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Parminder Soni

Inspirational

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Parminder Soni

Inspirational

अंतहीन

अंतहीन

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आज घर बैठ चलो कुछ सुन्दर रचते हैं

व्यस्त अंधेरों में गुमी रिश्तों की

दमक ले आते हैं

आओ बैठें आराम से चाय की चुस्की लें

आँखें मूँदें मेज़ पर पैर टिका लें

कहीं जाने की नहाने की झट से भागने की

कोई जल्दी नहीं


गहरी साँस लें आओ पास, संग रहें आओ,

दिल खोल दें सुख दुख टटोल लें

खामोशियों को चीर कुछ अल्फाज़ बोल दें

कोई धुन बुने कुछ बोल गुनगुनाएं

त्राहि त्राहि करते संसार में

चल दो पल वीणा के तार बजाऐं

अनिश्चितता की इस धुंध में

रौशन इक नज़्म करें है कल अनिश्चित

तो आओ, हर लम्हा अनमोल,

और आज को अंतहीन करें।



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