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SARIKA GUPTA

Inspirational

4.0  

SARIKA GUPTA

Inspirational

स्त्री

स्त्री

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मैं सिर्फ एक स्त्री हूँ ,

कोई अबला ,बेचारी नहीं।

मुश्किलों से हरपल लड़ी हूँ मैं ,

कभी जिंदगी से हारी नहीं ।।

स्वाभिमान से मैं जीने वाली ,

रखती अंदर खुद्दारी हूँ ..

कमजोर समझ ना ये दुनिया,

मैं नवयुग की नारी हूँ ।।

पुरुष प्रधान जगत में मैंंने ,

अपना लोहा मनवाया है ।

जो काम मर्द करते आये हैं ,

हर काम वो करके दिखलाया है ।।

भविष्य ,वर्तमान ,अतीत हूँ मैं , ,

हर पल पुरुषों पर भारी हूँ ,

कमजोर समझ ना ये दुनिया,

मैं नवयुग की नारी हूँ ।।

मैं कन्याकुमारी और हिमालय तक हूँ ,

अंतरिक्ष ,जमीं और पताल तक हूँ ।

अपने भुजबल से हरपल जीने वाली ,

बिजिनेस ,लेडी ,व्यापारी हूँ ,

कमजोर समझ ना ये दुनिया,मैं 

नवयुग की नारी हूँ ।।

मैं ओ चिड़िया हूँ ,जो आनंददायनी आँगन में ,

पंख फैलाकर चारो ओर, फ़ुदकती रहती हूँ ।

चेहरे पर मुस्कान लिए ,बाबुल की बगियाँ में ,

 हर पल चहकती रहती हूँ ।।

ना जाने क्यों मेरी चपलता ,

किसी की आँखों में खटकती रहती है ।

उन दरिंदे शिकारियों की तीक्ष्ण दृष्टि ,

हमपे ही लगी रहती है ।।

ये अबला तू सबला बनो ,

हो तुम किसी से कमजोर नहीं ।

अपनी नारी शक्ति को पहचानो ,

जिसका कोई तोड़ नहीं ।।

काट डालो उन बहेलियों की जाले,

जो तुम्हे चंगुल में ,लेने की कोशिश करता है ।

क़तर डालों उन बाजों का पंख ,

जो चोंच मारने की ,कोशिश करता है ।।

नहीं डरेंगे हम किसी भेड़िये से ,

आज एक साथ मिलकर कसम खा लो ,

सम्मान करो सारिका गुप्ता की लेखनी को ,

समय रहते तुम खुद को जागा लो ।।

        


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