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Gulshan Sharma

Inspirational

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Gulshan Sharma

Inspirational

बदलते वक्त

बदलते वक्त

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वो दिन भी बाकी दिनों की तरह कुछ आम ही था। हर दिन की तरह रमेश अखबार पढ़ रहा था कि खबर मिली कि उसकी बुआ जी की सास का देहांत हो गया है। उसके माँ पिताजी खबर मिलते ही निकल गए। रमेश घर पर ही रुका, दरहसल इलाके में चोरी चकारी की वारदातें ज़ोर पकड़ रही थीं। दिन और रात दोनों वक्त मानो चोरों के लिए एक समान होगए थे।


कल ही तो अस्पताल में वो लोग उन्हें देखकर आये थे। डॉक्टरों के अनुसार भी उनकी हालत में सुधार था पर आज की खबर देखो कौन सोच सकता था ऐसा कुछ होगा। ज़िन्दगी के गर्भ में क्या छिपा है सच में कोई नही बता सकता, आज की चिंगारी कल की आग और परसों की राख है। जिंदगी कितनी अस्थिर है इसका चिंतन वह कर ही रहा था कि उसके फ़ोन की घंटी बजी। फ़ोन के दूसरी तरफ उसके पुराने टीचर थे।


"कैसे हो रमेश बेटा", उन्होंने पूछा।"


"जी में ठीक हूँ पर आप कौन साहब बोल रहे हैं?”


तब उस व्यक्ति ने रमेश को अपनी पहचान बताई और साथ ही अपने फ़ोन करने का कारण। उसने बताया कि कैसे उसके रिश्तेदार के बेटे ने अचानक से आई.आई.टी की परीक्षा देने का विचार बनाया था। आर्थिक रुप से सक्षम न होने की वजह से कोचिंग तो नहीं दिलवाई जा सकती थी, पर रमेश, जिसने आई.आई.टी की परीक्षा दी थी, का मार्गदर्शन चाहते थे।


रमेश ने बहुत ही उत्साह के साथ उन्हें सब बताया और अपनी पुरानी किताबें देने की भी बात कही। पुरानी किताबें बहुत समय से यूँ ही पड़ी थी, जिन्हें वो कभी बेच नही सकता था पर किसी जरूरतमंद को देना ही उनका सही उपयोग होता। पुरानी किताबें झाड़ते झाड़ते, पुराना वक़्त सब रमेश की आंखों के आगे से गुज़र गया। वो पहला दिन, जब रमेश ने बड़ी उत्सुकता से उन किताबों को खरीदा था, कैसे उसने भी आई.आई.टी का सपना देखा था पर किन्ही वज़हों से जा नहीं पाया था। ज़िन्दगी कितनी तेज़ गुज़र रही थी।


अब वो क़िताबें रमेश के किसी काम की न थीं और ना ही वो सपने। अब उन किताबों से आगे बढ़ने का वक़्त आ चुका था। अब गुज़रे दिनों का बोझ कंधों से हटाने का वक़्त आ चुका था। हर किताब को साइड में रखते रखते एक एक करके आंसू के रूप में पुराना जो बरसों समेटा था, सब जा रहा था। याद आ रहे थे तो कुछ दोस्त, जो पता नहीं अब कहाँ थे। जो अब उसके फ़ोन नही उठाते थे, शायद आई.आई.टी जाकर बड़े आदमी हो गए थे या फिर रमेश की जगह उन्हें बेहतर दोस्त मिल गए थे। जो भी था, पुराना अब सब छूट रहा था।


कैसे सुबह एक ज़िन्दगी खत्म हुई, उस रिश्तेदार के रूप में जो सुबह में गुज़र गए? कैसे अब वो खुद अपने बीते कल का गला घोंट रहा था धीरे धीरे? उसका भी शायद अब नया जन्म जो होना था और आश्चर्य की बात ये थी कि अगले दिन उसका जन्मदिन था। आज एक पुराना रमेश मर रहा था, और कहीं दूर जहां ये किताबें जाने वाली थीं, एक नए सपनों से भरे रमेश का जन्म होने वाला था।


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