आधे दिन की जि़न्दगी
आधे दिन की जि़न्दगी
पल्टू जो कि एक आठ साल का साँवले रंग कार लड़का था। जिसके इस रंग में ज्यादा सहयोग उस मिट्टी ने किया था, जिस पर वह एक बोरे को लपेट कर बनाई गयी तकिया पर सिर रख कर सो रहा था। रात भर उसके मुँह से निकली लार ने सूखने के बाद, उसके गालो पर एक सफेद मोटी रेखा का निर्माण किया हुआ था।
"उठ बे पल्टूआ..." पल्टू के बगल में ही एक टूटी चारपाई पर लेटा हुआ एक अधेड़ उम्र का पतले दुबले शरीर वाला उसका बाप रामशंकर अपनी एक पखवाडे से बढ़ी हुई दाढ़ी को खुजलाते हुए गुर्राया। रामशंकर के गुर्राने का पल्टू पर कोई प्रभाव नही पड़ा, मानो वह हर सुबह ऐसी ही गीदड़ भभकी को सुनता हो। थोड़ी देर इंतजार करने के बाद रामशंकर ने अपने बगल में रखी हुई स्वनिर्मित लकड़ी के स्टैण्ड (जोकि उसके डेढ़ टाँग को सहारा देती थी) को उठा कर पल्टू के पेट में कोचते हुए बोला, "उठ जा हरामखोर..."
अन्तःतोगत्वा पल्टू ने परेशान होकर उठा और अपने मुँह पर लगी हुई सूखी लार को पोछते हुए जवाब दिया, "क्या है... बुढ्ढे..." अपने आखिरी शब्द को उसने बहुत सफाई से मुँह पोछते हुए छुपा लिया। उठकर बैठने के बाद उसने अपनी दो छेदो वाली चड्डी, जोकि उसके शरीर पर एक मात्र वस्त्र था, को अपने बदन पर ठीक ढंग से व्यवस्थित करते हुए फिर बोला, "क्यो सुबह-सुबह दिमाग खराब कर रहे हो.?"
"उठ और तैयार हो जा काम पर नहीं जाना है क्या.?" रामशंकर चारपाई पर फिर आराम से लेटते हुए बोला।
"साला बुढ्ढा खूसट राम की जगह साले का नाम रावण होना चाहिये था..." पल्टू खड़े होते हुए बुदबुदाया।
"गाली दे रहा है क्या बे..." रामशंकर धीमे स्वर में फिर से निद्रा में जाते हुए बोला।
"नहीं तो..." पल्टू ने अनजान बनते हुए कहा, "अच्छा ये बताओ बापू आज मुँह धुल लू या ऐसा ही ठीक हूँ..."
"पागल है क्या बे..." रामशंकर झट से बिजली की फुर्ती से उठा जिसकी वजह से चारपाई की रस्सीयाँ चर्र की आवाज के साथ और ढिली हो गई, उसने तुरंत ही अपने लकड़ी के स्टैण्ड को पल्टू की चड्डी में फँसाते हुए पल्टू को अपने नजदीक ला कर बोला, "मेरी नाक कटाएगा क्या... बेटा भीख माँगने वाले जितने घिनहे होते है ना लोग उस पर उतना ही तरस खाते है और ज्यादा से ज्यादा भीख देते है और वैसे भी तू रामशंकर भिखारी का लड़का है तू बिल्कुल मेरी तरह बनेगा... समझा ना एकदम लल्लनटॉप भिखारी..." उसने पल्टू की चड्डी को आज़ाद करते हुए पास मे बुझे हुए चूल्हे (जोकि कई सालो से आग का प्यासा था) की तरफ इशारा करते हुए कहना जारी रखा, "जा वो चूल्हे के पास पड़े कपड़े पहन ले..."
दोनो बाप-बेटे एक सकरी गली में दस बाई दस के दुकाननुमा कमरे में रहते थे जिसको दुकान कहना ही ज्यादा उचित होगा और उसका आधा शटर पूरी तरह से सड़ चुका था, जिसकी वजह से उस दुकान का आधा शटर हमेशा खुला रहता था और कुत्ते-बिल्ली और कभी-कभी सुअर भी उस दुकान में अपनी रात गुजारने चले आते थे। रामशंकर की बिवी ने कई सालों पहले ही एक गम्भीर बीमारी की वजह से दम तोड़ चुका था, और पल्टू की छोटी बहन भी सात महीने की छोटी उम्र मे ही मर चुकी थी। सामान के नाम पर उस दुकान में एक चूल्हा और चारपाई थी, जोकि अपने आखिरी दिनो की कर रही थी। दिन में जब पल्टू बाहर भीख माँगने जाता था तो रामशंकर कुत्ते और गायों से बाते करता था और ऱोज उन्हे ये बताता कि कैसे वह भीख माँगने जाता था और पल्टू के भीख माँगना शुरू करने के बाद उसने कैसे अपनी ज़िन्दगी को दारू के नशे में लगा दिया।
पल्टू ने अपनी उस गन्दी सी जीन्स और शर्ट पहनी, जीन्स को एक सुतली की रस्सी से कमर पर टाईट करने के बाद पल्टू अपने एकमात्र काम पर निकल गया।
"और हाँ..." पल्टू के निकलने से पहले ही रामशंकर ने पल्टू को टोकते हुए कहा, "हाफ डे तक मुझे मेरी दारू के फुल पैसे चाहिए, और अगर एक भी रूपया कम मिला ना तो तेरी खैर नही समझ गया..."
पल्टू ने अपनी मुण्डी को हाँ वाले लहज़े में हिलाते हुए तुरंत उस सकरी गली से निकल कर मेन रोड पर पहुँच गया। रास्से में अपने जान-पहचान वालो से दुआ सलाम करते हुए पल्टू अपनी जानी-पहचानी बेकरी की दुकान पहुँचा और वहाँ आने वालो से भीख माँगना शुरू कर दिया।
कभी लोग उसे दुतकार कर अपना पीछा छुड़ाते तो कभी कुछ लोग एक-दो रूपया देकर और कुछ लोग अपनी गर्लफ्रेन्ड को रईसी दिखाने के लिये उसे पाँच से दस रूपये का नोट तक पकड़ा देते थे। इसलिये पल्टू ज्यादातर उन्ही से पैसे माँगता जिसके साथ कोई लड़की या वह कई सारे दोस्तो के साथ आया हो।
"साहब एक रूपया दे दो बहुत भूख लगी है कुछ खा लूँगा..." पल्टू ने एक हट्टे कट्टे नौजवान लड़के से कहा जो अपने कुछ दोस्तो के साथ आया था।
"हाँ बेटा इसी से माँगो यही है वह अमीर आदमी है जो हम लोगो को पार्टी दे रहा है..." उस नौजवान लड़के के तीन दोस्तो में से एक दोस्त ने हँसते हुए कहा।
"इधर आ ज़रा..." उस लड़के ने पल्टू को अपने पास बुलाने का इशारा करते हुए कहा।
पल्टू उस लड़के के थोड़ा पास आया लेकिन इतना नही कि उस लड़के की गिरफ्त में आ सके।
"ये बताओ कि तुम्हारे बाप कहाँ है.?"
"काम पर गये है..." पल्टू ने बड़ी ही सफाई से झूठ बोलते हुए कहा।
"और तुम्हारी अम्मा कहाँ है.?"
"घर पर है..." पल्टू ने थोड़ा असहज होते हुए बोला।
उस लड़के ने अपनी जेब से एक दस रूपये का नोट निकाला औऱ पल्टू की तरफ बढ़ा दिया लेकिन इससे पहले कि पल्टू वह नोट ले पाता लड़के ने तुरंत वह नोट अपने पास वापस खीच लिया और बोला, "ये नोट तुम्हे एक शर्त पर मिलेगा..."
"कैसी शर्त.?"
"कि अगर तुम मुझे अपनी अम्मा के पास ले चलोगे तो मै ये नोट तुम्हे दे दूंगा..." इतना कहते ही उसके पीछे खड़े सारे दोस्त हँसने लगे।
पल्टू ने हल्के से अपने पैर पीछे खिसकाते हुए कहा, "तुम खुद अगर मुझे तुम्हारी अम्मा के पास ले चलोगे तो मै तुम्हे इससे ज्यादा पैसे दे दूंगा..." उस लड़के के साथ खड़े सारे दोस्त उसकी बेइज्जती देख कर और जोर से हँसने लगे।
"क्या बोला बे.?" वो लड़का आश्चर्यचकित होते हुए गुस्से से पल्टू को पकड़ने के लिये दौड़ा परंतु पल्टू पहले ही उस पहुँच से दूर निकल चुका था।
पल्टू काफी देर तक उस दुकान से दूर रहा और इधर उधर टहलने के बाद उसने अपना रास्ता साफ देख कर फिर से उसी दुकान के आसपास मँडराते हुए भीख माँगने लगा।
लगभग डेढ़ बजे दुकानदार अपना सामान समेटते हुए बोला, "चलो बेटा जाओ यहाँ से, हाफ डे हो गया है, मै खाना खाने जा रहा हूँ और दुकान एक-डेढ़ घण्टे बाद ही वापस आऊंगा..."
इतना कह कर वह दुकानदार दुकान बंद करने के लिये बाहर आया ही था कि एक लड़का भागते हुए आया और चिल्लाया, "भाई एक कोल्डड्रिंक पिला दे फिर बंद कर लेना शॉप..."
पल्टू तुरंत ही अपने कस्टमर के पीछे लग गया और उस लड़के के शर्ट खीचते हुए कहा, "साहब एक रूपया दे दो सुबह से कुछ नही खाया है..."
"भाई..." वह लड़का दुकानदार की तरफ मुड़ते हुए बोला, "यार इसको मेरी तरफ से एक पेटीज दे देना..."
"साहब बस एक रूपया दे दो, मै खाना खा लूंगा..."
"अरे..!" लड़के ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा, "एक रूपये में तुम क्या खा लोगे भाई.?"
"साहब बाकी पैसे है मेरे पास बस एक रूपये की कमी हैं..."
उस लड़के ने दुकानदार को रूपये देकर एक कोल्डड्रिंक को अपने हाथ में पकड़ा और पल्टू की तरफ मुड़ते हुए पूछा, "अच्छा पहले ये बताओ कि तुम्हारा नाम क्या है..."
"पल्टू..."
"पढ़ते हो या नही... कि यही दिन भर भीख माँगते रहते हो.?"
"नही पढ़ता, पढ़ने का मन नही करता हैं..."
"क्यो पढ़ने का नहीं करता या घर में कोई पढ़ने नहीं देता है..."
"आप जो समझ लो साहब..." पल्टू लगातार उस लड़के के सामने अपना हाथ फैलाए हुए बोलता है।
"तुम्हारा घर कहाँ है.?"
"क्यों..." पल्टू ने आश्चर्य से उस लड़के से पूछता है।
"क्यों क्या पहले बताओ तो..."
"मैं नही बता रहा हूँ..."
"अरे! अच्छा ये तो बताओ कि तुम्हारे पिताजी क्या करते है..." लड़के ने अपनी जेब से दस का नोट निकाल कर कहा, "देखो तुम मुझे बताओगे तो यह रूपये तुम्हारे..."
पल्टू तुरंत उस रूपये को झपट्टा मार कर ले लिया और वापस भागते हुए कहा, "कुछ नही करते है..."
घर पहुँचने से पहले ही पल्टू देखता है कि उसका बाप संकरी गली से निकल कर मेन रोड पर बनी एक बंद दुकान की फर्श पर पेड़ की छाव में बैठकर अपनी आधी टाँग को हाथो में मालिश कर रहा हैं।
"आ गया बेटा ला मेरी दारू के पैसे ला..." रामशंकर ने अपने लकड़ी के स्टैण्ड की सहायता से खड़े होते हुए बोला।
"हाँ लो अपनी दारू के पैसे गिन लो... हाफ डे के फुल पैसे..." पल्टू सारे पैसे रामशंकर को देते हुए बोला।
रामशंकर पैसे गिन ही रहा था कि सामने से एक आवाज आयी, "तो आप हो इसके बाप.?" ये वही लड़का था जिससे पल्टू अभी-अभी पैसे छीन कर लाया था।
"आपको शर्म नही आती है इतने छोटे बच्चे से भीख मँगवाते हुए..." वह लड़का पल्टू के पीछे खड़ा होकर उसके कंधो पर अपने हाथ रखते हुए बोला।
"क्या करू साहब... आप तो देख ही रहे हो कि मैं एक पैर से लाचार हूँ..." रामशंकर ने रोती हुई सूरत बनाते हुए कहा।
"तो एक ही पैर से लाचार हो ना पूरे शरीर से तो नही... ना जाने कितने लोग यहाँ दोनो पैर न होने के बावजूद कितना काम करते है और अपने पूरे परिवार को अच्छी परवरिश देने की कोशिश करते है और तुम हो जो इस छोटे से बच्चे से ही पढ़ने लिखने की उम्र में उससे भीख मँगवा रहे हो... घिन आती है मुझे तुम जैसे लोगो से जो अपने बच्चो से सिर्फ दारू पीने के लिये काम करवाते है... अरे इतना ही दारू पीने का शौक है तो खुद के पैसो से पी कर देखों..."
"मुझे नही आती है शर्म..." रामशंकर अपने असली रंग में आते हुए बोला, "मेरा लड़का है... ये मेरी मेहनत से पैदा हुआ है... ये मेरी तरह ही बनेगा रामशंकर भिखारी की तरह एकदम लल्लनटॉप भिखारी, जिसे देखते ही लोग भीख की बरसात कर दे... और ये जो तुम्हारे उपदेश है ना इसे अपने बच्चो को देना मुझे नही... हुँह आये बड़े वकालत झाड़ने वाले..."
"तुम जैसे मूर्ख लोगो को समझाना पत्थर पर सिर मारने जैसा है..." वह लड़का पल्टू को अपनी तरफ मोड़कर बोलता है, "बेटा तुम जीवन मे सबकुछ बनना लेकिन इस गधे के जैसे न बनना..."
"जाओ साहब अपनी वकालत कहीँ और दिखाना... मेरे लड़के को मत भड़काओ..."
"हाँ... हाँ... जा रहा हूँ..." उस लड़के ने रामशंकर को दुतकारते हुए वापस मुड़ गया और उसके मुड़ते ही रामशंकर ने फिर से पैसे गिनने चालू कर दिये।
"इसमे पाँच रूपये कम हैं बे..." रामशंकर ने गुस्से से भन्नाते हुए कहा।
"पाँच रूपये.?" पल्टू ने आश्चर्य से कहा, मैने तो पूरे गिने थे अंतिम के दस रूपये मिला कर पाँच रूपये ज्यादा थे इसमे... शायद दौड़कर आते वक्त कही गिर ना गये हो.."
"साले झू्ठ बोलता है... लग रहा है नवाब हो गया है... मेरे पैसे का कुछ खा लिया होगा और ऊपर से झूठ बोलता है कि दौड़ने मे गिर गये होगे... यहाँ कहाँ पी टी ऊषा की दौड़ हो रही थी जो तू उससे रेस लगा रहा था..."
यह सुनकर वह लड़का वापस उनकी ओर मुड़ा जो कि वास्तव में वो दस रूपये का सिक्का लौटाने आया था जो पल्टू के बचकर भागते वक्त गिरे थे परंतु रामशंकर के साथ बहस की वजह से देना भूल गया था, परंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उस लड़के के मुड़ते ही रामशंकर ने पल्टू को एक जोरदार तमाचा मारा जिससे पल्टू मेन रोड पर गिर पड़ा और पीछे से आ रही एक कार ने अपने भारीभरकम टायर पल्टू के पैरों पर चढ़ा दी जिससे पल्टू जोर से चीखते हुए बेहोश हो गया।
वह लड़का तुरंत ही पल्टू के पास दौड़ता हुँआ आया और पल्टू के पैरों की हालत देखकर उसने पत्थर की मूरत बने रामशंकर से कहा, "लो बन गया ये भी तुम्हारी तरह लल्लनटॉप लाचार..."