तू भी ना
तू भी ना
तू भी ना बेवक्त-सी है
बिन बुलाये आ जाती है
कुछ कह नहीं पाती मैं,
फिर भी ना जाने कहाँ से तू आ जाती हैं...
कहने को बहुत कुछ हैं तेरे पास
मगर कहती भी कहाँ है.
तू मुझसे कुछ
बंद आँखों से देख पाती है मुझे
पर समझाती कहाँ है
तू भी ना बेवक्त-सी है.
सुन सकती है क्या मुझे तू...
महसूस भी कर सकती हैं?
नहीं न...
तू ढोंग है,
दिखावा हैं,
मेरे साथ रह कर भी तू बस छलावा हैं
जिंदगी.
तू भी तो मेरी नहीं-
साथ रह कर भी दूर कहीं
रहती हो,
महज़ एक रंग है
उमंग हैं,
छल से ज़्यादा नहीं
जानती हूँ तू छल है
फिर भी चली जाती हूँ
अपनी ही धुन में,