STORYMIRROR

Mehra Upendra

Inspirational

3  

Mehra Upendra

Inspirational

अनकहे रिश्ते

अनकहे रिश्ते

5 mins
304

श्यामू जो मात्र अभी 9 साल का है, रोज की तरह अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था, वह स्कूल से आने के बाद अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेला करता है। सर्दी के दिन चल रहे थे इसलिये अंधेरा जल्दी घिर चला था। खेल के आखिरी में श्यामू की बैटिंग चल रही थी और सभी दोस्तों को खेल खत्म करने की जल्दबाज़ी हो रही थी कि तभी श्यामू का एक ज़ोरदार हिट और बॉल बरसों से खण्डर पड़े मकान में चली जाती है। सब बच्चें खुश हो जाते हैं कि अब खेल खत्म क्योंकि अंधेरे में बॉल लेने कोई नहीं लेने जायेगा लेकिन मोहन जो कल ही नयी बॉल लेकर आया था, वह रोने लगता है। सभी दोस्त अपने-अपने घर को चले जाते हैं लेकिन मोहन खेल के मैदान में बैठकर ही रोने लगता है, उसे रोता देखकर श्यामू रूक जाता है। वह दोनों साथ में खाली पड़े खण्डर मकान में बॉल लेने जाते हैं।

वह डरते-डरते जाते हैं लेकिन देखते हैं कि बरसों से खण्डर पड़े मकान में दो चौकीदार रहने आये हुये हैं। बच्चों को आते हुये देखकर एक चौकीदार रौब से पूछता है कि "तुम लोग क्यों आये हो यहाँ?" 

मोहन डरते हुये कहता है कि हमारी बॉल आपके यहाँ आयी है, वह लेने आये है। 

चौकीदार बोलता है - "इस बार तो मैं बॉल वापस कर रहा हूँ पर अगली बार न मिलेगी।"

तभी दूसरा चौकीदार बाहर निकलते हुये कहता है - "क्यों न मिलेगी?, बच्चें जब भी बॉल लेने आयेंगे उन्हें हम बॉल वापस कर देंगे।"

श्यामू उस दूसरे चौकीदार को देखकर कहता है - "शुक्रिया अंकल।"

दूसरा चौकीदार मुस्कुराते हुये - "बच्चों की हँसी तो संसार का दुख भुला देती है, इसलिये बच्चों को सदा मुस्कुराते रहना चाहिये।"

श्यामू दूसरे चौकीदार की बातों और उसके चेहरे की संतोषजनक मुस्कान से प्रभावित हो जाता है, इतने में वह उन बच्चों के नाम पूछता है। मोहन और श्यामू अपने-अपने नाम बताते हैं तभी श्यामू भी नाम पूछता है।

दूसरा चौकीदार - "बच्चों मेरा नाम लखन है और यह मेरा साथी संतोष है, हम आज ही यहाँ आये हैं क्योंकि इस मकान को बनाने का काम शुरू हो रहा है, कुछ ही महीनों बाद इस मकान के मालिक यहाँ रहने आयेंगे।"

"अच्छा अंकल, तो आपसे हमारी रोज मुलाकात होगी, क्योंकि पास के मैदान में हम रोज खेलने आते हैं।" - श्यामू बोलता है।

लखन - "हाँ, बच्चों।"

श्यामू - "ठीक है अंकल, हम चलते है, फिर मिलेंगे आप से।"

लखन - "बाए बच्चों।"

दिन यूँ ही बितने लगे थे, लखन और श्यामू हर रोज किसी दोस्त की तरह मिलते और बात करते। दोनों की उम्र का फासला बहुत अधिक था, श्यामू जहाँ नौ साल का था तो लखन की उम्र भी 35 साल को पार कर चुकी थी। संक्राति के समय एक दिन श्यामू चुपके से अपने घर से लड्डू लाकर लखन को देता है, इस पर लखन कहता है कि हमारी दोस्ती में खाने-पीने या अन्य वस्तुओं को बीच में न लाया जाये क्योंकि अगर लोगों को पता चलेगा तो वह लखन को बुरा व्यक्ति समझेंगे।

इस पर श्यामू कहता है कि "मुझे पता है कि आप साफ दिल के इंसान हो इसलिये ही मैंने आपसे दोस्ती की है, इसलिये यह तो आपको खाने ही होंगे। "

श्यामू की ज़िद के आगे लखन की नहीं चलती इसलिये वह लड्डू ले लेता है, साथ ही अगले दिन वह श्यामू के लिये भी चने लेकर आता है और उसे देते हुये कहता है कि "तुम मेरे बहुत अच्छे दोस्त हो और मैं नहीं चाहता कि तुम्हें खो दूँ। इसलिये आज के बाद तुम मेरे लिये कुछ भी लाने की नहीं सोचना।" श्यामू लखन की बात को समझते हुये मान जाता है। इस प्रकार दोनों में एक-दूसरे के लिये दोस्ती का महत्व बढ़ जाता है। इसके बाद वह रोज मिलते और एक-दूसरे से बात करते लेकिन ऐसा कोई काम नहीं करते कि जिससे कि एक-दूसरे की परेशानी बढ़े।


कुछ दिन बाद,.

श्यामू की परीक्षा चल रही थी इस वजह से वह अपने दोस्त लखन से मिलने नहीं जा पा रहा था कि एक दिन जब वह परीक्षा की तैयारी कर था तब मोहन आता है और बोलता है," तुम मेरे साथ चलों, तुम्हारा दोस्त लखन बुला रहा है।"

श्यामू - "क्या हुआ ? "

मोहन - "मुझे पता नहीं, मैं जब खेल के मैदान की ओर से वापस आ रहा था तो वह अंकल मिले और तुम्हारे बारेंपूछ रहे थे और कह रहे थे कि तुमसे अभी मिलना है।"

श्यामू - "मैंने उनको बताया था कि मेरे एक्जाम चल रहे हैं तो मैं कुछ दिन मिल नहीं पाऊँगा।"

मोहन - "तू जल्दी चल यार।"


वह दोनों लखन अंकल के पास पहुँचते हैं तब लखन भावुक होते हुये अपने छोटे-से दोस्त से बोलता है - "मेरी आज 8 बजे की ट्रेन है, मैं जा रहा हूँ, तुमसे मिलना चाह रहा था पर तुम्हारा घर तो देखा नहीं था तो लगा कि शायद तुमसे बिना मिले ही चला जाऊँगा पर तभी तुम्हारा दोस्त दिखा तो तुम को जल्दी से यहाँ बुलवा लिया।"

श्यामू भावुक होते हुये - "आप कहाँ जा रहे हो?"

लखन - "अपने गाँव जा रहा हूँ, मेरी पत्नी बीमार है, उसकी हालत ज्यादा खराब है।"

श्यामू - "तो आप वापस कब आओगे ?"

इस बार लखन की आँखों में आँसू आ गये थे, वह बोला - "पता नहीं, मैं यहाँ की चौकीदारी छोड़ कर जा रहा हूँ।"

श्यामू को कुछ खोने का अहसास होता है तथा उसका दिल भारी हो जाता है, वह रोते हुये कहता है - "क्या हम अब दोबारा से कभी न मिल पायेंगे?

लखन श्यामू को उत्साहित करते हुये बोलता है, दुनिया गोल है, हम कभी न कभी ज़रूर मिलेंगे।"

श्यामू - "मैं आपको कभी नहीं भूल पाऊँगा ।"

लखन - "मेरे पास भी तुम्हारे जैसा दोस्त कभी न हुआ, तुम हमेशा मेरी यादों में रहोगे।"

श्यामू - "आप जा तो रहे हो, पर मुझसे मिलने ज़रूर आना..."

लखन अपना सामान उठाते हुये, श्यामू को देखकर बोलता है - "बाय दोस्त अपना ख्याल रखना"


श्यामू आज बहुत बड़ा हो गया है, 9 साल से वह अब 28 साल का हो गया है तथा नौकरी करने लगा है, पर वह वर्ष 2019 में भी अपने उस दोस्त को याद करता है कि कभी न कभी उससे ज़रूर मुलाकात होगी... पर अब यह शायद मुमकिन नही हैं...



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational