निरंजन तिवारी

Inspirational

5.0  

निरंजन तिवारी

Inspirational

उम्मीद

उम्मीद

1 min
277


जीतता कब हूँ? हारकर देखता हूँ,

इस बार उम्मीद लगाकर देखता हूँ।


हारकर जीतूँगा या जीतकर हारूँगा,

फिर यह गुनाह करके देखता हूँ।


जानता हूँ सफर आसान नहीं है,

अब कांटो पर टहल कर देखता हूँ।


अब वक्त बदलेगा या मैं बदलूंगा,

इस बार कुछ बदल कर देखता हूँ।


जीतता कब हूँ? हार कर देखता हूँ


हारने वाले मनहूस बहुत है जहान में,

उनके हार को बारी की से देखता हूँ।


कुछ कमियां उनकेे हौसले में अजीब थी,

चलो उन खामियों को संभलकर देखता हूँ।


मजबूत करके चलता हूँ इरादे इस बार,

तूफानों में फिर चिराग जलाकर देखता हूँ।


जानता हूँ दिन जीतेगा मेरा जज्बा,

जीत की राह पर चल कर देखता हूँ।


जीतता कब हूँ? हारकर देखता हूँ।


Rate this content
Log in

More hindi poem from निरंजन तिवारी

Similar hindi poem from Inspirational