वसंत ऋतु और नवजीवन
वसंत ऋतु और नवजीवन


वसंत ऋतु है जीवन का आधार,
नव पुष्प पल्लवित हो कर देते,
प्रकृति को नव जीवन का आधार।
कलरव की ध्वनि से दिशाएं गूंजती है,
जैसी नवजीवन उदय से प्रकृति झूमती है।
कामदेव और रति के प्रेम से प्रकृति भी हुई उन्मुक्त,
उसने भी अपने रूप को अच्छादित किया,
हरित नव पल्लवित फूल - पत्तों से युक्त।
वसंत सिखाता छोड़ पुराने दर्द को, नवजीवन को अपनाओ,
झूमो - गाओ आनंद मनाओ, जीवन में नई - राह बनाओ।
आम के वृक्षों में नन्हीं - नन्हीं बौर उग आई,
गेहूं की बाली भी धीरे-धीरे उग आई।
प्रकृति ने अपनी बसंत ऋतु आगमन की खुशबू फैलाई।
खट्टी - मीठी बेरे भी अब बसंत उत्सव मनाकर,
बढ़ाने लगी जिव्हा का स्वाद,
ठंड भी कम हुई देखो मौसम में आई गर्माहट,
सूरज दादा का तेज हुआ असरदार।
आसमान में पक्षी कलरव करते,
तुम अपनी किलकारियों से घर को भरते,
है जीवन कितना सुंदर, तुम संग जाना वसंत आगमन।
किसान के खेत में जिस तरह पीली सरसों लहराई,
तुम मेरे जीवन में खुशियां बनकर उसी तरह लहराए।
सरसों के पीले - पीले फूल खेतों में लहराते,
जिन्हें देख सब खुश हो जाते,
तुम भी जब पाठशाला से घर आते,
मुस्कान लिए तुम भी बगीचे में लहराते,
जिसे देख हम खुश हो जाते।
पुराने पत्ते झर नवजीवन का आभास दिलाते,
नव अंकुर नन्हीं पंखुड़ियां खिलती,
उसी तरह तुम्हारे आगमन से मेरे जीवन में नवज्योति जलती।
वसंत - पंचमी में जब तुम सरस्वती पूजन करते,
अपने दोनों हाथों से वाग्देवी को नमन करते,
शिवरात्रि के दिन जब महादेव का जाप करते,
ढोल - नगाड़े बाजों से शिवभक्त पार्वती संग महादेव का गान करते।