और... बयार बहने लगी

और... बयार बहने लगी

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सुबह उठते ही उसे लगा प्रसन्न जा चुका है, कभी भी वापिस न आने के लिए। रात की बातें विजया की आँखों में फ़्लैश बैक की तरह घूम गईं ।रात के डिनर के बाद दोनों अपनी पसंदीदा जगह याने बगीचे की ओर खुलने वाली ओपन बाल्कनी में बैठकर ब्लैक कॉफ़ी की चुस्कियां ले रहे थे। ये समय होता था जब वे दोनों अपने ऑफिस में दिनभर में हुई बातों और घटनाओं को आपस में शेयर करते थे। बातों ही बातों में उसने प्रसन्न को बताया कि उसे आडी।बी।शोपिंग मौल में उसके कॉलेज टाइम की सहेली मिताली मिल गई थी और साथ में उसका तीन साल का बेटा विभोर भी था। जिसकी भोलीभाली बातों ने उसका मन मोह लिया था। और विजया उसके बेटे के बारे में बताते बताते कहीं खो सी गई। वो सोच रही थी कि वह प्रसन्न को कैसे बताये कि मिताली ने उससे बच्चे के बारे में पूछा था तो वह मौन साध गई थी। और मिताली समझ गई थी कि वह बच्चे के बारे में कोई बात नहीं करना चाहती है तो वह बात का टॉपिक चेंज कर देती है। फिर उसने बताया कि उसके हसबैंड का हाल ही में भोपाल ट्रान्सफर हुआ है। और वे न्यू मार्केट की स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ब्रांच के मैंनेजर हैं। वह विजया को बताती है कि वे गौतम नगर में रहते हैं। उसने फटाफट अपना मोबाइल नं और एड्रेस विजया को दिया और उसका लेकर चली गई क्योंकि उसके हसबैंड माधव के घर लौटने का समय हो चुका था। विजया को उसका अचानक मिलना बेहद सुखद लगा, वैसे भी उन्हें भोपाल में रहते हुए तीन साल हो चले थे पर उनका फ्रेंड सर्किल बेहद छोटा था। अपनी पुरानी सहेली को पाकर वह बेहद खुश थी। और उसके बच्चे ने तो उसका मन मोहित कर दिया था। वह प्रसन्न को मिताली के बारे में बता रही थी और फिर जब उसके बेटे विभोर के बारे में बता रही थी, तो अचानक उसने प्रसन्न को यह कहकर चौंका दिया- ‘ डियर! हम बच्चा कब प्लान कर रहे बन ?’

“ बातचीत में ये बच्चा कहाँ से आ गया ?”

अचकचाकर उसने प्रति प्रश्न किया। वास्तव में उसने जानबूझकर बच्चे का जिक्र छेड़ा था, उनके विवाह को चार साल से अधिक हो गया था, और प्रसन्न की मम्मी भी कभी कभी उसे फोन पर दादी बनने की इच्छा जाहिर कर चुकी थीं। पर वह अपनी सास को यह नहीं बता सकती थी कि वे दोंनों अपनी लाइफ को प्लान करके चल रहे थे। जिसमें बच्चे की प्लानिंग में प्रसन्न की इच्छा अधिक थी जिस पर विजया ने विवश होकर अपनी रजामंदी दी। एक अच्छी लाइफस्टाइल और आने वाले बच्चे को एक अच्छा जीवन देने पर दोनों सहमत थे। और इसी के चलते दोनों ने तीन साल में ये शानदार तीन बेडरूम वाला अपार्टमेंट भोपाल के हार्ट याने न्यू मार्किट में वो भी ग्राउंड फ्लोर पर खरीद लिया था। जहाँ उन्हें एक्स्ट्रा स्पेस ओपन बालकनी के रूप में मिल गया था। औअर इसकी आखरी किश्त उन्होंने दो महीने पहले ही चुकाई थी। यही बालकनी उनकी पसंदीदा जगह थी।

जहाँ वे रात के खाने के बाद अपने फुर्सत के पल बिताते थे। अन्यथा तो दोनों को दिन के समय जॉब में होने के कारण इतनी फुर्सत भी नहीं मिलती थी के वे आपस में बात कर सकें। पर आज बच्चे की बात ने प्रसन्न के मामन में कई सवाल खड़े कर दिया।

विजया कभी कभी बेहद उदास हो जाती थी, अभी पिछले ही महीने ही उसके पीरियड्स कुछ दिन ऊपर हो गए थे तो उसे लगा कि वो प्रेग्नेंट है। जबकी वे दोनों ही प्रिकाशन लेते थे। उसके मन में अम्मीद जागी कि शायद इस बार प्रसन्न से भूल हो गई हो वह मन ही मन मना रही थी कि भगवान् करे ऐसा ही हो। जब कुछ दिन और भी हो गए तो उसने डॉक्टर के पास जाने का निश्चय किया। उसने चेकउप कर बताया कि प्रेग्नेंन्सी जैसी कोई बात नहीं थी। ये कोई और प्रॉब्लम के कारण भी हो सकता था। जबकि उसे अपने अन्दर गर्भावस्था वाले कुछ लक्षण दिखाई देने लगे थे तो उसकी ख़ुशी दोबाला हो गई थी। उसे लगा कि प्रसन्न को बताना चाहिए, पर साथ ही डर भी रही कि वह कैसे रियेक्ट करेगा? वह डॉक्टर से सहमत नहीं थी। टेस्ट हो जाने के बाद डॉक्टर ने बताया कि ये सब ‘फाल्स प्रेग्नेंसी’ के भी लक्षण हो सकते हैं। “ बात कुछ और भी हो सकती है? अच्छा ही है कि आप कुछ और भी टेस्ट करवा लें”, कहते हुए उसने पेल्विक एग्जाम और अल्ट्रा साउंड करवाने को कहा। अब वह चिंता में पड़ गई। टेस्ट करवाने के बाद पता चला कि उसके यूट्रस में कुछ फोइब्रोइड्स हो गए हैं जो कि वैसे तो चिंता की बात नहीं थी और दवाईयों से ठीक हो जानी थी। पिरियड्स की समस्या भी इसी कारण हो रही थी। डॉक्टर उसे सलाह देती है कि वो एक साल के भीतर बच्चा प्लान कर ले, अन्यथा पैंतीस साल की उम्र के बाद गर्भधारण में बहुत परेशानियाँ आती हैं। इतना सब हो जाने के बाद भी वह प्रसन्न को अपनी इस हालत के बारे में वह नहीं बताना चाहती थी पर उसे लगने लगा कि यदि अब नहीं बताया तो कहीं देर न हो जाये यही सोचकर वो आज रात खाना खाने के बाद उससे बात करने की सोचती है। यही कारण था कि कोफ़ी पीते हुए उसने मिताली का जिक्र छेड़ा था कि उसे बात करने में आसानी हो। जबकि प्रसन्न इस तरह के जिक्र से बचना चाहता था और वो उसकी बात में रूचि नहीं दिखा रहा था। उसके हिसाब से बच्चे के लिए अभी दो साल सोचना भी नहीं था। वैसे भी दोनों ने तीस साल की उम्र में विवाह किया था और जाहिर तौर पर ये दोनों की लव मैरिज थी और दोनों परिवारों की सहमति होने से उन्हें किसी भी मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा। पर उसे प्रसन्न से अपनी इस प्रॉब्लम को शेयर तो करना ही था, उसने डॉक्टर की ओपिनियन उसके सामने राखी तो वह उसकी खिल्ली उड़ानी चाही, तो उसने गंभीर होकर कहा- “ नहीं पी ! ( वह उसके जब भी कोई जरुरी बात करनी होती तो इसी नाम से बुलाती थी ) इसे मजाक में मत लेना, डॉक्टर मुझे साफ़-साफ़ कह चुकी है कि मै एक साल के अन्दर बच्चे के बारे में सोच लूं। अभी भी मेरे पीरियड्स के कुछ दिन अधिक होने पर डॉक्टर को दिखाया तो उसने यूट्रस में।

कुछ कम्पलीकेशन बताई हैं और मै उसका ट्रीटमेंट करवा रही हूँ।” वह समझ गया कि अब इस बात को टाला नहीं जा सकता, पर वह अब भी अपनी प्लानिंग के हिसाब से चलना चाहता था। “ अभी हमें कार लेनी है और फिर एक साल के अन्दर कुछ फिक्स डिपाजिट भी करना हैताकि बच्चे का फ्यूचर सिक्योर कर सकें”, उसने अपनी बात रखनी चाही।

“ फ्यूचर। फ्यूचर ! जब देखो फ्यूचर” अचानक वह गुस्से से फट पड़ीऔर उसकी आवाज रुंघ गई। प्रसन्न उसे एकटक देखता रह गया। सदैव शांत रहने वाली, उसके हर फैसले पर सहमत हो जाने वाली विजया का यह रूप उसके लिए चौंकाने वाला था। अचानक उसे लगा कि वह आज तक उसकी इच्छा जाने बिना ही अपनी मर्जी उसपर थोपता आया है। उसने उनकी मानसिक मनोदशा को कभी समझने की कोशिश ही नहीं की। वही वह आज भी कर रहा था। और उसके अहम् ने फिर सर उठाया और उसने जैसे ही विजया के सामने अपनी बात रखनी चाही- “ देखो डार्लिंग! अब केवल दो साल बचे हैं उसके बाद ही हम बच्चे के बारे में फाइनल करेंगे। हम अपनी प्लानिंग के मुताबिक ही चलेंगे।”

“ हम नहीं केवल तुम।! अभी तक तुम्हारे हर फैसले में मैंने इच्छा न होते हुए भी साथ दिया।। कभी तुमने ये जानने की कोशिश भी नहीं कि की मै क्या चाहती हूँ? तुमने केवल वाही किया जो तुम चाहते थे।।” उसकी आवाज पनीली हो चली थी। उसके इस रूप को देखकर उसे एक पल के लिए लगा की वह वास्तव में उसके साथ ज्यादती कर रहां था।

“ मै तुम्हें बता चुकी हूँ कि डॉक्टर मुझे वार्न कर चुकी है कि इस साल बच्चा अगर कंसीव नहीं किया तो आगे कंप्लीकेशन आ सकती है या फिर बच्चा ही न हो! वैसे भी कर तुम्हें मेरे साथ डॉक्टर के पास चलना है। उसने मुझे चेकअप के ल्लिये बुलाया है”, उसकी आवाज में ठहराव था।

“ मै क्यों।?”, अचकचाया हा वह बोला।

“ तुम्हें चलना ही होगा, डॉक्टर ने दोंनों को एकसाथ बुलाया है। मुझे जो प्रॉब्लम है उसकी गंभीरता को तुम भी समझ सकोक्या तुम पिता नहीं बनना चाहते?”, उसके इस सवाल से वह चौंक गया। उसने कभी इस तरह सोच ही नहीं था। आजतक केवालापने कैरियर और फ्यूचर प्लानिंग के अलावा कुछ भी नहीं सोचा था। वैसे भी पुरुष प्रायः पिता बनने की इच्छा को नकारते ही हैं और इसे एक बोझिल जिम्मेदारी मानते हैं, पर जब पत्नी की प्रेगनेंसी का पता चलता है तो बेहद खुश भी होते हैं। पुरुष की मानसिकता ही ऐसी है कि वे घर की जिम्मेदारियों से मुँह मोड़े रखना चाहते हैं। यही कारण था की कैरिएर ओरिएंटेड प्रसन्न बच्चे की जिम्मेदारी से दूर भाग रहा था। वो ये समझने को तैयार ही नहीं था

कि माँ बनना विजया का नैसर्गिक अधिकार है। यही कारण था कि वह आजकल कुछ खोई-खोई से रहती थी पर कभी भी प्रसन्न ने यह जानने की कोशिश ही नहीं की कि उसके साथ क्या हो रहा है या उसके मन में क्या चल रहा है? विजया के मन की हर बात जान लेने वाला प्रसन्न क्या वास्तव में इतना हृदयहीन हो चुका था कि उसकी संवेदनाएं उसके प्रति ख़त्म हो चुकीं थीं। बहरहाल विजया हर हालत में माँ बनना चाहती थी और उसकी ये इच्छा विभोर को देखने के बाद और भी बलवती हो चुकी थी। केवल वह ही नहीं उसके और प्रसन्न के माता-पिता अपने नाती-पोते की इच्छा को कई बार प्रकट कर चुके थे। आज जो प्रसन्न बच्चे की पंचवर्षीय योजना बना कर चल रहा था, वही दो साल बाद उसके माँ न बन पाने पर उसे ही ताना मारेगा। आखिरकार वो मर्द ही है; चाहे उसके प्यार का कितना ही दम भर ले- अगर कोई ऐसी स्थिति आ गई तो वह उसका साथ देगा, इसमें संशय था। और डॉक्टर की चेतावनी ने उसे अंदर थक हिला दिया था। उसने मन-ही-मन एक फैसला लिया और इसकी भनक भी उसने प्रसन्न को नहीं लगने दी।

उसके फैसले का नतीजा दो महीनों बाद उसके सामने था क्योंकि पिछले दो महीनों से उसने एक भी टेबलेट नहीं ली थी। उसने अपनी प्रेगनेंसी को कन्फर्म करने के लिए घर पर ही प्रेगनेंसी टेस्ट किया और पॉजिटिव रिजल्ट निकलने पर उसकी ख़ुशी का कोई पारावार नहीं था। बस अब उसे डॉक्टर से कन्फर्म करवाना बाकि था। डॉक्टर ने उसे कन्फर्म कर दिया और साथ में ये हिदायत भी दे डाली कि उसकी नार्मल नहीं है बल्कि उसे बेहद सावधानी बरतनी होगी। ये बात उसकी ख़ुशी को कम न कर सकी। वो बच्चे की कल्पना में डूबी घर पहुंची और उसने आज प्रसन्न के लिए अपने हाथों से डिनर बनाने की सोची। ये खबर बज प्रसन्न सुनेगा तो उसके रिएक्शन के बारे में सोचकर ही वो मायूस हो गई और उसे दो महीने पहले हुई दोनों कीई तकरार याद हो आई। पर उसे बताना भी जरुरी था। उसने आज ऑफिस से जल्दी छुट्टी ले ली थी और उसे अब प्रसन्न के आने का बेसब्री से इन्तजार था। शाम को वह जब अपने रोजाना के समय पर लौटा तो विजया ने उसे देर से आने का ताना मारा तो उसे ताज्जुब हुआ और केडल लाइट डिनर ने उसे आश्चर्य में डाल दिया। अब उसने विजया की तरफ गौर से देखा तो उसके मुँह से सीटी निकाल गई। “ क्या बात है? डार्लिंग! किसका क़त्ल करने का इरादा है”, उसने आँख दबाते हुए पूछा, जिससे वह थोडा लज्जा गई। “ कुछ भी नहीं! बस तुम फ्रेश होकर आ जाओ फिर हम साथ में डिनर करेंगे”, वह अधीरता से बोली।

“ ओ के बॉस!” कहता हुआ वह बाथरूम में घुस गया। अपनी पसंदीदा डिशेस देखकर उसकी बांछे खिल गईं। “ आज तो यार! मेरा क़त्ल करने का तुमने पूरा इरादा कर लिया है। क्या बात है बताओ न ?

सस्पेंस क्यों रखा है।” उतावला सा वह बोला। वह केवल मुस्कराकर रह गई। उसे पता है कि उसे ये खबर कब बतानी है। आज बहुत दिनों के बाद दोनों के बीच पसरा टेंशन और अबोलेपन का ग्लेशियर धीरे-धीरे पिघलना शुरू हुआ था। और इसके लिए पहल भी उसी ने की थी। पति-पत्नी के बीच कितनी भी तकरार या अबोलापन आ जाए इसे दूर करने की पहल अक्सर नारी को ही करनी पड़ती है। पुरुष का अहम् शायद उसे ऐसी पहल की इजाजत नहीं देता।

डिनर के बाद वह कोफ़ी बनाकर ले आती है। और दोनों अपनी पसंदीदा जगह पर बैठकर पीने लगते हैं । प्रसन्न अब उससे आज के डिनर की वजह जानना चाहता है, वह थोड़ी देर खामोश रहती है और फिर ‘ कुछ भी नहीं कहकर ‘ बात को टालना चाहती है। पर वह समझ जाता है कि बात कुछ गंभीर ही है। वह थोडा संजीदा हो जाता है और उसका हाह अपने हाथ में लेकर सहलाने लगता है। “ क्या बात है बातो न ?”, वह इसरार करता है।

“ एक खुशखबरी है पता नहीं तुम सुनकर कैसे रियेक्ट करोगे ?” उसने व्यग्र भाव से कहा।

“ अरे यार! सस्पेंस मत क्रिएट करो जल्दी बातो”, उसके स्वर कि अधीरता ने विजया को हौसला दिया।

“ मै एक्स्पेक्ट कर रही हूँ” ये बताते हुए उसका चेहरा ख़ुशी से दमक उठा।

“ क्या एक्स्पेक्ट कर रही हो ?” उसने उलझन भरे स्वर में पूछा।

“ मै माँ बनाने वाली हूँ”, वह बोली। कमरे में जैसे धमाका सा हुआ और फिर ख़ामोशी पसर गई। हकबकाया सा वह विजया का चेहरा देखता रह गया उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रह था । “ कब ?”, उस्के मुँह से अस्फुट सा स्वर निकला, “ आज ही डॉक्टर ने कन्फर्म किया है”, वह अपनी ख़ुशी छिपा नहीं पा रही थी और उसके पास प्रसन्न के चहरे पर उमड़ आये भावों को देखने तक की फुर्सत नहीं थी।

“ तुम इस बच्चे को अबो्र्ट कर दो”, उसके मुँह से अस्फुट सा स्वर निकला।

“ तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया, कैसे बाप हो तुम ? ऐसा सोच भी कैसे लिया। तुम्हें नहीं पता डॉक्टर ने क्या कहा थाऔर तुम चाहते हो”, वह मानों बिखर सी गई और हिलक-हिलक कर रोने लगी।


“ मै कुछ नहीं जानता ये तुम्हें करना ही होगा।।” उसके अन्दर का आदिम पुरुष अपने पूरे उन्माद पर था। आख़िरकार वह कितना भी पढ़ा लिखा और कितना भी रोशन ख्याल था, पुरुष सत्तात्मक समाज का अंग था और ये उसके खून में शामिल था। वह किसी भी हालत में अपनी बात को मनवाना अपना अधिकार समझता था और फिर वो नारी जो उसकी पत्नी हो, उसके मुँह से इनकार तो नाकाबिले बर्दाश्त था।

“ ऐसा किसी भी कीमत पर नहीं होगा”, विजया के भीतर की माँ उस आजन्में बच्चे के अधिकार के लिए अविचल खड़ी हो गई। उसकी निश्चयात्मक मुद्रा ने प्रसन्न को सोचने पर मजबूर कर दिया पर उसका अहम् इस बात को नहीं मान रहा था। उसने एक प्रहार और किया। “ यदि तुमने ऐसा नहीं किया तो।” उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी। वह मानों उसके अस्तित्व को पूरी तरह से नकार देना चाहता था। “ क्या करोगे? छोड़ दोगे?”, विजया की आवाज में अविश्वास था।

“ ठीक है।! मैंने तय कर लिया है। ये बच्चा मै अबो्र्ट नहीं करुँगी। इसे मै अकेले ही पाल लूंगी।”, उसकी आवाज में एक शिकन भी नहीं थी।

“ यदि तुमने ऐसा किया तो।! हम दोनों के रास्ते अलग हो जांयेंगे”, उसका चोट खाया पुरुषत्व मानो विजया के प्रति अपनी सारी संवेदनाएं ख़त्म कर देना चाहता था। उसका अहम् इस बात को मानने को तैयार ही नहीं था कि विजया उसकी बात को टालने की हिमाकत भी कर सकती है।

“ ठीक है तुमने फैसला कर ही लिया है तोकल से हमारे रास्ते अलग हो जायेंगे। मै सुबह होते ही अपना अलग इंतजाम कर लूँगा।।”, अपना फैसला सुनाते हुए वह घर से बाहर निकल गया। विजया को लगा मानों चारों और शून्य सा उभर आया हो। उसके हाथ-पैर कांपने लगे और बड़ी मुश्किल से स्वयं को सम्हाला और सोफे पर बैठ गई। अचानक ही वह हिलक-हिलक कर रोने लगी, कमरे में उसके रुदन का स्वर गूंज रहा था जिसे केवल वो ही सुन पा रही थी। उसके दस साल के प्यार, समपर्ण और विश्वास का प्रसन्न ने ये सिला दिया था। उसकी एक हिचकी पर भी परेशान हो जाने वाल प्रसन्न आज इतना हृदयहीन और संवेदनहीन हो गया था कि वह उसकी मानसिक स्थिति को भी समझने से इनकार कर रहा था, मानों उसके अस्तित्व उसके लिए कोई मायने नहीं रखता। वह अपने फैसले पर दृढ़ थी, यह प्रसन्न का ही दुर्भाग्य था कि वह उसके प्यार को नहीं समझ पाया। वह थके क़दमों से बेडरूम में घुसी और सोने की कोशिश करने लगी, उसकी सारी रात आँखों ही आँखों में कट गई। सुबह वह जब उठी तो उसे यकीन था की वह जा चुका होगा। वो फ्लैट में ख़ामोशी पसरी होने का अनुमान लगा रही थी। उसे किचिन में खटपट की आवाज सुने दी तो वो थोड़ा सहम गई। उसे पता था कि प्रसन्न जा चुका है, वह हिम्मत करके किचिन के दरवाजे तक गई और वहीँ थम कर रह गई। अन्दर प्रसन्न कॉफ़ी बना रहा था, उसने शायद सुके जागने की आहात सुन ली थी। उसने किचिन से ही आवाज लगाईं- “ उठ गई वीजे ! कॉफ़ी इस रेडी”। वह प्यार से उसे इसी नाम से बुलाता था। उसकी उत्फुल्ल आवाज सुनकर लग ही नहीं रहा था कि यह वाही प्रसन्न है जो रात को अपनी संवेदनहीनता से उसके अस्तित्व को तार-तार कर चुका है।

“ तुम्हारी पसंद की कॉफ़ी !”, उसने मग उसकी तरफ बढ़ाते हुए मुस्कराकर कहा, जबकि विजया के चहरे पर किंचित मात्र भी मुस्कराहट नहीं थी। वह उसके पीछे-पीछे बालकनी में राखी एक कुर्सी पर आकर बैठ गई। उसने मग को बिलकुल भी नहीं छुआ। दोनों के बीच थोड़ी देर तक ख़ामोशी का बसेरा रहा। प्रसन्न ने अपने मग के सहारे इस सन्नाटे को तोड़ने की कोशिश की पर वह असफल रहा। आखिरकार उससे नै रहा गया- “ मुझे माफ़ कर दो वीजे कल वाकई मुझसे बहुत बड़ी गल्ती हो गई थी। पता नै मुझे क्या हो गया था? तो मै तुमसे इतना रूड हो गया थे मै रात भर अपने आप को कोसता रहा कि मै ऐसा कैसे कर सकता था” उसकी आवाज से साफ पता चल रहा था कि वह अपने किये पर बेहद शर्मिन्दा है। “ मै रात भर नहीं सो सका केवल पछतावे की आग में जलता रहा। तुम्हारे प्रति मेरी संवेदनाएं कैसे इतनी भोथरी हो गईं थीं?, उसकी आवाज रुंघ चुकी थी। ये सब विजया को सपने जैसा लग रहा था।

“ आई एम् एक्स्ट्रीमली सॉरी वीजे ! मैं लाफ की प्लानिंग करने में इतना आगे निकाल गया कि तुम्हारे और अपने प्यार को कब इग्नोर कर बैठ? मुझे पता ही नहीं चला। मै शर्मिन्दा हूँ जो अपनी माँ की दी हुई शिक्षाओं को ही भुला बैठा। मेरा यकीन करो मै अब कभी भी तुम्हारा दिल नहीं दुखाऊंगा। हम अपने बच्चे की मिलकर परवरिश करेंगे”, उसकी बातों में अपने आने वाले बच्चे की ख़ुशी साफ़ झलक रही थी। और विजया को लग रहा था मानों उसके चारों और आशाओं के हजारों दीप जल उठे हों। प्रसन्न का ये रूप उसके लिए खुशियों की सौगात बनकर आया था, उसे अपना पहले वाला प्रसन्न वापिस मिल गया था।


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