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Garima Shukla

Inspirational Others

4.4  

Garima Shukla

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वो चंद तेज़ाब के छींटे

वो चंद तेज़ाब के छींटे

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वो चंद छींटे आँखों की रोशनी तो ले जा सकते,

इन आँख में बसे सपने न ले जा पाएंगे ।

मेरे जीने का तरीका ले जा सकते,

मेरे जीने के मकसद न ले जा पाएंगे।

वो तेज़ाब जिसने शरीर और चेहरा जलाया,

मेरे मन , मेरी उमंग ,मेरे अल्फाजों को ना मिटा पाएंगे।

तेरे गुस्से से भरी वो तेज़ाब की शीशी

मेरी खूबसरती को तो ले गए,

मेरा स्वाभिमान, मेरी पहचान, मेरा अस्तित्व न ले जा पाएंगे।


वो शीशी का तेज़ाब तेरी नीच सोच से भरा, 

चेहरे और शरीर की सुंदरता को ले गया,

चेहरे पर गिर कर भी मेरे ज़मीर को न ले जा सका। 

खता बता मेरी, जो ये ज़ख्म दिया था,

चेहरा पिघल गया, हां दर्द बेहद था ।

कितना चीखी चिल्लाई मैं,

तूने जरा सी भी दया ना दिखाई थी,

अब क्यों रखता उम्मीद ए माफ़ी की ।


जज़्बा जो अंबर को छूने का था अवनि से विरासत में मिला,

वो जज़्बा, वो धैर्य, वो सहनशक्ति ,

तेरा वो शीशी भर तेजाब न ले जा सका।

हां तेरे तेज़ाब से कुछ अपने बेगानों के भी चेहरे साफ हुए,

मेरे अपने होते हुए भी उनके गैरों से बर्ताव हुए,

लोगो के ताने, सुन सुन के घबराई थी मैं,

हां कुछ वक्त के लिए किया था मेरे सपने को चूर चूर,

क्योंकि उस वक्त थी बहुत मजबूर मैं....।


अब संभली हूं, खुद से खुद को संवारा है,

सब कुछ ले जाके मेरा कुछ ना ले जा सका

 तेरे वो तेज़ाब के छींटे, मेरे हौसले से छोटे थे ।

मेरा हौसला खुद की पहचान बनाने का,

आज भी मेरी आँखो में बसता है, 

तेरी छोटी सोच, नीच हरकत को देख के,

मेरा दिल आज भी हँसता है।।

आज भी हँसता है।।।



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