तिल्ली और मैं....
तिल्ली और मैं....
तिल्ली और मैं
दोनों एक जैसे हैं
वो भी सूखी
और मैं भी
पतलेपन पर मत जाना
जब बोलती हूँ तो
अच्छे अच्छे डरते हैं
किलकिलि चढ़ती है
जब कोई अपना
सोचा काम
पूरा नहीं होता
अंदर से धुंआ उठता है
जैसे जलती हुई
तिल्ली सुलग रही हो
ज़रा से रगड़ने पर
भुरभुरा कर
जल उठती है तिल्ली
डरती नहीं है
बदलाव के लिए
उकसाती है
एक छोटी सी
डिब्बी में बंद कर
तिल्लियों की आग को
रोका जाता है
जैसे उस पर
समाज की आचार संहिता
लागू कर दी हो
मैं नहीं मानती यह
सामाजिक बंधन
तिल्ली और मैं
स्वतंत्र अपनी लॉ में
जलना चाहते हैं
क्योंकि बिन जले
परिवर्तन संभव नहीं