साया
साया
मस्त हवाओं में जो चल रहा
तेरा साया है वो।
क्या कभी तुझसे बेहतर
बन पाया है वो?
कभी किसी मोड़ पर
यूँ ही हँसता चल रहा वो।
क्या उसके कदमों को
कभी गिन पाया है तू?
खोया है तू
कहता है हिस्सा है तू
पर इस दुनिया को कभी
जान पाया है तू?
मस्त हवाओं में जो चल रहा
तेरा साया है वो।
क्या कभी तुझ से बेहतर
बन पाया है वो?
पास है तू
पर दूर है तू।
देखता सब चल रहा
पर क्या कभी दिल में जो है
वो बोल पाया है तू?
ये दिन
ये रात
ये सारे तेरी ही तो करते हैं बात।
तू सुनता नहीं
या सुनना चाहता नहीं?
क्या कभी खुद की दुनिया से
बाहर निकल पाया है तू?
मस्त हवाओं में जो चल रहा
तेरा साया है वो।
क्या कभी तुझ से बेहतर
बन पाया है वो?
तू खुद का ही है
तू समझता सब है
पर क्या कभी सच से
ऊपर उठ पाया है तू?
तेरा साया पीछे है तेरे
अब शायद कहीं आगे भी हो।
पर क्या कभी तुझ से
अलग हो पाया है वो?
मस्त हवाओं में जो चल रहा
तेरा साया है वो।
क्या कभी तुझ से बेहतर
बन पाया है वो?
