रिश्तों का अहसास
रिश्तों का अहसास
कुछ रिश्ते ऐसे बन जाते हैं
एक ना होकर भी रिश्ता निभाते हैं
कब, कहां, कैसे प्यार हो जाता है
हम कुछ समझ नहीं पाते हैं
आंखें उन्हीं को देखना चाहती है
वो दिल के इतने करीब आ जाते हैं
बात न होने पर घबराहट होती है
वो हम पर इस कद्र हावी हो जाते हैं
धीरे धीरे हक हो जाता है उन पर
इसलिए थोड़ी नाराजगी भी जता जाते हैं
काश ! पूरी ज़िन्दगी के लिए मिले होते
खोने के डर से आंसू भी बहा जाते हैं।
कुछ रिश्ते ऐसे बन जाते है।