बाबा की कुंडली

बाबा की कुंडली

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घर छोड़ चला, मुँह मोड़ चला,

मुँह मोड़ चला बूढ़ा दगाबाज निकला।

दुख छोड़ चला, सुख मोड़ चला,

सुख मोड़ चला, बूढ़ा दगाबाज निकला।

ट्रेन द्रुत गति से दौड़ी चली जा रही थी। बाबा इस गाने को गुनगुनाते हुए आनंद के सागर में गोते लगा रहे थे। सारे यात्री बाबा से गुढ़ रहस्य जानना चाह रहे थे। काफी अनुनय विनय के बाद उन्होंने कुंडली के गुढ़ रहस्य का उद्घाटन करना शुरू किया।

एक-एक करके उन्होंने तंत्र, मंत्र, योग और साधना के आयामों को खोलना प्रारंभ किया। सारे यात्री किंकर्तव्यविमूढ़ होकर बाबा से कुंडली का रहस्य सीखने को तत्पर थे।

बाबा ने एक विशेषज्ञ की भांति बाबा गोरखनाथ से आज तक की भारतीय आध्यात्मिक जगत में तंत्र साधना में हुए पूरे विकास के क्रम को परिभाषित करना शुरू किया। कुण्डलिनी शक्ति जब जगती है तो साधक को क्या-क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए, इस बात पर पूरे विस्तार से चर्चा कर रहे थे।

बातचीत के क्रम में ये ज्ञात हुआ कि बाबा एक स्कूल के रिटायर्ड शिक्षक थे। पेंशन मिल रहा था। पत्नी गुजर चुकी थी। उनका एक बेटा सम्पन्न व्यवसायी था। अपनी पत्नी के साथ खुशी पूर्वक जीवन यापन कर रहा था। एक बेटी थी, उसकी शादी एक सरकारी मुलाजिम से हो चुकी थी। दुनिया की तमाम जिम्मेदारियों से मुक्त और पेंशन के द्वारा आर्थिक रूप से स्वतंत्र, बाबा भारत की यात्रा पर निकल पड़े थे।

उनका आध्यात्मिक प्रवचन जारी था इधर ट्रेन स्टेशनों पे रुकती, फिर बढ़ जाती। बाबा बीच बीच में गाने को गुनगुनाने लगते, फिर तंत्र मार्ग के रहस्यों को खोलने में लग जाते। यात्रियों के चेहरे पे विस्मय का भाव ज्यों का त्यों बना हुआ था।

एक नन्हे से बच्चे को ये सारी बातें समझ नहीं आ रही थी। कौतुहल वश पूछे गए उस नन्हे से बच्चे के प्रश्न ने बाबा जी की प्रवचन की श्रृंखला को तोड़ डाला। अब केवल ट्रेन की आवाज ही सुनाई पड़ रही थी। ट्रेन में सन्नाटा था।

बच्चे ने पूछा था, बाबा जी आपकी कौन सी कुंडली जगी हुई है...


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