स्त्री
स्त्री


मैं सिर्फ एक स्त्री हूँ ,
कोई अबला ,बेचारी नहीं।
मुश्किलों से हरपल लड़ी हूँ मैं ,
कभी जिंदगी से हारी नहीं ।।
स्वाभिमान से मैं जीने वाली ,
रखती अंदर खुद्दारी हूँ ..
कमजोर समझ ना ये दुनिया,
मैं नवयुग की नारी हूँ ।।
पुरुष प्रधान जगत में मैंंने ,
अपना लोहा मनवाया है ।
जो काम मर्द करते आये हैं ,
हर काम वो करके दिखलाया है ।।
भविष्य ,वर्तमान ,अतीत हूँ मैं , ,
हर पल पुरुषों पर भारी हूँ ,
कमजोर समझ ना ये दुनिया,
मैं नवयुग की नारी हूँ ।।
मैं कन्याकुमारी और हिमालय तक हूँ ,
अंतरिक्ष ,जमीं और पताल तक हूँ ।
अपने भुजबल से हरपल जीने वाली ,
बिजिनेस ,लेडी ,व्यापारी हूँ ,
कमजोर समझ ना ये दुनिया,मैं
नवयुग की नारी हूँ ।।
मैं ओ चिड़िया हूँ ,जो आनंददायनी आँगन में ,
पंख फैलाकर चारो ओर, फ़ुदकती रहती हूँ ।
चेहरे पर मुस्कान लिए ,बाबुल की बगियाँ में ,
हर पल चहकती रहती हूँ ।।
ना जाने क्यों मेरी चपलता ,
किसी की आँखों में खटकती रहती है ।
उन दरिंदे शिकारियों की तीक्ष्ण दृष्टि ,
हमपे ही लगी रहती है ।।
ये अबला तू सबला बनो ,
हो तुम किसी से कमजोर नहीं ।
अपनी नारी शक्ति को पहचानो ,
जिसका कोई तोड़ नहीं ।।
काट डालो उन बहेलियों की जाले,
जो तुम्हे चंगुल में ,लेने की कोशिश करता है ।
क़तर डालों उन बाजों का पंख ,
जो चोंच मारने की ,कोशिश करता है ।।
नहीं डरेंगे हम किसी भेड़िये से ,
आज एक साथ मिलकर कसम खा लो ,
सम्मान करो सारिका गुप्ता की लेखनी को ,
समय रहते तुम खुद को जागा लो ।।