STORYMIRROR

Mahavir Uttranchali

Abstract

3  

Mahavir Uttranchali

Abstract

थोड़ा और गहरे

थोड़ा और गहरे

1 min
263

थोड़ा और गहरे उतरा जाये

तब जाकर इश्क में डूबा जाये।


लफ़्ज़ों में शामिल अहसासों को

महसूस करूँ तो समझा जाये।


है ज़रूरी ये कोरे काग़ज़ पर

जो सोचा है, वो लिक्खा जाये।


ये मुमकिन तो नहीं चाहत में

जो दिल चाहे वो मिलता जाये।


सोच रहा हूँ काबू में अपने

जज्बात को कैसे रक्खा जाये।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract