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Mahavir Uttranchali

Abstract

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Mahavir Uttranchali

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राह न की

राह न की

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हमने उस बेवफ़ा से राह न की

तड़पे ताउम्र, उसकी चाह न की।


दर्द की रेत में चले मीलों

फूट छाले गए तो आह न की।


हम-सा हमदर्द, हमनवा न मिला

आह ! क्यूँ तुमने फिर निबाह न की।


जाँ भी तुम पर निसार की हमने

हाय! तुमने मगर निगाह न की।


थे गुनहगार दोस्तो ! हम भी

तुमने ही ज़िन्दगी तबाह न की।


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