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Sadiya Malik

Others

3.4  

Sadiya Malik

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आदमी

आदमी

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पहले जो आदमी था

बड़ा कीमती था वो आदमी

अब हर‌ चीज़ महँगी है,

केवल सस्ता है आदमी।


पहले वस्त्र नहीं थे 

फिर भी नग्न नहीं था आदमी

अब अच्छे वस्त्रों में भी,

नग्न नजर आता है आदमी।


पहले मिल-जुलकर प्रेम

की राह पर चलता था आदमी

अब नफरत के बिछा कर छिलके

आदमी को गिराता है आदमी।


पहले हम और हमारे लिए

हमारा अपना था आदमी

अब मैं और मेरे लिए

बेगाना हो गया आदमी।


पहले चाँदी और सोना

खरीदा करता था आदमी

अब चाँदी और सोने के सिक्कों से,

खरीदा जाता है आदमी।


पहले अंदर और बाहर से

आदमी लगता था आदमी

अब भीतर से है कुछ

और बाहर से कुछ लगता है आदमी।


पहले दूसरों के प्यार में,

आग देख रोता था आदमी

आज दूसरों की खुशी देख

धुआँ-सा जलता है आदमी।


पहले जिंदगी के सफर में,

फूलों की सेज सजाता था आदमी

अब खुद जीने के लिए,

गैरों को काँटे दिखाता है आदमी।

मगर................

अब मर-मर के बार-बार मरता है आदमी।



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