे देखते ही थाना इंचार्ज ने मेज की दराज से एक लिफाफा निकाल कर उसे देते हुए बोला ” भोला ! तुम्हारी वजह से वह इनामी बदमाश पकड़ा गया और पांच करोड़ का नशे का सामान भी बरामद हुआ है। सरकार ने खुश होकर तुम्हें यह इनाम दिया है। ”
भोला ने लिफाफा हाथ में लेते ही उसे खोलकर देखा। उसे उम्मीद थी उसमें कुछ पैसे होंगे। लेकिन पैसों की जगह उसमें एक कागज था जिसमें कुछ लिखा हुआ था। उसने निकाल कर देखा। उसपर स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया और एक जगह पच्चीस लाख मात्र हिंदी में लिखा था। भोला ने चेक के बारे में न कभी सुना था और न ही जानता था। सो मुंह बनाते हुए बोला ” अरे क्या साहब ! आप बताये सरकार बहुत खुश हुयी है तो हम समझे कि हमें कुछ इनाम मिला है लेकिन सौ दो सौ रुपये के बदले में यह कागज का टुकड़ा मिला है। क्या करें हम इसका ? ”
” अरे बेवकूफ ये कागज का टुकड़ा नहीं चेक है चेक ! ले जा इसे अपने बैंक के खाते में जमा करा देना बहुत सारा पैसा तेरे खाते में आ जायेगा। इतना पैसा कि तुझे जिंदगी भर कुछ नहीं करना पड़ेगा। ” इंचार्ज ने उसे समझाया था।
भोला सारी बात तो नहीं समझा लेकिन इतना अवश्य समझ गया था कि यह कागज बहुत कीमती है। सो इंचार्ज को सलाम कर वहां से निकल पड़ा।
भोला सीधे अपने गाँव पहुंचा और माँ के चरण स्पर्श कर बोला ” माँ ! तू जैसा बोली थी मैं ने वैसा ही किया। शहर में मेरा बहुत नाम हो गया है। सभी लोग मुझे जानते हैं। और देख ! सरकार ने तो मुझे इनाम भी दिया है। और हाँ ! मैं शहर में इंजीनियर भी बन गया हूँ। ”
उस छोटे से गाँव में भोला के बहुत पैसा कमा कर और इंजीनियर बन कर आने की खबर जंगल के आग की तरह फ़ैल गयी। लोग उससे मिलने के लिए आने लगे।
एक दिन गाँव के बहुत से लड़के उससे खेल के मैदान में मिले। कुछ लड़कों ने पूछ ही लिया ” अरे तू तो अभी जल्दी ही शहर गया था। इतनी जल्दी इंजीनियर कैसे बन गया ? कुछ करके दिखा जिससे हम मान जाएँ कि तू वाकई इंजीनियर बन गया है। ”
भोला ने इधर उधर देखा लेकिन मैदान में खम्भा कहाँ मिलता ? तुरंत अपना एक हाथ अपने गाल पर रखते हुए लड़कों से बोला ” देखो ! मैं अभी बताता हूँ इंजीनियर किसे कहते हैं। ” फिर एक मजबूत हट्टे कट्टे लड़के से बोला ” अब तू मेरे पंजे पर पूरी ताकत से मार। सबको पता चल जायेगा कि इंजीनियर किसे कहते हैं। ”
फिर क्या था ? भोला के हाँ कहते ही उस लड़के ने जोर का घूंसा चलाया और उसी क्षण भोला ने अपना हाथ अपने गाल पर से हटा लिया।
अब क्या हुआ होगा आप लोग खुद ही बेहतर समझ सकते हैं।
बस एक सबक है कि नक़ल में भी अकल की जरूरत होती है , यह कभी नहीं भूलना चाहिए।
।। इति शुभम।।
