सिद्धार्थ से बुद्ध
सिद्धार्थ से बुद्ध
कभी -कभी आता है बन कर
मानव खुद ही भगवान्।
निहित उद्धेश्यों कि ख़ातिर करता
नव जागृति चेतना के युग का पुनर्निर्माण।
प्रवर्तक बन युग का परिमाजर्न
करता संस्कृति संस्कार।
युग जब स्वीकारता प्रवर्तक के परिवर्तन
आदर्शों को तब मानव मानव को
कहता उद्धारक अवतार।
सिद्ध अर्थ का सिद्धार्थ ने जाना
जब जीवन कि अवस्थाएं चार ।
बीमार, बृद्ध, मृत्यु,असहाय निकल पड़ा
सच जानने को राजा शुध्धोधन
का राज कुमार सिद्धार्थ।
माता, पिता, बेटा और पत्नी कुटुंब,
परिवार, समाज का कर् परित्याग।
पिता चाहता बेटा शुख शुविधा का भोग करे
राजा बन राज करे स्वीकार नहीं कर पाया सिधार्थ।
राजसी विलास राज पाठ,
मोह माया के बंधन का किया
त्याग जागा मन में बैराग।
निकल पड़ा बैरागी जन्म् जीवन की
सच्चाई का करने को आविष्कार।
मोक्ष कि कामना में प्राणी करता है
जहाँ यज्ञ अनुष्ठान
गया तीर्थ बना गवाह सिद्धार्थ से
बुद्ध की जीवन यात्रा का प्रमाण।
राज गिरी कि भूमि वहीँ है बोध
बोधि का बट बृक्ष वहीं है।
सिद्धार्थ कि कठिन तपस्याऔर
चुनैति कि गूँज का प्राणी प्राण वाही है।
भगवान् तथ्य तत्व का ज्ञान यही है
सिद्धर्थ बुद्ध कि अवधारणा का अवतार सत्य सही है।
अहिंसा परमो धर्मः का उपदेश अर्थ,
कर्म और मोक्ष का मार्ग।
काशी के कर्म ज्ञान का शंख
नाद सारनाथ वहीं है ।।
पूर्णता सम्पूर्णता कि आत्मा से
परमात्मा कि यात्रा का सिद्धार्थ ।
बुद्ध का युग में साक्षात्कार युग में
सत्कार लुम्बनी कपिल वस्तु काल,
भय ,भाग्य का भगवान्।
अनर्द्वंद से निकला निखारा मूल्यों
आदर्शो कि आत्मा परमात्मा का सिद्धांत।
करुणा, दया ,छमाँ प्राणी प्राण की अनंत
परंपरा का सिद्धार्थ बुद्ध अवतार का सत्कार।
कुशीनारा की धरती जीवन कि सच्चाई के
अन्वेषक का महा परिनिर्माण।
त्याग, तपस्या, सच्चाई ही
जीवन के है न्यास।
आत्म साथ कर लेता जो इनको
बोध बुद्ध का भिक्षु सन्यास।।
संघम शरणम् गच्छामि,
धम्मम् शरणम गच्छामि,
अहिंसा परमो धर्मः का प्रादुर्भाव ।
प्राणी प्राण में परमेश्वर का सत्य
सत्यार्थ बुद्ध का दिव्य दिव्यार्थ।
