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Anita Kushwaha

Inspirational

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Anita Kushwaha

Inspirational

अनोखा बंधन

अनोखा बंधन

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आज विनय अपने को बहुत टूटा हुआ महसूस कर रहा था।आज उसके बेटे ने एक सवाल कर दिया और वो निरूत्तर हो गया था ।विनय ने घर के कलह से और अपनी पत्नी की बातों में आकर अपने पिता को वर्द्धाश्रम भेज तो दिया था लेकिन उसका दिल अंदर ही अंदर रो रहा था

उस पर उसके बेटे सनी का ये सवाल कि "पापा ये श्राद्ध पक्ष क्या होता है।क्लास के सब बच्चे बात कर रहे थे।पापा मरने के बाद उनलोगों को खिलाने से क्या होता है वो लोग कौवा बन के क्यो आते हैं। पापा मैं भी आपको खिलाऊंगा क्या ?पर पापा दादाजी तो अभी मरे नहीं हैं वो कैसे खाएंगे चलो न उनको ले आयें।पापा आपने उनको क्यों भेज दिया,वो तो मुझे कितना प्यार करते थे ,मुझे उनके बिना बिल्कुल भी अच्छा नही लगता।"

विनय बिल्कुल निशब्द हो गया था शायद रो भी रहा था,निशब्द रुदन शायद ज्यादा कष्ट देता है।तभी अचानक उसका मोबाइल रिंग हुआ।वृद्धाश्रम से था वहाँ के मैनेजर का ।उन्होंने कहा आपके पिता को दिल का दौरा पड़ा है, जल्दी आइये।विनय जल्दी से स्कूटर स्टार्ट करके चल दिया रास्ते मे सोचता जा रहा था,बस अब और नहीं।वह अब पिताजी को यहीं रखेगा।चाहे उसकी पत्नी सरोज क़ुछ भी कहे।

जब वह वर्द्धाश्रम पहुँचा तो उसके पिताजी की मृत्यु हो चुकी थी, वहाँ सब लोग दुखी थे।एक बूढ़ा आदमी फूट-फूट कर रो रहा था,बार-बार यही बोल रहा था कि अब मैं कैसे जियूँगा।मेरा दोस्त मुझे अकेला छोड़कर चला गया। मेरा तो कोई नहीं इस दुनिया में।उस बूढ़े आदमी का नाम घनश्याम था।विनय तो एकदम सन्न हो गया था।उसके कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।सोचते -सोचते उसने क़ुछ निर्णय ले लिया और उठ खड़ा हुआ।

विनय उठा और उनका हाथ पकड़कर बोला ।आप अकेले नहीं हैं आप अनाथ नहीं हैं। माना की मैने बहुत बड़ी गलती की है वो अब सुधर तो नहीं सकती पर जितना मेरे बश में है मैं करूँगा।आप सब लोग अकेले नहीं हैं अनाथ नहीं हैं।मैं घनश्याम जी को अपने घर ले जाऊंगा और पिता की तरह सेवा करूँगा।

मैं हर रविवार को अपने परिवार को साथ लेकर आऊँगा और आपलोगों के साथ समय बिताऊंगा।मैं सबके दुख तो दूर नही कर सकता, लेकिन जितना मेरे बस में होगा करूँगा।

तभी घनश्याम जी बोले ",लेकिन बेटा मैं तो रिश्ते में तुम्हारा कुछ नहीं लगता "?विनीत बोला बाबूजी अब मेरी आँखें खुल चुकी है।रिश्ता बनाने से बनता है और सभी रिश्तों से बढ़कर है इंसानियत का रिश्ता।ये एक अनमोल बंधन है।इसका कोई मोल नहीं।

सबको विनय के पिता जी के जाने का तो बहुत दुख था, लेकिन सबकी आँखों मे जो आंसू झिलमिला रहे थे वो आशा से भरा हुआ था।विनय आगे के कार्यक्र्म के लिए अपने को मानसिक रूप से तैयार करने लगा और घनश्याम जी अपना सामान समेटने लगे।

             

              


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