अनोखा रक्षाबंधन
अनोखा रक्षाबंधन
आज स्वाति बहुत खुश थी। उसे दूसरी बार मातृत्व सुख का अवसर जो मिला था। उसकी बेटी अवनी अब पाँच साल की हो गयी थी और आज फिर वह खुशखबरी। घर मे सभी बहुत खुश थे। सासु माँ ने भगवान को भोग लगाया और नन्ही अवनी को बताया "अब तो अवनी का एक छोटा सा भैया आने वाला है" अवनी खुशी से फूले न समायी। स्वाति भी उस आने वाले नन्हे मेहमान के सपनो में खो गयी।
दो बहनों में सबसे बड़ी थी स्वाति। यूँ तो घर परिवार में हँसते खेलते दोनों प्रेम से बड़े हुए, लेकिन एक भाई की कमी उसे हमेशा खलती रही। खास तौर पर रक्षाबंधन के दिन। आज भी जब उसकी ननद राखी पर आती, ऊपरी तौर पर हँसती खेलती स्वाति के मन मे एक टीस रह जाती। काश, मेरा भी भाई होता, मैं भी मायके जाती, उसे राखी बांधती, ढेरो बलैया लेती, लाड़ लगाती। यूँ तो रिश्ते के भाई थे उसके भी, लेकिन सगे भाई की बात ही अलग होती। अब तो उसकी छोटी बहन को भी एक बेटीक बाद बेटा हो गया था।अब यही कसक वह अवनी के लिए अनुभव करने लगी थी। वह अवनि के लिए इस कमी को पूरा करना चाहती थी।
आज मिली इस खुशी ने उसके मन को फिर नई उम्मीदों से भर दिया था। उसने हिसाब लगाया। उसका नौंवा महीना तो अगस्त में ही आने वाला था। अगस्त.. याने रक्षाबंधन का महीना। याने इस बार रक्षाबंधन पर अवनि भी अपने भाई को राखी बाँधेगी.... सगे भाई को। सोच कर ही आनंदित उठी वो।
घर के सभी सदस्य उसका बहुत खयाल रखते। जो भी सुनता, कहता.."वाह, अबकी तो बेटा ही हो जाये, फैमिली कम्पलीट हो जाएगी।सासु माँ भी अपने मन मे कान्हा जी की छवि लिए उसके आने वाले बच्चे का इंतजार करने लगी।
नौ महीने पंख लगाकर उड़ गए और इसके साथ साथ स्वाति के सपने भी बड़े होते चले गए। कुछ परेशानी के कारण डॉक्टर ने उसे सिजेरियन की सलाह दी और एक अच्छा दिन चुनने को कहा। उसे तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गई। उसने रक्षाबंधन का ही दिन चुना। वह अवनि के लिए एक राखी भी खरीद लाई। सोचा, इस बार अस्पताल में ही सही लेकिन अवनी अपने भाई को राखी जरूर बाँधेगी।
आखिर वो दिन भी आया जिसका सबको बेसब्री से इंतजार था। आपरेशन के दौरान ही स्वाति को जैसे ही बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी उसे लगा जैसे सारे सपने पूरे हो गए।
अचानक नर्स की आवाज आई, " बधाई हो, बहुत ही सुंदर गुड़िया आयी है"। स्वाति के पैरों तले जमीन खिसक गयी। उसने दोबारा पूछा कि बेटी है या बेटा। ऐसा लगा किसी ने एक ही झटके में सारे सपनो को चकनाचूर कर दिया। उसकी आँखों से आंसू बह निकले।
सासू माँ को झटका तो लगा लेकिन ईश्वर की मर्जी मानकर उन्होंने ईश्वर का धन्यवाद दिया। स्वाति के पति तो बहुत ही खुश थे वो अवनी को गोद मे उठाकर झूमने लगे। रुई के फाहे जैसी सुंदर सी छोटी सी बहन को पा कर अवनि भी राखी की बात भूल गयी थी औऱ बार बार दादी से कहती, " इसे मेरी गोद मे दे दो न,"। कुल मिलाकर सभी के चेहरे हर्षित थे सिवाय स्वाति के।
अचानक ही पूजा की थाली मंगवाई गई। उसमे रोली, अक्षत, नारियल, राखी सभी देखकर स्वाति असमंजस में पड़ गई। तभी स्वाति के पति ने कहा, " स्वाति, मै तुम्हारे मन की बात समझता हूँ लेकिन क्या रक्षाबंधन केवल भाई से होता है? बहन से नही? अरे, ये तो आपसी प्रेम का प्रतीक है। क्या बहन भाई से कम होती है ?आज के युग मे जहाँ हम बेटा और बेटी में कोई फर्क नही करते वहाँ भाई और बहन में कैसा फर्क? चलो आज से अवनी अपनी बहन को हर साल राखी बाँधेगी।"
स्वाति भी अपने पति की इन बातों से सहमत हो गयी। इस रक्षाबंधन ने उसके मन से वह कसक सदा के लिए मिटा दी। नन्ही सी बहन की कलाई पर अवनी की बंधी राखी ने आज इस अनोखे रक्षाबंधन को सदा के लिये यादगार बना दिया था।