रुकना नही है
रुकना नही है
रुकना नहीं है, झुकना नहीं है
अपनी मंजिल के विपरीत मुड़ना नहीं है
गुनाह है अगर आवाज उठाना
तो हमको फिर शरीफी दिखाना नहीं है
जख्म तलवों के हमको रोकेंगे कैसे
इनाम में उनको जब मंजिल मिलेगी
फुरसत नहीं जिनको आलस से अपने
किस्मत भी उन पर शर्मिंदा रहेगी
ख्याल - ए- जहां , किसको है यहां
खुद में ही उलझा फिरता है इंसा
मुक्कम्मल सुकून भला होगा कैसे
हरेक को यहां बनना है खुदा
मंजिल पर नजरें है रखना
मुश्किलों से हमको क्यों है डरना
पैरों के जख्मों को हैरान है करना
बनके इंसा ,इंसानियत है बचाना।