तू और श्रम कर
तू और श्रम कर
बिन मुश्किल के राह नहीं होती,
तूफ़ान बिना बारिश नहीं होती।
क्यों एकांत पाकर सोच रहा है तू है अकेला,
भूल नहीं आज वर्तमान समय है तेरा चेला।
दुनिया के ठेकों में क्यों तू है इतना डूबा?
एक दिन बन जाएंगे यह तेरी सफलता का फंदा।
हो तेरी मेहनत तेरा परिचय,
कर तू श्रम इतना, तू बन जाए परिश्रम का आशय।
एक - एक बूंद कर दरिया से सागर बनता है,
उगता सूरज फिर उभरने हेतु एक बार फिर ढलता है।
उठ कर अपना शास्त्र का अस्त्र उठा,
इसकी चादर से तू अपना वस्त्र बना।
बिन मंज़िल के राह नहीं होती,
मेहनत तेरी कभी बेकार नहीं होती।
एक मंज़िल पाकर क्या आगे राह नहीं होती?
तू और श्रम कर जबतक तेरी जयजयकार नहीं होती।
