आज भी वो खत लिखा करते है
आज भी वो खत लिखा करते है
आज भी वो खत लिखा करते हैं।
भरी धूप में समुद्र किनारे
लहरों से बातें किया करते हैं।
आसमान की नीली चादर में
आज भी खुद को समेटा करते हैं।
आज भी ना जाने किसे
खत लिखा करते हैं।।
आंगन में बैठे, हाथ में कागज़ लिए
खुद ही से बातें किया करते हैं।
खुशबुओं से भरे बगीचों में टहलते हुए
आजकल यूँ ही अकेले मुस्कुराया करते हैं।
आज भी ना जाने क्यों,
घंटो खत लिखा करते हैं।।
जानते है वो अब नहीं चलती वो साँसे
जो इन लेखों को समझा करती थीं।
फिर भी दुकान पर खड़े-खड़े,
सियाही खरीदा करते हैं।
शायद इसीलिए कागज़ों से बातें कर,
दोस्ती किया करते हैं।
आज भी ना जाने किन यादों से
भरे खत लिखा करते हैं।।
रोज़ रात को यूँ ही कलम थामे,
कुर्सी पर ही सो जाया करते हैं।
आज भी बेवक़्त वो किसी को
खत लिखा करते हैं।
कही अनकही सारी बातें
वही व्यक्त किया करते हैं।
आज भी वो खत लिखा करते हैं।।
यह कविता उन सभी लोगो के नाम जो ज़िन्दगी में किसी के बिना
अर्थात उसकी याद के सहारे जी रहे हैं।।