आखिरी कोशिश
आखिरी कोशिश


आज वो फिर बोली "नही रहना उसे मेरे साथ" नही नही बोली "उसे नही रहना किसी के साथ" उस किसी में मैं भी आ गया अफ़सोस!साफ लफ्ज़ों में उसे फिर से मुझसे दूर जाना है।
ऐसा नहीं है कि पहले नहीं हुआ है ऐसा। हर बार अंत में सब ठीक हो जाता है लेकिन उसके जाने, फिर जाने और फिर वापस आने के दौरान बहुत कुछ घटता है।
थोड़ा सा मेरे अंदर और थोड़ा थोड़ा कर के मैं। मेरे ही अंदर एक घर सा बन रहा उन सारी बातों से जिसे मैंने नजरअंदाज कर उसको मनाने की हर बार कोशिश की और सफल हुआ।
अफ़सोस से जो मेरे जेहन में बस गया कि तुम्हारा रिश्ता तो फिर से बच गया मगर तुम फिर से खो दिए खुद को। ये घर अब बहुत बड़ा हो चला है जो मेरे अंदर नही समा पा रहा।
लगता है अब सब टूटने को है।मगर हर बार मुझे ऐसा ही तो लगता है कि मैं खुद को नहीं हार पाऊंगा लेकिन फिर भी डर लगता है गर मैं इस बार जीत गया तो ?