सुर्खियां..
सुर्खियां..
सुर्खियां बटोर कर भी तो
मगरूरियत के पंख लग जाने हैं
जमीं के बुने ख़्वाब
आकाश में उड़ जाने हैं
यूँ तो जमीं से रिश्ता पुराना है
और आसमा ख़ुदा का ठिकाना है
फिर फ़लक पर श्मशान भी नहीं
लौटकर जमीं पर ही आना है
तो अपनी जमीं से रिश्ता क्यूँ तोड़ दूँ मैं
जिनके सहारे हूं उनसे मुँह क्यूँ मोड़ लूँ मैं
जानता हूँ एक ना एक दिन
कुछ शौहरत कमानी है
मगर जब तलक पहचान बनेगी
अपनी तो गुजर जानी है।
