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Nancy Gupta

Abstract

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Nancy Gupta

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सबको रंग लगाना है

सबको रंग लगाना है

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पशु पक्षी हो

या हो इंसान

सबको रंग लगाना है

गली सड़क हो

या हो मकान

सबको रंगों से

नहलाना है।


बैर अगर कोई

मन में हो

उस बैर को

मिटाना है


कलुषित ह्रदय

अगर तेरा हो

तो उस कलुषता को

जलाना है।


पशु पक्षी हो या हो इंसान

सबको रंग लगाना है

जो खेलते हैं रोज खून की होली

उनकी दुआ में अपने हाथ उठाना


रक्षा करते करते उठ

गयी जिनकी डोली

थोड़ा शहादत का गुलाल

उनको भी लगाना है


पशु पक्षी हो या हो इंसान

सबको रंग लगाना है

गली सड़क हो या हो मकान

सबको रंगों से नहलाना है।


न रंग है न गुलाल है

बस शब्दों का जाल है

शब्दों से ही ऐसा

रंगेगी मेरी कलम

क्योंकि स्याही मेरी

थोड़ी हरी है व थोड़ी लाल है।


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