अपनी अपनी ख़ुशी
अपनी अपनी ख़ुशी


बुज़ुर्ग दम्पति इन दिनों पहली बार ख़ुश थे क्योंकि उन्हें धूप में पैर जलाने वाली सड़क पर चलना नहीं पड़ेगा और न ही खाने के लिए किसी के आगे हाथ फैलाने पड़ेंगे।
जिस फुटपाथ पर वो रहते हैं वहाँ कुछ समाज सेवक उन्हें भोजन दे कर गए हैं और कह कर गये हैं कि देश में एक महामारी फैली हुई हैं इसलिए आप यहीं रहना, कहीं जाना मत, हम आपको रोज़ यहीं भोजन ला कर देंगे। दोनों बुज़ुर्ग पहली बार अपने उन बेटे-बहु को याद नहीं कर रहे जिन्होंने ने उन्हें कुछ साल पहले घर से निकाल दिया था।
वे आज सिर्फ़ ये सोच रहे थे के काश ऐसी महामारी बनी रहे ताकि उन्हें बेटे की याद न आए और भोजन भी यही मिल जाए तो ये बुढ़ापा किसी तरह से कट जाए, वे खाना मिलने मात्र से खुश थे।