वृद्धा
वृद्धा
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बाबूजी के गुजरने के बाद,
माँ के मन का खालीपन
महसूस किया है बहुत करीब से।
श्राद्ध कर्म के बाद,
सात बच्चों का जत्था,
अपने अपने ठिकानों पर जाता हुआ
माँ को अनेकानेक तसल्ली देकर,
जल्दी आऊंगा/आऊँगी
अपना ख्याल रखना।
माँ बहुत भावुक होती हुई,
सबको विदा करती हुई,
हौले से, सबसे एक ही सवाल
अब तो मैं बूढ़ी हो चली हूँ,
कैसे रहूँगी अकेले।
तुम्हारे बाबूजी थे तो सब ठीक था
लेकिन अब ?
किसी ने माँ की उत्सुकता शांत नहीं की।
अपनी व्यस्तता का हवाला दिया
और सभी अपने गंतव्य की ओर
बड़े भैया ने कमान संभाला।
अगले महीने से सबका आना,
हर महीने तय किया।
किसी ने साथ चलने को नहीं कहा।
सब उन्मुक्त जिंदगी की तलाश में
मैं अकेली सब सुन रही थी,देख रही थी।
क्या थी इसमें मंशा सबकी
कहना मुश्किल मेरे लिए।
सुकून के लिए,
माँ को ले आई अपने घर
माँ के ही शहर में
माँ पर अपना हक समझ कर
दिल को तसल्ली हुई।
लोग मिलने आते, माँ सबको यही कहती
बेटे बहुत बड़े पोस्ट पर हैं,
उन्हें फुरसत नही, फिर भी
रोज फ़ोन करते हैं।
माँ के इस झूठ में झूठ नहीं,
बेटे का प्यार और गर्व झलकता
मैं मुस्कुरा देती।