उनमुक्त प्रकृति
उनमुक्त प्रकृति
हर रहा है मन, सुन्दर छटा बिखेरता
चाँद आसमाँ पर, तारों के संग है खेलता ।
न धुंध है न कालिमा,सृष्टि में अनुराग है
चहक रही है प्रकृति, आकाश भी बेदाग है ।
उनमुक्त सारे पक्षी, विचर रहे हैं व्योम में
कैद में है मानव, अब शुद्ध हवा का वास है ।
विचलित हुई थी धार्या, मानव का दंभ देखकर
सिखा दिया सबक है, हमें कारावास भेजकर
न सीखे जो अभी भी, धरा को देना सम्मान
फिर
त्रासदी पास है, सम्पूर्ण ही विनाश है।
