तर्पण
तर्पण
रिश्ते नहीं मरते किसी के गुजर जाने के बाद
हम उन्हें अपने इर्द -गिर्द महसूस करते हैं
धुंधली पड़ी फोटो को निहारते
उंगलियों के पोरों से वह बस जाते हैं
आंसू बनकर नैनो के कोरो में
हमसे मिलने आते हैं पितर स्वजन पितृ पक्ष में
प्रत्यक्ष रूप में नहीं, करते रखवाली में जरूर है
हमारी परोक्ष में,
भूलती जा रही है आज की पीढ़ी
रिश्तों की अहमियत, मजबूल है
सँवारने में अपनी ही शख्सियत,
टेक्नोलॉजी की दुनिया से परे,
देना होगा उन्हें ज्ञान,
बताना होगा कैसे करें वे संबंधों का सम्मान,
पूर्वजों का प्रतीक बनकर कागा
आता और खाता है बड़े ही प्यार से,
हम श्रद्धा से जो भी करते अर्पण,
केवल एक रिवाज नहीं, पूर्वजों का आशीर्वाद,
सुखी सफल जीवन का आधार है तर्पण।