अनसुनी मोहब्बत

अनसुनी मोहब्बत

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ये कुछ सालो पहले की बात हैं । जब मैंने नया नया दाख़िला लिया था स्नातकोत्तर उपाधि को पूरी करने के लिए । में अपनी पढ़ाई अपने शहर में से ही करना चाहता था ताकि घर के पास ही रह सकूं और घर वालो को कोई तकलीफ भी न हो । जब में पहले दिन अपने मित्र समीर के साथ कॉलेज पंहूँ चा तो लगा किसी और ही जगह आ गया हूँ । नए लोग नए चेहरे, काफी कठिन था वहा रहना । पर क्या करते पढाई पूरी करनी थी तो रुकना भी अनिवार्य था। हम सब बस यही सोच में दुबै थे की आगे का सफर कैसे तय करेंगे तभी अचानक वहा एक अध्यापक आए और उन्होंने हमे हमारी कक्षाओं की तरफ जाने को कहा । हम सब सोच में दुबे अपनी अपनी कक्षाओं की तरफ चल पड़े ।


कक्षा में प्रवेश करने के बाद हमने अपनी अपनी जगह ले ली। में अपने मित्र के साथ बैठा उससे कुछ बाते कर ही रहा था के अचानक मेरी नज़र एक प्यारी की लड़की पर पड़ी जिसने जीन्स और सफ़ेद रंग की टीशर्ट पहनी हूँ ई थी । कुछ लम्हो के लिए तो में उससे अपनी नज़र हटा ही न सका । वो सुनहरे बाल , गालों पे गुलाबी ,उसका यूँ इत्रा के चलना, यूँ बालो को कान के पीछे रखना । मेतो उसकी खूबसूरती को देखते ही मंत्रमुग्ध हो गया था । बस अभी तो उसके बारे में सूचना शुरू ही किया था की समीर ने थप्पड़ मार्के जगा दिया । पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था । वो आके मेरे पीछे वाली जगह पर बैठ गई और में कुछ कहने के लिए आगे बाढ़ू उससे पहले एक लड़का उसके बगल वाली जगह में एके बैठ गया । दिल फिर से निराश हो गया । फिर मान लिया के किस्मत को यही मंजूर होगा और उसके बारे में सूचना छोड़ दिया ।


में रोज कॉलेज आता और उसको देखता रेहता और सोचता के कैसे करू उससे में बात । समीर भी कहता रहता की भाई मत ध्यान दे उसकी तरफ उसका चाहने वाला है कोई और वो उससे चाहती हैं , पर में ठहरा ढीठ कहा उसकी बात ममानने वाला था और रोज़ एके उसे देखता रहता । इसी तरह कई दिन निकल गए में उसे देखता रहता और समीर की गालियाँ सुनता रहता । इसी तरह कई महीने भी गुज़र गए । अब सितम्बर का माहिना आ चूका था ।हमारे कॉलेज में शिक्षक दिवस मानाने की चर्चा शुरू हो चुकी थी की कोन क्या करेगा और क्या नहीं । हमारी एक प्रोफेसर ने आके मुझे से कहा की तुमको शिक्षक दिन निमित कुछ भाषण देना हैं मैंने झट से है कर दी क्यों की मुझे लिखने का पहले से ही बहुत शौख था ।


उस दिन हमारी कक्षा के अनेक छात्रों को काम सौपे गए थे। इसे और बाकि लड़कियों को सजावट का काम सोपा गया था । हम बस घर जाने के लिए निकले ही थे के किसी के जय पुकार ने की आवाज़ सुनी। पहले तो मैंने अनसुना कर दिया , फिर और ज़ोर से आवाज आई । तब पलट के देखा पीछे मैंने की येतो वही लड़की है जिसे में रोज़ देखाता रहता । वह जय जय पुकारते हूँ ऐ इस प्रकार मेरी तरफ दौड़ी चली आरही थी मनो जैसे अभी आके साइन से लिपट जाएगी । जैसे फिल्मो में होता है बिलकुल ऐसा ही मंज़र था । जैसे कोई रैल छूटी जा रही हो और में राज बनके अपनी सिमरन का हाथ थामने के लिए तैयार ही खड़ा हूँ ।

पर जैसे की आप सब जानते है ये सब फिल्मो में ही होता है हकीकत में नहीं । आवाज़ सुनते ही में वहा रुक गया । वो पास आई उसने कहा जय मुझे आपसे कुछ कम है। मैंने भी अनजान बनते हूँ ए कहा की आपतो मेरे ही कक्षा में हो ना। उसने हामी भरी और कहा उसका नाम विव्या हैं। पहले तो कुछ समझ नहीं आया की ये कैसा नाम है , पर उस वक़्त नाम पता लगने की इतनी खुशी थी के कुछ और सूझ भी नई रहा । 


उसने कहा की उसे मेरे मोबाइल का नंबर चाहिए ताकि उसे काम होतो वो उस पे कॉल कर सके । उसका यह कहना और मेरे होश उड़ जाना की जिस लड़की को इतने दिनों देख रहा था वही खुद सामने से आई और उसने मेरा नंबर माँगा । फिर क्या था मैंने झट से उसे अपना नंबर दे दिया और कहा जब मन हो तब फ़ोन कर देना । और फिर वो वह से रवाना हो गई और में भी अपने घर को लौट गया । मानो तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं था, समझ ही नै पा रहा था की ये हो क्या रहा है मेरे साथ । उस पूरा दिन अपने फ़ोन को हाथ में लिए बैठा रहा की कब उसका फ़ोन आएगा । अब रात हो चुकी थी करीब करीब दस बज रहे और में अपने कमरे में बैठा भाषण लिखने की तैयारी कर रहा था । तभी अचानक मेरे फ़ोन कि घंटी बजी । मुझे लगा की मेरे किसी दोस्त का होगा पर जब देखा तो किसी का नाम नहीं था बस नंबर था किसी का । में सोचने लगा की इतनी रात को किसने फ़ोन किया हो गा किसे काम होगा इतनी रातमे । बस इन्ही विचारो में घिरे मैंने अपना फ़ोन उठाया । उठाते सामने की ओर से एक मधुर आवाज़ आई -


"हेलो , क्या में जय से बात कर सकती हूँ ? में उसकी मित्र विव्या बोल रही हूँ । " विव्या का नाम सुनते ही जैसे मेरी तो आवाज़ ही नहीं निकल रही थी ।

उसने फिर से पूछा "हेलो जय क्या तुम हो वहा पे ?" जैसे तैसे मैंने हिम्मत जुटाई और कहा की "है मैं यहीं हूँ "। फिर वो बोली के कोई परेशानी तो नहीं ना की इस वक़्त कॉल किया । मैंने कहा की कोई परेशानी नहीं और पूछा की किस कारन हेतु तुमने कॉल किया ?

उसने कहा की कल जो सजावट करनी है उसके लिए थोड़ी सी मदद चाइये थी उस से । मैंने कहा जो भी मदद है बोल दो जरूर मदद करुगा। फिर उसने सब कहना शुरू किया की उसे क्या मदद चाइये । बस फिर क्या था वो कहती रही और में सुनता रहा । बीच बीच में है है बोल दिया करता था मैं । जब बाटें और भी देरी होने लगी थी, अचानक उसने बोलना बंद किया और मुझसे पूछा -


"जय क्या आपने कल के भाषण की तैयारी कर ली ?" मैंने ना कहा । अभी कुछ और बोलू आगे उससे पहले तो उसने वह पे अपना रौद्र रूप ले लिया था । वो तो ऐसे बरसी जैसे कही मुसल धार बारिश । कहने लगी पहले क्यों नहीं बोला आपने की बाकि है सब आपका खामखा आपका वक़्त ज़ाया किया मैंने । मैंने कहा नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं मुझे रात में ही सब काम करने की आदत है । यही सब बाते करते करते रात के तीन बज चुके थे । 

 उसने बड़ी धीमी आवाज़ में कहा- "सुनो अब रात बहुत हो चुकी है में जाती हूँ सोने आप भी अपना काम करके सो जाना " और वह सुभ्रातृ बोलके उसने फ़ोन रख दिया । और मैं तो अभी भी उसकी सुरली आवाज़ में खोया हूँ वा था । फिर संभाला अपने आप को और भाषण लिखने की तैयारी में लग गया । अब जब रात को उससे बात हूँ ई थी तो अब मिलने की चाह भी बढ़ गई थी । उस दिन में कॉलेज जल्दी पहूँ चा ताकि सुबह सुबह उसे मुलाकात हो सके । में झट से हमारे निर्धारित हॉल में गया ताकि उसकी सजावट में कुछ मदद कर सकू । पर वहा जेक के क्या देखता हूँ की वो वह है ही नहीं । दुसरो से पूछने पे पता चला की वोतो अपना काम ख़तम करके कब की चली गई । में हताश हो गया, लगने लगा जैसे प्यासा कुँए तक तो पहूँ ँचा पर कुँए में पानी ही नहीं था । मैंने हटाया इन सब पे से ध्यान और अपने भाषण की तैयारी में लग गया । कुछ समय बाद हमें कहा गया की हम सब को निर्धारित हॉल में इखट्टा होना है क्युकी कार्य क्रम शुरू होने वाला । हम सब झट से वह पहूँ ँच गए और कार्य क्रम शुरू हूँ वा । अब मेरी बरी थी मंच पे आके शिक्षक दिवस पे बोल ने की । में मंच पे तो आ गया था पर अभी भी मेरी निगाहें उसे ही ढूंढ रही थी । और इसी कश्मकश के बिच मैंने अपना भाषण शुरू किया । अंत में हमारे कॉलेज के डायरेक्टर ने मेरे भाषण की खूब सहारना की और हम सब अलग हूँ ए । और में अभी भी इसी फ़िराक में था की कही एक झलक दिख जाए उसकी तो बात बन जाए । इसी विचार को दिमाग में लिए में आगे बढ़ रहा था की अचानक किसी ने पीछे से मेरा नाम पुकारा । अब तो लगा ही था की ये तो उसी की ही आवाज़ है । में तुरंत पलटा तो कोने में कड़ी थी नज़रे झुकाए । में तुरंत गया उसके पास और पूछा-" विव्या कहा थी तुम आज सारा वक़्त ? कितना ढूंढा मैंने तुमको पर तुम मिली ही नहीं। और तो और मेरे भाषण के वक़त भी तुम वह पर नहीं थी। कुछ हूँ वा था तुम्हे ? कही कोई परेशानी थी ?" और ऐसे करते करते मैंने उसपे अपने सवालो से हमला कर दिया । वो बस नज़रे झुकाए सब सुनती रही । वो बस मेरे सवालात ख़तम होने की राह देख रही थी । कुछ वक़्त बाद में शांत हूँ वा और कहा उससे की क्या बात है ?


उसे नज़रे उठाई और कहा मुझसे- "जय मुझे माफ़ कर देना की में तुम्हारे भाषण देने के वक़्त वह हाज़िर न रह सकी। मेरी एक सहेली को मेरी जरुरत आन पड़ी थी इसलिए मुझे जाना पड़ा था । में सच्चे दिल से क्षमा प्रार्थी हूँ , हो सके तो माफ़ कर देना ।" अभी तो में कुछ बोलू उससे पहले तो वो वहा से चली गई और उसे रोकना भी मैंने मुनासिब न समझा । में भी फिर वह से अपने घर है चला गया । अभी रात के १० बज रहे थे और में अपने काम में मग्न था। तभी अचानक मेरे फ़ोन की घंटी बजी और देखा तो उसका कॉल आ रहा था । मैंने झटसे कॉल उठाया । कॉल तो उठा लिया था पर न जाने एक अजीब सी चुप्पी सी थी । न वो कुछ बोल रही थी न में कुछ बोल रहा था। मैंने पहल करते हूँ वे धीरे से पूछा उसे " कैसी हो तुम "। पता नहीं ऐसा तो क्या था वो रोने लगी । मैंने बहूँ त पूछा की क्या हूँ वा पर वो कुछ जवाब दे ही नहीं रही थी बस रोए जा रही थी । थोड़ी देर बाद वो शांत हूँ ई और उसने कहा " मुझे बहूँ त बुरा लग रहा है की में तुम्हे भाषण देते न देख सकी, तुम्हे मेरी जरुरत थी और में वहा नामौजूद थी "। जैसे तैसे मैंने उसे शांत करा।

धीरे धीरे बाते बढ़ती गई, बातो की गहराई बढ़ती गई। कब ४ बज गए पता भी न चला । मैंने कहा उससे " की अब देर हो चुकी है हम सो जाते है बाकी बाते कल मिलकर करते है " और फिर कॉल रख कर हम सो गए । 


काफी समय निकल गया इसी तरह रोज देर तक बातें करते करते । मैंने एक दिन उससे पूछ "की हमरे बीच सचमे कुछ है या हम सिर्फ ऐसे ही रोज देर तक बातें करतें रहेंगे " , तो इस पर उसने कहा की " सुनो दरअसल मुझे भी नहीं पता की क्या है हमारे दरमियाँ , अभी में इन सब के बारे में कुछ बता नहीं सकती "।पर मन ही मन तो में उससे प्यार कर ही बैठा था। पर इसके इस उत्तर के बाद में उसे अपने दिल की बात कहना मुनासिब न समझा । और फिर ऐसे ही कई दिन और राते गुज़र ती रही हमारी बातचीत और गहरी होती रहीं ।


और आखिर कर वो दिन आ ही गया जब उसने सामने से अपने प्यार क्या इज़हार किया मुझसे । ये वो नवरात्री की रात थी जिस रात को मुझे प्यार । मैंने भी उससे मेरे दिल की बात बता दी । 


अब कई साल हो गए हैं हमें साथ रहते रहते और हमारी कॉलेज की पढाई भी ख़तम हो गई है। वो अपने कामो में व्यस्त है और में मेरे कामो में । अभी रोज़ देर तक की बातें नहीं होती न ढंग से हाल चल जान पते है, वो किसी दूसरे शहर रहती है और में किसी दूसरे । एक दिन युहीं बैठे बैठे मेरे दिमाग में एक ख्याल आया की क्यों हम साथ रहने लगे। कही एक किराए का माकन लेके साथ ही रहे तो, ताकि एक दूसरे को आच्छे से जान भी पाएँगे। ये विचार मैंने उसको सुनाया की "विव्या में क्या सोच रहा हूँ की क्या हम "लिवइन रिलेशनशिप" में रहे तो कैसा रहेगा ?" इस पर उसन कोई संकोच तो न दिखया पर कुछ जवाब भी न दिया । मैंने कहा उससे " की आगे जाके हम शादी करने ही वाले है तो क्यों न उससे पहले हम थोड़ा एक दूसरे को जान ले । और इसके लिए हम अपने घरवालों से भी अनुमति लेलेंगे। उनकी सहमति होगी तो ही हम शादी के पहले साथ रहे गे ।" उसे भी कहा "कोई बात नहीं हम अपने घरवालों से बात कर लेते है ।" और जैसा हमने चाहा था वैसा ही हूँ वा । दोनों के घर वालो ने मंजूरी देदी "लिवइन रिलेशनशिप" में रहने की ।


अब कई साल गुज़र गए है हमे साथ रहते रहते। पर अब ज्यादा वक़त नहीं देपा रहे है एक दूसरे । काम की वजह से इतना व्यस्त रहते है की एक दूसरे के लिए वक़्त ही नहीं निकल पा रहे है। में काम के सिलसिले से शहर से महीनो बहार होतो हूँ , हफ्तों हफ्तों तक बाते नहीं होती हमारी। पर किसी तरह जीवन साथ कट रहा है।


एक बार की बात है में मुंबई से वापस ही आया था और मुझे विव्या का कॉल आया। उसे कहा की " जल्दी आ कर मिलो मुझसे ।" मैंने कहा "ठीक है ।" मैंने उस रात एक शानदार कैंडल लाइट डिनर का आयोजन किया और उसे वाह पे बुलाया । उस रात कुछ अलग सी ही बात थी उसके चेहरे पे, एक अलग सा ही नूर था, जैसे बहूँ त खुश थी वो , जैसे कई दिनों से हसी न थी और आज उसे हसने का करना मिल गयाहो । उसे इतना खुश देख कर में भी खुश । हमने साथ खाना खाया और ढेर साडी बातें की । और उसके बाद हम अपने घर की और चल पड़े । रस्ते भर वो बस बाते ही बाते करती रही जैसे कल होने ही न वाला हो, पर मुझे भी उसका साथ अच्छा लग रहा था और में भी सुने जा रहा था उसकी बाते ।


अब कुछ वक़्त गुज़र गया है, में फिर काम के सिलसिले में बहार आगया हूँ , वो भी कह रही की उसे अपनी माँ के यहाँ जाना था तो वो वह चली गई है । कुछ माहिनो के बाद में जब काम से लौटा तो वो घर पर नहीं थी । इस बीच हमारी बातें भी नहीं हूँ ई थी, और नहीं अब उसका फ़ोन लग रहा था । मुझे याद था की वो अपने माँ के यहाँ रहने गई है । तो फ़ौरन में उससे मिलने उसकी माँ के यहाँ चला गया । उसकी माँ मुझे देख कर कुछ यू चौकी की सामने कोई भूत देख लिया हो । मैंने उनसे उनका हाल चल पूछा और कहा की " विव्या कहा है उससे ज़रा बुला दिज्ये , काफी वक़्त से हमारी बात नहीं हूँ ई है ।" उसकी माँ ने कुछ न कहा और बस मुझे देखती रही । मैंने फिर पूछ की " विव्या का है? आप कुछ बोल क्यों नहीं रही ।" मेरे इतना कहने पर उसकी माँ रोने लगी । अब मेरे भी सब्र का बांध टूट चूका था। अब मेरे जिज्ञासा का बढ़ गई की यहाँ हो हूँ वा क्या था । मैंने धीमे से फिर पूछा " माता जी क्या हूँ वा है विव्या को? क्या वो सही सलामत तो हो न ?" उसकी माँ ने रोते रोते जवाब दिया " नहीं बीटा विव्या अब इस दुनिया में नहीं रही, उसका निधन हो चूका है ।" इतना सुनते ही मनो मेरे पैर तले ज़मीन ही खिसक गई हो । में ज़ोर से चिल्ला उठा "क्या, ये आप क्या कह रही है ।" इस पर उसकी माँ ने कहा " है बेटा तुमने जो सुना वो सच है, विव्या अब इस दुनिया में नहीं रही ।" मेरा दिल तो मनो जैसे बैठ ही गया और आखो से आँसू बाद होने का नाम ही न ले रहे थे । मैंने रोते रोते उनसे पूछ " यर सब कब और कैसे हूँ वा और अपने मुझे बतया क्यों नहीं। " उन्होंने कहा की हमने तुम्हे बता ने की बहूँ त कोशिश की पर हमारा तुमसे कोई संपर्क नहीं हो पा रहा था । मैंने फिर पूछा " की असल में हूँ वा क्या था ।" इसपर उन्होंने कहा की " वो बहूँ त खुश थी की तुम मुंबई से कुछ दिनों के लिए घर आने वाले हो तो वो उसी की तैयारियों में लगी हूँ ई थी । एक दिन वो कुछ काम से बहार गई हूँ ई ही और तभी हमें समाचार मिले की उसका एक्सीडेंट हूँ वा है और उसे सरकारी अस्पताल में ले जाया गया है । " वहाँ पहूँ ंच ने पर डॉक्टरों ने बताया की "उसकी हालत बहूँ त संगीन है और बचने के मौके भी काम है" । उस रात विव्या ने वहाँ अपना दम तोडा । 


मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा थी की ये सब क्या चल रहा है । में सीधा घर गया और सो गया । कुछ देर सोने के बाद मुझे एक ख्याल आया की अगर विव्या का निधन मेरे घर वापस आने ने पहले हो गया था तो फिर वो लड़की कौन थी जिस के साथ में उस रात बहार खाने गया था ? क्युकी उस रात वो बहूत खुश लग रही थी । ये सवाल मुझे अंदर से रोज़ खाए जा रहा है की सच में विव्या मर चुकी है और उस रात वो लड़की विव्या नहीं थी और उसकी रूह थी ।  


आज भी जब में रातमे उस सड़क से गुज़र ता हूँ वो मुझे कई बार दखाई देती है, कभी मेरी बाइक के पीछे बैठे , कभी कार में पीछे बैठे, और तो और कभी रात में सोया हूँ तो सर पे हाथ फेरते हूँ ए । पता तो चल गया की उसने मुझेसे बेइंतहा मोहब्बत की है की वो तो चली गई पर उसकी रूह अभी भी मुझसे जुडी हूँ ई है । 



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