Sanjeev Jaiswal

Children Inspirational Drama

2.2  

Sanjeev Jaiswal

Children Inspirational Drama

बांसुरी वाला

बांसुरी वाला

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प्रधानाध्यापक ने घड़ी की ओर दृष्टि उठायी । भोजनावकाश का समय हो चुका था किन्तु चपरासी ने अभी तक स्कूल की घंटी नहीं बजायी थी। वे चपरासी को आवाज देने जा ही रहे थे कि तभी बांसुरी की लंबी तान सुनायी पड़ी।

  इसी के साथ जैसे चपरासी की नींद टूट गयी। उसने दौड़ कर भोजनावकाश की घंटी बजा दी। सारे बच्चे शोर मचाते हुये बांसुरी वाले की ओर दौड पडे ।

वो बांसुरी वाला 12 वर्ष का एक लड़का था।छोटी सी बांसुरी से ऐसी मधुर धुन निकालता कि बच्चे झूम उठते। पिछले कुछ महीनों से वो भोजनावकाश के समय स्कूल के बाहर आ जाता था। चपरासी भले ही घंटी बजाना भूल जाये लेकिन ठीक 11 बजे उसकी बांसुरी बजने लगती थी। उसके बाद बच्चों को कक्षा में रोक पाना मुश्किल होता था।

बांसुरी वाले ने स्कूल के बच्चों पर जैसे जादू सा कर दिया था। अपना-अपना टिफिन लेकर वे उसके पास पहुंच जाते और उसे घेर कर बैठ जाते। वो झूम-झूम कर बांसुरी बजाने लगता तो समय का पता ही नहीं चलता। बांसुरी की धुन पर कई बच्चे तो नाचने भी लगते थे। भोजनावकाश समाप्त होने के बाद वे बहुत मुष्किलों से स्कूल के भीतर वापस आते।

 प्रतिदिन उस लडके की दो-चार बाँसुरियाँ बिक भी जातीं थीं । बच्चे स्कूल के भीतर उन बांसुरियों को बजाने की कोशिश करते जिसके कारण अक्सर उन्हें डांट भी पड़ जाती थी। किन्तु बच्चों पर कोई फर्क नहीं पड़ता था। मौका पाते ही वे फिर बांसुरी बजाने के प्रयास में जुट जाते थे।

सारे बच्चे बांसुरी वाले के जबरदस्त प्रसंसक थे किन्तु कक्षा 6 के कक्षाध्यापक शास्त्री जी उसके सबसे बड़े दुश्मन थे। उन्हें लगता था कि अपनी बांसुरी बेचने के चक्कर में ये लड़का स्कूल के बच्चों को बर्बाद किये दे रहा है।उन्होंने कई बार उस लडके को डांटा-फटकारा था किन्तु वो जाने किस मिट्टी का बना हुआ था कि शास्त्री जी की डांट खाने के बाद भी रोज स्कूल के बाहर आ डटता

परेशान होकर शास्त्री जी ने प्रधानाध्यपक से शिकायत करनी शुरू की। पहले तो उन्होने ध्यान नहीं दिया किन्तु एक दिन भोजनावकाश में शास्त्री जी के साथ स्कूल के बाहर पहुँच गये।

 फटे पुराने कपड़े पहले बांसुरी वाला लड़का मग्न हो कर बांसुरी बजा रहा था और बच्चे उसे घेर कर नाच रहे थे। यह देख शास्त्री जी का पारा चढ़ गया ।उन्होंने चीखते हुये कहा,‘‘ देख रहे हैं आप, ये छोकरा स्कूल के बच्चों को बर्बाद किये दे रहा है। पढने-लिखने के बजाय सभी नचैय्या बने जा रहे हैं ।’’

शास्त्री जी की चीख सुन उस लडके ने अपने होठों से बांसुरी को अलग कर लिया और उनकी तरफ देखते हुये बोला,‘‘मैनें आपका क्या बिगाड़ा है जो आप रोज मुझे डांटने चले आतें हैं ।’’

 ‘‘मुझसे जुबान लडाता है । अभी बताता हूँ कि तूने क्या बिगाडा है’’शास्त्री जी अपनी बाहें चढाते हुये उसकी ओर लपके ।

‘‘शास्त्री जी, रूक जाईये। मुझे बात करने दीजये’’ प्रधानाध्यापक ने तेज स्वर में शास्त्री जी को टोका फिर उस लडके के करीब आ शांत स्वर में बोले,‘‘बेटा, मैं इस स्कूल का प्रधानाध्यापक हूँ। मैं चाहता हूँ कि कल से तुम यहाँ न आओ ।’’

यह सुन उस लडके का चेहरा कांप उठा। उसने अपनी बड़ी-बड़ी आंखो को उठा कर प्रधानाध्यापक की तरफ देखा। उसके होंठ कुछ कहने के लिये थरथराये फिर बिना कुछ कहे वो पीछे मुडा और तेजी से वहां से चला गया।

‘‘देखा, आपको कैसे घूर रहा था। लग रहा था कि कच्चा ही चबा जायेगा’’ शास्त्री जी बडबाये

शास्त्री जी कुछ और कहना चाह रहे थे किन्तु प्रधानाध्यापक ने उन्हें चुप रहने का इशारा किया और फिर अपने कार्यालय की ओर लौट पड़े । जाने क्योँ उन्हें लग रहा था कि उस लडके को यहां आने से मना कर के उन्होने अच्छा नहीं किया है । उस लडके की बडी-बडी आंखो में पता नहीं क्या था कि वे चाह कर भी उसे नहीं भूल पा रहे थे ।

  अगले दिन भोजनावकाश से पांच मिनट पहले शास्त्री जी प्रधानाध्यापक के पास आते हुये बोले,‘‘ देख लीजयेगा, ठीक 11 बजे उसकी बांसुरी फिर बजेगी ।

 ‘‘मैनें उसे मना कर दिया है । अब वो नहीं आयेगा’’ प्रधानाध्यपक के मुंह से अनायास ही निकल गया ।

 ‘‘मना तो मैनें भी कई बार किया है परन्तु वह जाने किस मिट्टी का बना है । मानता ही नहीं । रोज आ धमकता है’’ शास्त्री जी ने मुंह बनाया ।

 प्रधानाध्यपक ने कोई उत्तर नहीं दिया । बस एक गहरी सांस भर कर मौन हो गये ।

 भोजनावकाश हुये काफी देर हो गया था लेकिन आज बांसुरी की तान नहीं सुनायी पड़ी । शास्त्री जी का चेहरा प्रसन्नता से खिला जा रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे उस बच्चे को भगा कर उन्होने बहुत बड़ी सफलता पा ली है।

  धीरे-धीरे 15 दिन बीत गये बांसुरी वाला दोबारा नहीं आया। स्कुल के बच्चे 4-5 दिन तो बहुत परेशान रहे। सुनी सड़क पर टकटकी बांध कर उसकी प्रतीक्षा करते रहे फिर धीरे-धीर सब सामान्य हो गया ।

 आज अचानक इतने दिनों बाद ठीक 11 बजे बांसुरी की तान सुनायी पडी थी। इससे पहले कि प्रधानाध्यपक कोई निर्णय ले पाते शास्त्री जी तमतमाते हुये आये और बोले,‘‘मैं जानता था कि ये छोकरा बहुत बेशर्म है। देखिये फिर आ गया। अपनी बांसुरी बेंचने के चक्कर में ये स्कूल के बच्चों को बर्बाद कर डालेगा ।’’

   प्रधानाध्यपक ने कोई उत्तर नहीं दिया । वे अनिर्णय की स्थित में थे । तभी शास्त्री जी ने अपने तेवर तेज करते हुये कहा,‘‘ मैं अपने छात्रो को नाच-गाने में समय बर्बाद नहीं करने दूंगा । अगर आप कुछ नहीं करना चाहते तो मुझे बता दीजये । मैं आज इस छोकरे की टांगे तोड देता हूं । फिर दोबारा इधर कभी नहीं झांकेगा । ’’

 शास्त्री जी की बात सुन प्रधानाध्यापक के चेहरा सख्त हो गया। मेज पर रखा बेंत लेकर वे तेज कदमों से बाहर निकल पड़े । अपनी धोती संभालते हुये शास्त्री जी भी पीछे-पीछे दौड़ रहे थे ।

 स्कूल के गेट के पास वो लडका झूम-झूम कर बांसुरी बजा रहा था और सारे बच्चे उसे घेरे हुये थे । प्रधानाध्यपक को आता देख वो लडका सहम कर रूक गया । उसकी बडी-बडी आंखों में भय के चिन्ह उभर आये ।

 ‘‘मैनें तुमको मना किया था फिर क्यूं आ गया यहा। क्या बांसुरी बेचने के लिये तुम्हें कोई दूसरी जगह नहीं मिलती ’’ कहते हुये प्रधानाध्यपक ने एक बेंत उसे जड़ दिया ।

   उसने अपनी बड़ी -बड़ी आंखों से प्रधानाध्यपक के चेहरे की तरफ देखा । उन आंखों में पानी भर आया था । ऐसा लग रहा था कि चोट शरीर से ज्यादा उसके मन पर लगी है । कुछ कहने के लिये उसके होंठ थरथराये किन्तु आज फिर उसने उन्हें सिल लिया।

 आस-पास खडे बच्चों पर एक दृष्टि डालने के बाद उसने अपनी पलकों को पोंछा और बिना कुछ कहे वापस जाने के लिये मुड़ा। भयभीत हिरण जैसी उसकी आंखो को देख कर जाने क्योँ प्रधानाध्यपक को लगा कि उस दिन की तरह आज भी ये लड़का कुछ कहना चाह रहा है किन्तु कह नहीं पा रहा है ।

 किसी अन्जान भावना के वशीभूत होकर उन्होने उसके कंधे पर हाथ रख कर पूछा,‘‘तुम कुछ कहना चाह रहे हो ।’’

 स्नेह का हल्का सा स्पर्ष पाते ही सप्रयास रोक कर रखे गये आसूं बाहर छलक आये । प्रधानाध्यपक ने ध्यान से देखा कि 15 दिनों में वो लडका काफी दुबला हो गया था और चेहरे की चमक खो सी गयी थी ।उसके कपड़े तार-तार हो रहे थे। उन्हें उसकी हालत पर दया और अपनी कठोरता पर शर्म आने लगी। छोटे से बच्चे की रोजी पर लात मारना उन्हें बहुत गलत कामलगा।

 कुछ सोच कर उन्होने अपनी जेब में हाथ डाल कर कुछ रूपये निकाले और उसकी ओर बढ़ाते हुये बोले,‘‘लो इन्हें रख लो ।’’

‘‘सर,मैं भिखारी नहीं हूँ " वो लड़का फफक कर रो पड़ा । उसके सब्र का बांध टूट गया था ।

 प्रधानाध्यपक का मन अपराध बोध से भर उठा। उन्हें लगा कि उस लड़के के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचा कर उन्होंने अच्छा नहीं किया है। अतः बात बनाते हुये बोले,‘‘तुम मुझे गलत समझ रहे हो । दरअसल मैने तुम्हें यहाँ आने से मना किया है उससे तुम्हारा जो नुकसान होगा ये उसके बदले में है। रख लो तुम्हारे काम आयेंगे ।’’

 ‘‘सर, क्या आप भी समझते हैं कि मैं यहाँ बासुंरी बेच कर पैसा कमाने आता हूँ ’’ उस लडके ने डबडबायी आँखों से प्रधानाध्यपक की ओर देखा।

 उन आँखों में एक ऐसी कसक थी कि प्रधानाध्यपक को कोई जवाब नहीं सूझा। तभी उस लड़के ने कहा,‘‘मैं कक्षा पांच में पढता था।हमेशा अपनी कक्षा में प्रथम आता था तभी मेरे गरीब मां-बाप अपना पेट काट कर मुझे पढ़ाते थे। छः  महीने पहले अचानक एक दुर्घटना में उन दोनों की मौत हो गयी । उसके बाद मेरी पढाई छूट गयी ।पेट पालने के लिये मैने बांसुरी बेंचने का धंधा शुरू कर दिया। एक दिन घूमता-फिरता इस स्कूल की तरफ आ गया। इन बच्चों को देख मैं अपना दुख-दर्द भूल गया। इनके बीच आकर मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं एक बार फिर स्कूल में आ गया हूँ । इनके सानिध्य में मेरे अकेलेपान का एहसास कुछ कम हो जाता है बस इसी लिये यहाँ आ जाता था ।’’

इतना कह कर वो लडका क्षण भर के लिये रूका फिर हिचकियाँ भरते हुये बोला,‘‘जिस दिन से आपने मुझे यहाँ आने से मना किया है मैं न तो ठीक से खा पाया हूँ और न सो पाया हूँ । ऐसा लग रहा है कि मैं एक बार फिर अनाथ हो गया हूँ ।’’

 उस लड़के के मुँह से निकला एक-एक शब्द हथौडे की भांति प्रधानाध्यपक के अर्न्तमन पर पड़ रहा था। समय के थपेडों ने छोटे से बच्चे को कितना समझदार बना दिया था । उस की मदद करने के बजाय उन्होने आज उसे मारा था। अपनी करनी पर प्रधानाध्यपक का चेहरा शर्म से झुक गया ।

 उन्होंने शास्त्री जी की ओर देखा । उनका चेहरा भी आसुंओ से भीगा हुआ था। उस लड़के की कहानी ने उनकी आत्मा तक को झकझोर दिया था। उन्होने कांपते स्वर में कहा,‘‘सर, अगर आप अनुमति दें तो इस लडके को मैं अपनी कक्षा में भर्ती कर लूँ। इसकी फीस मैं भर दिया करूँगा ।’’

‘‘इसकी फीस आप नहीं भर सकते’’ प्रधानाध्यपक ने सख्त स्वर में कहा।

 ‘‘क्यों?’’ शास्त्री जी अचकचा उठे ।

‘‘क्योंकि इसकी फीस मैनें माफ कर दी है’’ प्रधानाध्यपक मुस्कराये ।

  ‘‘आप महान हैं सर’’ हमेशा तना रहने वाला शास्त्री जी का चेहरा किसी बच्चें की भांति प्रसन्नता से खिल उठा ।

   प्रधानाध्यपक ने शास्त्री जी बात का कोई उत्तर नहीं दिया और उस लड़के की तरफ मुड़ते हुये बोले,‘‘ फीस माफ करने के अलावा मैं तुम्हें किताबें भी दिलवा दुँगा लेकिन इसके बदले में तुम्हें एक काम करना पड़ेगा ।’’

  ‘‘आप आज्ञा दीजये। मैं पढ़ाई के लिये कोई भी काम करने के लिये तैयार हूँ ’’ उस लड़के की आँखों से गंगा-जमुना निकल पड़ी

  ‘‘प्रतिदिन सुबह प्रार्थना सभा में बांसुरी की धुन पर तुम्हें पूरे स्कूल को प्रार्थनायें सुनानी पडेंगी ’’प्रधानाचार्य ने बताया।

   यह सुन वो लड़का प्रधानाचार्य के पैरों में झुक गया लेकिन उन्होंने उसे रोक कर उसे अपने सीने से लगा लिया। उसकी पीठ थपथपाने के बाद वे उसका हाथ पकड़ कर स्कूल के भीतर चल पड़े ।

    शास्त्री जी और अन्य बच्चे पीछे-पीछे आ रहे थे । सभी की आँखों में प्रधानाध्यपक और बांसुरी वाले लडके के प्रति सम्मान का भाव था।

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