ये दिल अब दौड़ना नही जानता
ये दिल अब दौड़ना नही जानता
ये दिल अब दौड़ना नहीं जानता…
ये दिल अब बहस नहीं जानता…
ये दिल को अब एक किनारा चाहिए…
एक ऐसा दरिया चाहिए,
जो इस मझधार की कश्ती को एक किनारा दे
एक वैसा सहारा दे
की पूरी की पूरी नैया पार लग जाए…
ये दिल अब बोझ नहीं उठा पता…
ये दिल अब कुछ सोच नहीं पता…
ये दिल अब सिर्फ़ तक़दीर को है कोसता
क्यूंकि शायद ये अब कुछ समझ नहीं पता.
ये दिल का भी एक दरिया था
कहीं तो वो टूटा था…
कहीं जो वो छूटा था…
कभी जुड़ न सके वैसा भी एक दर्द था..
आज फिर क्यूँ वो मुक्कमल आया
आज क्यूँ फिर जुड़ने की बारी आई
और आई भी तो फिर क्यूँ
वो दर्द ले के आई?
एक दर्द का दरिया था…
हमने अकेले ही काटा था
ना कल कोई था ,
और ना आज कोई है
तो फिर क्यूँ
हम अपना कल किसी को सौंपे ?
जो कभी था ही नहीं इस समुंदर में ?