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Parminder Soni

Abstract

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Parminder Soni

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उनमुक्त प्रकृति

उनमुक्त प्रकृति

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हर रहा है मन, सुन्दर छटा बिखेरता

चाँद आसमाँ पर, तारों के संग है खेलता ।


न धुंध है न कालिमा,सृष्टि में अनुराग है

चहक रही है प्रकृति, आकाश भी बेदाग है ।


उनमुक्त सारे पक्षी, विचर रहे हैं व्योम में

कैद में है मानव, अब शुद्ध हवा का वास है ।


विचलित हुई थी धार्या, मानव का दंभ देखकर

सिखा दिया सबक है, हमें कारावास भेजकर


न सीखे जो अभी भी, धरा को देना सम्मान

फिर

त्रासदी पास है, सम्पूर्ण ही विनाश है।


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