स्त्री
स्त्री
ये सच है कि मैं लक्ष्मी हूँ
पर अक्सर थोड़े से पैसे की
मेरी मांग फिजूल खर्ची कहलाती है
ये सच है कि मैं अन्नपूर्णा हूँ
पर सदा रात की बची रोटी
मेरे हिस्से ही आती है
ये सच है कि मैं गृह स्वामिनी हूँ
पर अक्सर दिलों में खुद के लिए
जगह ढूंढ नहीं पाती हूँ।
ये सच है कि मैं स्त्री हूं
खुद से अंजान
दूसरों के दिए नाम और
रिश्ते ओढ़ती हूँ
वो स्त्री जिसके लिए दसों
दिशाएं खोल दी गई है
पर वो अपनी
हद नहीं जानती
पर इससे मेरे वजूद में
कोई फर्क नहीं पड़ता
मेरे होने का असर
नमक सा ही तो है
मैं हूँ तो सब हैं
मैं नहीं तो कुछ भी नहीं
यही सच है कि मैं स्त्री हूँ
मां हूँ बहन हूँ
मैं सिर्फ मैं हूं
मैं स्त्री हूं।
