ओ मानव ! अब त्राहि त्राहि देख चहुँ ओर, तेरा अंतर्मन घबराया है। ओ मानव ! अब त्राहि त्राहि देख चहुँ ओर, तेरा अंतर्मन घबराया है।
तारीफ़ दोस्त बना देती है ज़माने को। तारीफ़ दोस्त बना देती है ज़माने को।
मनाता कैसे कलम स्याही को लिखते नहीं रुकती जिन्दगी जीत गए खुद के दिल दिल्लाहि शब्द से रस बने शब्द ... मनाता कैसे कलम स्याही को लिखते नहीं रुकती जिन्दगी जीत गए खुद के दिल दिल्लाहि ...
अब अच्छे वस्त्रों में भी, नग्न नजर आता है आदमी। अब अच्छे वस्त्रों में भी, नग्न नजर आता है आदमी।
बस सांस ही में आस है.. इतना तो विश्वास है! बस सांस ही में आस है.. इतना तो विश्वास है!