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सूर्य

सूर्य

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चंपे के फूल मुंह उठाए

देखते हैं सूर्य की ओर¸

तार पर बैठी एक चिड़िया

ताकती है सूर्योदय¸

जाड़े में सर्दी से कुकुड़ता

एक बच्चा उम्मीद से

बैठता है धूप में।

अपनी धुरी पर स्थिर और अचल

सूर्य

देखता है फूल को¸ चिड़िया को¸

बच्चे को

अपने ही प्रताप से

पकती फ़सलों को

सूर्य को नहीं सूझ पड़ती

वनस्पतियां¸ लोग और

रंभाते–जमुहाते पशुओं की कतारें

सूर्य ऊपर की ओर देखता है

शून्य में¸ अन्यमनस्क

सूर्य के धधकते अंतस में

बैठा है अंधेरा

सूर्य को दिखाई नहीं देता

धूप न सूर्य की नन्हीं उंगलियाँ हैं

न आंखें

धूप सिर्फ़ दृष्टि है

सब पर बिखरी पर कुछ भी न देख पाती

एक नेत्रहीन की।



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